पिछले दिनों एक समाचारपत्र में एक खबर थी कि एक २ साल की बच्ची को उसके नाना नानी से लेकर अनाथ आश्रम में पहुंचा दिया गया. क्योंकि नाना नानी को कोर्ट ने बच्ची की देखभाल के लिए उपयुक्त आयु से अधिक पाया। बच्ची की माँ नशे की आदी है और मानसिक रूप से किसी बच्चे को पालने में असमर्थ है इसलिए बच्ची अपने नाना नानी के घर पर थी. बेचारे बुजुर्ग नाना नानी का कहना है कि वह आयु में अधिक अवश्य हैं परन्तु शारीरिक रूप से इतने कमजोर नहीं कि अपनी धेवती की देखभाल न कर पायें और उन्होंने कोर्ट से अपील की थी कि उन्हें उस बच्ची को वापस दे दिया जाए. अब सामाजिक संस्था का तर्क था कि एक तो वह बुजुर्ग हैं दूसरा वह अपनी ही बेटी को सही आयु में नहीं संभाल पाये तो इस उम्र में बेटी की बेटी की परवरिश कैसे कर पाएंगे। अब वह बच्ची फ़ॉस्टर केयर में जाएगी जहाँ कोई काबिल परिवार उसके बड़े होने तक उसकी देखभाल करेगा। 

यूँ यह वाकया पश्चिमी देशों में खासकर यूरोप में बहुत आम है और यहाँ के सांस्कृतिक परिवेश को देखते हुए कई बार इस तरह की व्यवस्था सही भी लगती है. परन्तु फिर भी मन में यही ख़याल आता है कि अपने माता – पिता या दादा -दादी, नाना – नानी कैसे भी हों शायद  संवेदात्मक रूप से एक फोस्टर पेरेंट (पालक माता – पिता ) से बेहतर ही साबित होंगे. कई बार विभिन्न समुदायों के अलग पारिवारिक और सांस्कृतिक परिवेश के कारण कुछ माता पिता सामाजिक संस्थाओं के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते और वे बच्चे के हित में बच्चे को उनसे अलग करके फोस्टर केयर में डाल देते हैं. परन्तु अनाथ आश्रम या पालक माता – पिता आखिर गैर ही होते हैं, वे बच्चे की आर्थिक जरूरतें तो पूरा कर सकते हैं जिसके लिए उन्हें सरकार से फंड दिया जाता है,पर क्या वे बच्चे को वह प्यार और अपनापन दे सकते हैं जो उसका अपना परिवार दे सकता है? यह एक सवाल हर देश और परिवेश में बना रहता है.

सामान्यत: एक पालक माता – पिता बनने के लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं चाहिए होता –
आप अकेले, तलाकशुदा, साथ रहने वाले या शादीशुदा कुछ भी हो सकते हैं.
जोड़ों को अपने काम काजी घंटो की व्यवस्था में बदलाव करना पड़ सकता है जिससे उनमें से कोई एक बच्चे की देखभाल के लिए पूरा समय उपलब्ध रहे.
यदि आप एकल पालक हैं तो आपको पूरा समय घर पर रहना होगा या लचीला, अंशकालिक रोजगार लेना होगा।
आप एक घर के मालिक या किरायेदार कुछ भी हो सकते हैं परन्तु बच्चे के अनन्य उपयोग के लिए एक बेडरूम आवश्यक होगा।
यह शर्तें पूरी करने के बाद आप फोस्टर पेरेंट्स बनने के हक़दार हो जाते हैं और तब सरकार आपको उस बच्चे की देखभाल के लिए जरूरी सलाह, ट्रेंनिंग, सहायता और साप्ताहिक भत्ता देती है.

परन्तु अब एक समस्या यह है कि आंकड़ों के हिसाब से आज 87000 ब्रिटिश बच्चे फोस्टर केयर में हैं. हर बच्चे को एक स्थिर, प्रेमपूर्ण माहौल की आवश्यकता है परन्तु हर २२ मिनट में एक नया बच्चा यहाँ आ रहा है ऐसे में ब्रिटेन की यह फ़ोस्टरिंग व्यवस्था इसे निभाने के लिए संघर्ष कर रही है.
एक और समस्या जो देखने में आती है, फोस्टर केयर में आने वाले बच्चे अधिकतर व्यावहारिक रूप से बिगड़े होते हैं और सरकार के द्वारा दी गई सुविधाओं के वावजूद किसी दूसरे परिवार को उन्हें सम्भालना मुश्किल होता है. परिणाम स्वरुप कई बार बेहद भयानक कहानियाँ सुनने में आती हैं. जैसे 2011 के दंगे या 2012 में हुआ एक केस, जहाँ एक १४ साल बच्चे ने अपनी पालक माँ को चाकू मार कर मार डाला क्योंकि उसने बच्चे को जल्दी सो जाने के लिए कहा था.

इन सब परेशानियों की वजह से ज्यादा लोग इस व्यवस्था में दिलचस्पी नहीं दिखाते और अंतत: जाहिर है इन सब का असर उन बच्चों पर ही पड़ता है. नतीजतन बेहतर परवरिश के लिए अपने परिवार से दूर किये गए बच्चे बेहतर जीवन जीने में असमर्थ रहते हैं.कई अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं और अधिकांशत:उनमें नैतिक मूल्यों का अभाव रहता है. 


अनाथ आश्रम और पालक माता -पिता किसी भी हालत में परिवार का विकल्प नहीं बन सकते। ऐसे में जरूरी है कि परिवार से लेकर फोस्टर केयर में डालने से पहले सामाजिक संस्थाएं लकीर की फ़कीर न बनकर कुछ और पहलुओं पर व्यापक तरीके से सोचें। बेहतर हो कि कागजी नियम के अलावा वे मानवीय मूल्यों पर सोच कर बच्चे के हित और उसकी ख़ुशी में फैसला लें.