दिल्ली पुस्तक मेले का परिसर, खान पान में व्यस्त जनता।
किसी भी मेले का अर्थ मेरे लिए होता है, कि वहां वह सब वस्तुएं देखने, खरीदने को मिलें जो आम तौर पर बाजारों और दुकानों में उपलब्ध नहीं होतीं। और यही उत्सुकता मुझे पिछले महीने के,भारत में प्रवास के आखिरी दिन की व्यस्तता के बीच भी दिल्ली पुस्तक मेले में खींच ले गई थी. मुझे याद नहीं आखिरी बार मैं दिल्ली में होने वाले पुस्तक मेले में कब गई थी, बहुत ही छोटी रही होऊँगी पर इतना याद है, वहां मिलने वाली रंग बिरंगी रूसी कहानियों की किताबों का आकर्षण रहा करता था,जोकि सामान्यत: किताबों की दुकानों में नहीं मिला करतीं थीं. इसी तरह इस बार मेरा मन इस मेले से कुछ नए ताज़े यात्रा वृतांत और संस्मरण इकट्ठे करना था. हालाँकि जानती थी कि इनकी संख्या न तब अधिक थी, न ही आज होगी। फिर भी कुछ तो इज़ाफ़ा हुआ ही होगा यह सोच कर,बाकी सभी कामों को धता बताकर हम पहुँच गए थे प्रगति मैदान, जहां उम्मीद के मुताबिक ही अभिषेक पहले से मौजूद था. उसके पुस्तक मेले के पुराने अनुभव को देखते हुए हमने उसे तुरंत अपना मार्गदर्शक नियुक्त कर दिया कि क्या पता उसके सेलिब्रिटी स्टेटस का कुछ फायदा हमें भी हो जाए, शायद कोई भूला भटका हमें भी पहचान जाए। :):).
यूँ हिंदी पुस्तकों के हॉल में पहुँच कर, कुछ घूम कर एहसास हुआ कि उम्मीद हमने कुछ ज्यादा ही लगा ली थी. बहुत ही कम प्रकाशन हॉउस के स्टाल वहां मौजूद थे, और जो थे भी, वहां उन लिजेंड्री किताबों का ही जमावाड़ा था जिन्हें बचपन से हम पढ़ते आये हैं. उस पर भी कहानी और उपन्यासों की ही अधिकता थी जिनमें मेरी रूचि निम्नतम रही है. आखिर जब अपनी आँखों से कुछ अपने लिए वहां नजर नहीं आया तो ज्ञानपीठ के स्टाल पर आखिर पूछ ही लिया कि क्या कोई यात्रा वृतांत भी है. बहुत सोचने विचारने के बाद वहां उपस्थित दो महानुभावों ने एक किताब दिखाई। फूलचन्द मानव की “मोहाली से मेलबर्न”. अब भागते भूत की लंगोटी भली, हम वहां उपलब्ध वह इकलौता यात्रा वृतांत लेकर आगे बढ़ गए. और पहुंचे एक और बड़े और स्थापित प्रकाशन के स्टाल पर. वहां जाकर उसी प्रकाशन के प्रकाशित एक यात्रा वृतांत के बारे में पूछा जो हमें वहां कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. नाम सुन कर वहां खड़े महाशय बंगले झाँकने लगे. हमने सोचा हो सकता है यहाँ किताबें लगाने का भी उनका अपना कोई क्रायटेरिया हो सो पूछ लिया, “क्या सभी किताबें नहीं लगाते हैं आप ?” वे तुरंत तुनक कर बोले – नहीं मैंम सभी लगाते हैं. फिर उन्होंने एक महोदय की तरफ इशारा करते हुए कहा आप उनसे पूछिए उन्हें सब पता है वे आपको बता सकेंगे। परन्तु वे तथाकथित उनके सर्वज्ञाता महोदय किताब के बारे में तो क्या,पूछे जाने पर अपना नाम तक बताने के काबिल भी नजर नहीं आ रहे थे. उन्होंने भी न में सिरा हिला दिया और हम वहां काउंटर पर उपस्थित सज्जन को एक छोटा सा लेक्चर देकर बाहर निकल आये. आखिर और हम कर भी क्या सकते थे, वे प्रकाशक हैं. क्या छापना है और क्या लगाना है उनकी मर्जी पर है, मालिक हैं वे.
थोड़ी क्षुब्धता से हम बाहर निकले तो एक स्टाल पर लगे टीवी पर गीताश्री (पत्रिका बिंदिया की संपादक) कुछ बोलती नजर आईं. हम ठिठके। तभी बड़े उत्साह से वहां मौजूद एक सज्जन ने बिंदिया का सितम्बर अंक हमें पकड़ा दिया- बोले मैम १० % छूट है सबके लिए, हमें उनके इस उत्साह पर आनंद आया तो मजाक में पूछ लिया “और लेखकों के लिए ?” वे फिर उसी उत्साह से बोले उनके लिए एक्स्ट्रा डिस्काउंट मैम. फिर नाम जानने के बाद न सिर्फ उन्होंने मेरी “शुक्रवार पत्रिका की खरीद पर एक्स्ट्रा डिस्काउंट दिया बल्कि बिंदिया का ताज़ा अंक भी निशुक्ल थमा दिया जिसमें मेरी पहली कहानी प्रकाशित हुई है. यही नहीं बल्कि बड़े मान के साथ थोड़ी देर वहां बैठने के लिए और चाय , ठंडा पीने की भी गुजारिश की. हालाँकि उनके इस मान से कोई हमारा दो किलो खून नहीं बढना था हाँ थोडा सुकून का एहसास अवश्य हुआ कि चलो कोई तो है जो अपने लेखकों की इज्जत करता है फिर बेशक लेखक मेरे जैसे तुच्छ ही क्यों न हो.
अब इस कुछ खट्टे मीठे से अनुभव के बाद हमें कुछ पीने की तलब होने लगी. वैसे भी अभी वहीँ हमें उन दो लोगों का इंतज़ार करना था जिन्होंने वहां मिलने का वादा किया था. सो वहां मौजूद कोस्टा से कॉफ़ी लेकर हम वहीँ परिसर में पसर गए और कॉफ़ी चर्चा में मशगूल हो गए,
इन्तजार के दौरान कॉफ़ी ख़तम हो गई तो फोटो ही खींच ली जाए.
इसी दौरान एक एक करके दोनों माफी कॉल आ गईं, हमारे दोनों ही मित्रों ने “वर्क कम फर्स्ट” की पालिसी अपनाई थी. सो हमने भी समझदार बनते हुए उन्हें “पहले काम” की हिदायत दे डाली. इसके बाद वहां तो कुछ और देखने, घूमने को बचा नहीं था अत: भोजन के जुगाड़ में हमने परिसर के बाहर फ़ूड कोर्ट की तरफ रुख कर लिया, और एक बार फिर छोले भठूरे के साथ दुनिया की चर्चा में समा गये.
ये सारा खाना मेरे लिए नहीं है, इसमें से आधा हिस्सा उसका है जो तस्वीर ले रहा है (सूचनार्थ)
दिन अभी काफी बाकी था और अभिषेक से भी हमने औपचारिकता वश पूछ लिया था कि उसे कोई जरूरी काम तो नहीं अब ? बेचारा जब तक कहता- नहीं दीदी नहीं, तब तक हमने अपने आप ही सुन लिया और कुछ आसपास का इलाका देखने की ठान ली.
वह आसपास क्या था इसका किस्सा अगली किश्त में जल्दी ही :)।
रोचक वृतांत -१ , अगले की प्रतीक्षा है ।
इत्ती दूर कलकत्ता से यही सोच के आये थे दिल्ली की पुस्तक मेले में जाना है . लेकिन वही होता है जो मंजूरे खुद होता है ,ऐसे उलझे एक बिन बुलाये काम में की . छोला भटूरा रह ही गया .
hahahahahaah tilte se shuruaat aur ant bhi khane par hi! yani laut ke lekhan khane ki table par aaye
बिखरे पन्नों की अगली कड़ी प्रतीक्षित रहेगी!
एकदम मस्त रिपोर्टिंग है ये!!!
बड़ा अच्छा दिन रहा था वो…!बिंदिया स्टाल पर वाकई अच्छे लोग मौजूद थे…और वो आपके चेहरे से मैगजीन में छपी आपकी तस्वीर मिलकर पूछ रहे थे..ये आप हैं, पहचान में नहीं आ रहीं? 😀
और उस Publication house के उस सज्जन को आपने जो प्यारी सी डांट लगाईं थी, उनका चेहरा देखने लायक था 🙂
तुम्हें भी तो पूरी पोस्ट में बस खाना ही नजर आया 😛
"ये सारा खाना मेरे लिए नहीं है, इसमें से आधा हिस्सा उसका है जो तस्वीर ले रहा है (सूचनार्थ)"
अच्छा हुआ आप ने बता दिया … हम तो पूछने ही वाले थे … आप ने कुछ नहीं खाया … इतना सब तो अपना "गोलगप्पा" अकेले ही … समझ रही है न … 😉
चलिए आपके बहाने हमने भी पुस्तक मेला घूम लिया
तुम्हारे साथ घूमना बड़ा मजेदार अनुभव है…..बिंदिया पत्रिका मुफ्त में मिलने की बधाई :-)मजाक नहीं..कई छोटी छोटी बातें भी मन को खुशी देती हैं….
सामने रखा खाना तो दो लोगों के हिसाब से भी ज्यादा है..कित्ता खाते हो यार तुम और अभि 🙂
तस्वीरें सुन्दर हैं..यकीनन!!
अगली पोस्ट के इंतज़ार में..
अनु
हाँ तो ..सेहत नहीं देखी हमारी:)
अरे वो क्या है न ये खाने से पहले की तस्वीर है. अब इसमें खाया कितना गया उसकी तस्वीर नहीं ली न हमने 😛
जब उम्मीदें ज्यादा लग ली जाती हैं तो अक्सर निराशा ही हाथ लगती है …. वैसे मैंने तो अखबार में पढ़ा था कि किताबों पर ऑन लाइन ज्यादा डिस्काउंट मिल रहा है बजाए पुस्तक मेले में । एक दिन बढ़िया बीता इसमें मस्त रहिए …. बिंदिया पत्रिका का संस्मरण बढ़िया रहा … भटूरों को दिखा कर क्यों ललचाया जा रहा है भला ??????? गालिब चाचा से मुलाक़ात का आगे इंतज़ार है :):)
सुधार —-लग ली जाती हैं को लगा ली जाती हैं पढ़ें
yatra ke bare me aap bahut hi rochak tarike se likhti hain
aanand aaya padh kar
rachana
चलिये, पुस्तकें न सही, छोले भटूरे से ही पेट भर गया।
पुस्तक मेले में आजकल चर्चित पुस्तकें या अंग्रेजी की पुस्तकों की भरमार रहती है।
अच्छा लगा… अभी ताजा है संस्मरण तभी आपने लिख लिया। वरना कुछ दिनों बाद सोचतीं कि यार पुस्तक मेले में कुछ खास तो किया नहीं था, लिखूं क्या..:)
लेखकों माने लेखिकाओं का भी सम्मान हुआ , जानकार अच्छा लगा !!
और क्या क्या हुआ हमारे इस देश में जानेंगे अगली बार आपसे 🙂
शिखा तो शिखा का प्रणाम 🙂
यूँ ही टहलते हुए किसी मोड़ पर आपके ब्लॉग पर आपकी रचनाओं से मुलाक़ात हो गयी . अंदाज़े-बयां ने यूँ जकड़ा कि पिछली कितनी पोस्ट पढ़ गयी पता ही नहीं चला ….सब एक से बढ़कर एक
छोले-भटूरे देख कर मुँह में पानी आ गया …आप फोटो खिंचवाने तक रुकीं कैसे ?
'बिंदिया' में आपकी कहानी के लिये बहुत सारी बधाईयाँ ….पत्रिका ला कर पढने की जिज्ञासा बलवती हो रही है .
शुभ-कामनायें ……..शिखा ……न ….न…. आप नहीं मैं 🙂
🙂 mujhe to bas bhature hi bhature dikh rahe pure page par 😀
aur haan
bikhre panne ko samet kar sahej kar deekhane ke kala me aap mahir ho.. no doubt…
achchha lagta hai padhna aapko 🙂
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें।
क्या बात! वाह!
रोचक बयान…आगे और पढने की प्यास बन गई है…लिखती रहो दोस्त.
🙂
मस्त रिपोर्टिंग … आपका सम्मान याने ब्लॉग जगत को भी मान्यता मिलने लगी … अच्छा लगा जान कर …
शिक्षक दिवस की शुभकामनायें
रोचक वर्णन .
achchi post
अगली किश्त कब ?
भटूरे तो ललचा रहे हैं।
स्वागत है शिखा 🙂
जल्दी ही ..
यही तो तुम्हारे लेखन का जादू है …नीरस से नीरस अनुभव को भी इतने सरस तरीके से कहती हो …कि पोस्ट एक ही सांस में पढ़ जायें …..बढ़िया …हर बार बस एक ही बात अखरती है ..तुमसे मिलना नहीं हो सका …ख़ैर …अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा
नीरस ही रहा यह पुस्तक मेला। उसी दिन हम भी थे पुस्तक मेले में। लेकिन मेरा बैड लक कि मुलाकात न हो सकी। रोचक संस्मरण। शायद अगले अंक में पुरानी दिल्ली का जिक्र हो। इंतजार है।
सरस वर्णन
अच्छी रही ,अच्छी कही !
बहुत मजेदार रिपोर्टिंग पुस्तक मेले की. आपसे आँखों देखा हाल जानकार लगा की पुस्तक मेले में न जाकर बहुत बड़ी भूल नहीं हुई मुझसे. हिंदी पुस्तकें विशेषकर उपेक्षा की ज्यादा शिकार हो रही हैं. सच है नए लेखकों के लिए प्रकाशक की मनमानी…
आपसे मिल न सकी इस बार, अगली यात्रा का इंतज़ार रहेगा. ढेरों शुभकामनाएँ!
"वे तथाकथित उनके सर्वज्ञाता महोदय किताब के बारे में तो क्या,पूछे जाने पर अपना नाम तक बताने के काबिल भी नजर नहीं आ रहे थे"
🙂 🙂 🙂
–
सच कहा
ऐसे ऐसे लोग भी स्टाल पर स्थापित होते हैं
–
रिपोर्टिंग बढ़िया लगी
इसी बहाने हम भी घूम लिए
–
भारत भ्रमण का और विस्तार से ब्योरा लिखा जाए 🙂
I really like your writing style, great info , thankyou for posting : D.
You completed certain nice points there. I did a search on the topic and found the majority of persons will go along with with your blog.
“Thanks so much for the post. Great.”
“Awesome blog article.Really thank you! Really Cool.”
“I have discovered some significant things through your blog post. One other point I would like to express is that there are lots of games available and which are designed specially for preschool age young children. They contain pattern acknowledgement, colors, wildlife, and forms. These commonly focus on familiarization as opposed to memorization. This helps to keep a child occupied without experiencing like they are learning. Thanks”
Enjoyed every bit of your article post.Really thank you! Will read on…
“Hello, Neat post. There’s a problem along with your site in web explorer, may test this? IE still is the marketplace leader and a good element of people will miss your excellent writing due to this problem.”
Awesome post.Really looking forward to read more. Will read on…
I appreciate you sharing this article post.Thanks Again. Cool.
I really liked your post.Really looking forward to read more. Will read on…
Say, you got a nice blog article.
Im obliged for the post.Really thank you! Cool.
Thanks for the article.Thanks Again. Really Great.
Muchos Gracias for your article post.Really looking forward to read more. Will read on…
I appreciate you sharing this article post.Much thanks again. Awesome.
wow, awesome blog post.Much thanks again. Great.
I appreciate you sharing this article post.Really looking forward to read more. Really Cool.
Thank you ever so for you article post.Thanks Again. Keep writing.
I appreciate you sharing this blog article.Really looking forward to read more. Fantastic.
I value the post.Really thank you! Want more.
Very informative blog.Really looking forward to read more. Will read on…
Thanks-a-mundo for the post.Thanks Again. Will read on…
Really appreciate you sharing this article. Keep writing.
I value the blog post.Thanks Again. Will read on…
Thanks a lot for the blog post.Thanks Again. Really Cool.
I cannot thank you enough for the post.Thanks Again. Awesome.