सपाट चिकनी सड़क के किनारे
कच्चे फुटपाथ सी लकीर
और उसके पीछे
कंटीली झाड़ियों का झुण्ड
आजू बाजू सहारा देते से कुछ वृक्ष
और इन सबके साथ चलती
किसी के सहारे पे निर्भर
यह कार सी जिन्दगी
चलती कार में से ना जाने
क्या क्या देख लेती हैं
ये ठिठकी निगाहें.
********************
********************
पल पल झपकती
पुतलियों के मध्य
पनपता एक दृश्य
श्वेत श्याम सा
तैरता खारे पानी में
होता बेकल
उबरने को
होने को रंगीन
हर पल
जाने क्या क्या समाये रखती हैं
खुद में ये ठिठकी निगाहें।
(शीर्षक अमित श्रीवास्तव जी से साभार।)
🙂
पल पल झपकती
पुतलियों के मध्य
पनपता एक दृश्य
श्वेत श्याम सा
तैरता खारे पानी में….
Khoobsoorat ahsaason se bhari huyi car me ye thithki huyi khoobsoorat nigaahen bahut kuchh dekh rahi hain…. 🙂
Saadar
"ठिठकी आँखें …"
जीवन और अस्तित्व के बारे में
बहुत कुछ कह गयी।
आँखों की खिड़की से निरंतर आता जाता जीवन
अथाह है …वैसी ही कुछ-कुछ अर्थमयता है
आपकी इस रचना में …
अच्छा लगा खुद पर कविता कहना…….
वैसे इस तस्वीर को फेसबुक पर देख पहले ही कई कवितायें कह गए थे….
🙂
अनु
गहन भाव पूर्ण!
भावपूर्ण और अहसासात से ओतप्रोत
वाह 🙂
ठिठकी निगाहें जाने क्या क्या देख लेती है रियर व्यू मिरर में. आँखों में बसे सपने श्वेत श्याम से रंगीन होने में धैर्य, भाग्य और कर्म तीनो का सतुलित विलयन होना अभीष्ट है . सुन्दर और प्रभावशाली रचना .
chalti kaar se bahut kuchh dekh paatee neegahen…:) thithak kar ruk jati hai, par chalti caar kahan rukne deti :))
चश्मे बद्दूर!
BEAUTIFUL SO NICE
निगाहें कुछ उदास सी क्यों हैं ! 🙂
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
कृपया आप इसे अवश्य देखें और अपनी अनमोल टिप्पणी दें
यात्रा-वृत्तान्त विधा को केन्द्र में रखकर प्रसिद्ध कवि, यात्री और ब्लॉग-यात्रा-वृत्तान्त लेखक डॉ. विजय कुमार शुक्ल ‘विजय’ से लिया गया एक साक्षात्कार
यह तो आपने १९ सितम्बर को लिखी थी और तब मैंने यह कहा था , "आपकी कविता ज्यादा सुन्दर और फिलौसिफिकल है" और आज फिर यही कहूंगा "बहुत अच्छी " कविता है | शीर्षक पर तो कॉपीराईट आपका ही है ,क्योंकि वह तो आपकी फोटो पर दिया गया मेरा कमेन्ट था , उस पर कविता बन गई थी वह बात दीगर है | दूसरा पैराग्राफ मेरे लिए नया अवश्य है और ये तो बहुत ही अर्थपूर्ण हैं |
कलकत्ता की दुर्गा पूजा – ब्लॉग बुलेटिन पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सब को दुर्गा पूजा की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें ! आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
कितना कुछ कहती ये ठिठकी निगाहें । बहुत सुन्दर
कार से कोई बाहर देख भर ले यही बहुत बड़ी बात होती है और आपने तो इतना संवेदनशील दृश्य उपस्थित कर दिया कि कुछ कहा नहीं जा रहा!! बहुत सुन्दर!!
बहुत कुछ होता अहसास…
आभार !
मासूम कविता भी।
sach hai bahut kuchh hota hai in nigahon me sunder bhav
rachana
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
गति में ठिठकी निगाहें, अच्छा काम्बीनेशन है 🙂
बहुत कुछ देखतीं है ये ठिठकी निगाहें….
बहुत खूबसूरती से लिखा है कार से झाँकती आँखों का वर्णन ….
कुछ ऐसा भी होता है कभी – कभी
ठिठकी सी निगाहें
लगता है कि
देख रही हैं
फुटपाथ और झाड़ियाँ
पर निगाहे
होती हैं स्थिर
चलता रहता है
संवाद मन ही मन
उतर आता है
पानी खारा
खुद से बतियाते हुये
खिड़की से झाँकती आंखे
लगता है कि ठिठक गयी हैं ।
बेहतरीन, लाजवाब!
ठिठक गये!!
"किसी सहारे पे निर्भर
यह कार सी जिंदगी"…..
एकदम सही ……
जीवन रुपी कार को चलाने
वाले चालक "परम सत्ता"
पर निर्भर …… बहुत ही सुन्दर रचना
विजयादशमी की शुभकामनाओं सहित ….
साभार!!!!!
गहरे भाव
सुन्दर कवितायें, सुन्दर तस्वीर 🙂
तारा टूटते सबने देखा,यह नही देखा एक ने भी,
किसकी आँख से आँसू टपका,किसका सहारा टूटा है ,,,,
विजयादशमी की हादिक शुभकामनाये,,,
RECENT POST…: विजयादशमी,,,
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 25-10 -2012 को यहाँ भी है
…. आज की नयी पुरानी हलचल में ….
फरिश्ते की तरह चाँद का काफिला रोका न करो —.। .
भागती जिंदगी सी कार में
ठिठकी निगाहें
जाने क्या देख लेती है !
क्या नहीं देख लेती है !
अर्थपूर्ण कवितायेँ !
पल पल झपकती
पुतलियों के मध्य
पनपता एक दृश्य
श्वेत श्याम सा
तैरता खारे पानी में..shabdon ka bahut accha mei …bahut acchi abhiwyakti ….
…कार सी ज़िन्दगी।
कभी चलती है
कभी दौड़ती है हुलस के।
कभी ठहर जाती है
ठिठक कर।
कभी दे देती है धोखा
ये
बेकार सी ज़िन्दगी।
कोई ठिकाना नहीं
कब तक चलेगी
और कब
कर देगी इंकार
आगे चलने से
देखिये ना!
जसपाल भट्टी की कार रुक गयी
किसे उम्मीद थी?
निगाहें
ठिठकें ना तो क्या करें!
ये तुम्हारी आंखें हैं या कोई ठहरा हुआ समंदर।
Rachana aur tasveer,dono bahut sundar!
अच्छा बिम्ब है जागी आँखों के ख़्वाब सा .
पल पल झपकती
पुतलियों के मध्य
पनपता एक दृश्य
श्वेत श्याम सा
तैरता खारे पानी में
होता बेकल
उबरने को
होने को रंगीन
हर पल
जाने क्या क्या समाये रखती हैं
खुद में ये ठिठकी निगाहें।
ठिठकी निगाहें …. बहुत कुछ जान लेने के उपक्रम में चेतन से जड़ हो जाती हैं
खूबसूरत प्रस्तुति
शीर्षक अच्छा है। कविता के बारे में अमित कह ही चुके हैं। 🙂
सुन्दर रचना
:-{} —
(Blowing a smile)
कच्ची पगडण्डी का सहारा बने वृक्ष, मानो कँटीली झाड़ियों में उसे खो न जाने देने के लिए कृतसंकल्प हों; उन्हें देखकर कवि का स्व – उन्मुख होकर सोचने लगना, " किसी के सहारे पर निर्भर / यह कार सी ज़िन्दगी " और फिर उस निर्भरता से उबरने की बेकली… सुन्दर भाव-संयोजन है !
इस रचना में कुछ ऐसा है, जो ठिठक कर देखने को विवश करता है।
बड़ अजीब है ये मन, जहाँ हम हैं वहाँ टिकता ही नहीं !
पल पल झपकती
पुतलियों के मध्य
पनपता एक दृश्य
श्वेत श्याम सा
तैरता खारे पानी में….
जीवन जैसे ख्वाब सा …
आँखों में हैरानी सी……
बेहद सुन्दर भाव पूर्ण …..आभार …
"JANE KYA KYA SMETE RHATI HAI KHUD ME YE THITHKI NIGAHEN"EK BHAWPOORAN BEHAD KHOOBSURAT RACHNA,SHIKHA JI SUNDER LIKHNE KE LIYE NAMAN HAI AAPKI LEKHNI KO.
chalti car mai thithki nigahe kavita padhi
achchi kavitayen hai ,dhanyabad
Very interesting subject , appreciate it for putting up.
An interesting discussion is worth comment. I think that you should write more on this topic, it might not be a taboo subject but generally people are not enough to speak on such topics. To the next. Cheers
I really enjoy the article post.Really looking forward to read more. Want more.