वो क्या है न कि, जैसे आलू और चना हमारे देश का पसंदीदा और सर्व सुलभ खाद्य पदार्थ है वैसे ही आलोचना हमारा पसंदीदा व्यवहार है. जो कोई भी, किसी भी क्षेत्र में, किसी की भी, किसी भी समय कर सकता है. कमियां निकालना हमारा स्वभाव है और उन्हें निकालकर खुद को बुद्धिमान दिखाना हमारा फ़र्ज़, जिसका पालन हर स्तर पर, हर ओहदे का इंसान बहुत ही निष्ठा से करता है. घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने की तर्ज़ पर, हम अपने अल्प ज्ञान को आलोचना के रूप में बघारकर अपने बुद्धि के दाने भुनाने की भरपूर कोशिश करते हैं और अपने परम धर्म की अदायगी करके निश्चिन्त हो लेते हैं.
यहाँ ये बात दीगर है कि आलोचना का मतलब भी यहाँ आलू, चने जैसा ही सरल हो जाता है जो हर एक के बस में है और हर एक का इसपर अधिकार है.
प्रतिक्रिया, समीक्षा, और आलोचना तीनो शब्दों को मिलाकर कर आलू चना का मिक्चर सा बना लिया गया है और सभी अपने अहम को हृष्ट और रुतबे को पुष्ट करने के लिए उसे पिए जाते हैं.
हमारा कमेंट किधर गया ?? 🙁
आया ही नहीं 🙁
masale dar he
अब आलू चना मिल कर आलोचना तो बनती है न । 🙂 पता नहीं आलोचना लोगों को पसंद नहीं आती जबकि आलू चना का मिक्सचर और चाट तो शायद चाट चाट कर खाते हों । 🙂
मस्त चाट जैसा स्वाद आया . नमक , मिर्च , खट्टा तीखा कम है या नहीं है , इसमें ऊपर से डाल दें , यह तो बताना चाहिए कम से कम 🙂
यही तो एक चीज़ एकदम मुफ्त है यहाँ ।
आलू चना – आलोचना, दोनों ही पास टाइम हैं…. 🙂
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (28-06-2014) को "ये कौन बोल रहा है ख़ुदा के लहजे में… " (चर्चा मंच 1658) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
🙁 आसान है गलतियाँ निकालना……..आलोचना करना ! अगर ये ताकीद कर दी जाय कि गलतियाँ निकाली न जाएँ बल्कि उन्हें संशोधित कर दिया जाय तब देखो कैसे गायब होते हैं आलोचक !!
बढ़िया चटपटी पोस्ट yummy !!
अनु
चलिए फिर हम चुप रहते हैं!!
एक मज़ेदार निबंध पढ़ा था 'निन्दा-रस – इस आलू-चना से उसकी याद आ गई .खाली समय में नमक-मिर्च मिली चटाकेदार चाट :कौन न बन जाए गाहक !
अनु जी ! आपका कमेण्ट उतना ही लेट आया जितना कि इस बार मानसून !
आपकी इस पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन की आज कि बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन – 75वाँ जन्मदिवस दिवंगत राहुल देव बर्मन ( पंचम दा ) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
आसान है आलोचना करना. बढ़िया पोस्ट
रोचक पोस्ट
भाई , जो सुकून निंदा रस पान में मिलता है , वो और कहाँ . जैसा की अनुलता जी ने कहा की आलोचक केवल गलती निकलते है , फिर वो वो आलोचक नहीं है , आलोचना तो गलतियों की तरफ इंगित करना और उनकी सुधार की तरफ संकेत है . वैसे ये भी सत्य है की आलोचक की आलोचना होती रही है दिवेदी जी से लेकर नामवर सिंह तक .
आलोचक की आलोचना तभी बेहतरीन होती है जब वो दिल को छू जाय……
आलू-चना हमारा भी फेवरिट है :):) पर आजकल अच्छी बनती नहीं 😉
चाट का भी तो अपना ही स्वाद है .. आलोचना का भी …
फिर अच्छा अच्छा ले … जो ठीक नहीं उसे छोड़ दे … हर बात में कुछ न कुछ तो सीखने को मिल ही जाता है …
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