सपनो को बंद करके पलक पर थे हम चले।
शब्दों के कुछ फूल मन बगिया में जो खिले
समेट कर आज इन्हें बिखरा दिया है इसकदर
तमन्ना है की आपकी पलकों पर ये सजें
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बड़ी शिद्दत से बिछाये बैठे थे
प्यार के गलीचे को
खबर क्या थी उसमें
खटमल भी आ जाया करते हैं
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आज इस बारिश की
बोछार देख याद आया
तेरा प्यार भी कभी
यूँ ही बरसा करता था.
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आसमां आज कुछ
झुका झुका सा लगता है
शायद ऊपर आज
डांस प्रोग्राम् है
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पहले हम कहते थे
ये धरती चपटी है
अब कहते हैं कि
पृथ्वी गोल है
पर कब समझेंगे की
ये प्रकृति अनमोल है.
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आज भी जब दिल करता है
की हंसें हम
तो खुद ही हो जाती हैं
ये आँखें नम
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यूँ तो रोज़ आते हैं,
सेंकडों परिंदे मेरी मुडेर पर।
पर किसी के भी पंजों में,
तेरी चिठ्ठी कहाँ होती है.
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जैसे आये थे हम
उल्टे पैर लौट जायेंगे
तेरी गली में अब
शाम कहाँ होती है ।
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