यूँ यह वाकया पश्चिमी देशों में खासकर यूरोप में बहुत आम है और यहाँ के सांस्कृतिक परिवेश को देखते हुए कई बार इस तरह की व्यवस्था सही भी लगती है. परन्तु फिर भी मन में यही ख़याल आता है कि अपने माता – पिता या दादा -दादी, नाना – नानी कैसे भी हों शायद संवेदात्मक रूप से एक फोस्टर पेरेंट (पालक माता – पिता ) से बेहतर ही साबित होंगे. कई बार विभिन्न समुदायों के अलग पारिवारिक और सांस्कृतिक परिवेश के कारण कुछ माता पिता सामाजिक संस्थाओं के मापदंडों पर खरे नहीं उतरते और वे बच्चे के हित में बच्चे को उनसे अलग करके फोस्टर केयर में डाल देते हैं. परन्तु अनाथ आश्रम या पालक माता – पिता आखिर गैर ही होते हैं, वे बच्चे की आर्थिक जरूरतें तो पूरा कर सकते हैं जिसके लिए उन्हें सरकार से फंड दिया जाता है,पर क्या वे बच्चे को वह प्यार और अपनापन दे सकते हैं जो उसका अपना परिवार दे सकता है? यह एक सवाल हर देश और परिवेश में बना रहता है.
सामान्यत: एक पालक माता – पिता बनने के लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं चाहिए होता –
आप अकेले, तलाकशुदा, साथ रहने वाले या शादीशुदा कुछ भी हो सकते हैं.
जोड़ों को अपने काम काजी घंटो की व्यवस्था में बदलाव करना पड़ सकता है जिससे उनमें से कोई एक बच्चे की देखभाल के लिए पूरा समय उपलब्ध रहे.
यदि आप एकल पालक हैं तो आपको पूरा समय घर पर रहना होगा या लचीला, अंशकालिक रोजगार लेना होगा।
आप एक घर के मालिक या किरायेदार कुछ भी हो सकते हैं परन्तु बच्चे के अनन्य उपयोग के लिए एक बेडरूम आवश्यक होगा।
यह शर्तें पूरी करने के बाद आप फोस्टर पेरेंट्स बनने के हक़दार हो जाते हैं और तब सरकार आपको उस बच्चे की देखभाल के लिए जरूरी सलाह, ट्रेंनिंग, सहायता और साप्ताहिक भत्ता देती है.
परन्तु अब एक समस्या यह है कि आंकड़ों के हिसाब से आज 87000 ब्रिटिश बच्चे फोस्टर केयर में हैं. हर बच्चे को एक स्थिर, प्रेमपूर्ण माहौल की आवश्यकता है परन्तु हर २२ मिनट में एक नया बच्चा यहाँ आ रहा है ऐसे में ब्रिटेन की यह फ़ोस्टरिंग व्यवस्था इसे निभाने के लिए संघर्ष कर रही है.
इन सब परेशानियों की वजह से ज्यादा लोग इस व्यवस्था में दिलचस्पी नहीं दिखाते और अंतत: जाहिर है इन सब का असर उन बच्चों पर ही पड़ता है. नतीजतन बेहतर परवरिश के लिए अपने परिवार से दूर किये गए बच्चे बेहतर जीवन जीने में असमर्थ रहते हैं.कई अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं और अधिकांशत:उनमें नैतिक मूल्यों का अभाव रहता है.
अनाथ आश्रम और पालक माता -पिता किसी भी हालत में परिवार का विकल्प नहीं बन सकते। ऐसे में जरूरी है कि परिवार से लेकर फोस्टर केयर में डालने से पहले सामाजिक संस्थाएं लकीर की फ़कीर न बनकर कुछ और पहलुओं पर व्यापक तरीके से सोचें। बेहतर हो कि कागजी नियम के अलावा वे मानवीय मूल्यों पर सोच कर बच्चे के हित और उसकी ख़ुशी में फैसला लें.
काफी उलझा हुआ है
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़बरों के टुकड़े – ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
वहां के कानून में संशोधन की आवश्यकता है. निश्चित रूप से फ़ोस्टर सेंटर घर की जगह नहीं ले सकते सो यदि दादा-दादी, या नाना-नानी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार हैं तो ये अधिकार उन्हें सौपना ही चाहिये.
बेहतर हो कि कागजी नियम के अलावा वे मानवीय मूल्यों पर सोच कर बच्चे के हित और उसकी ख़ुशी में फैसला लें……theek kah rahin hain aap …….
बहुत बढ़िया
जानकारी के लिए शुक्रिया
सहमत हूँ आपकी बात से … ऐसे कानूनों को समय समय पे दुबारा देखने की जरूरत होती है और इन्हें बदलना जरूरी है अगर जरूरत है …
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