स्पंदन = मेरे मन में उठती भावनाओं की  तरंगे.जिन्हें साकार रूप दिया मेरे इस प्यारे ब्लॉग ने ..जी हाँ इस माह  मेरे स्पंदन का फर्स्ट बर्थडे है .वैसे तो इसकी नींव  २७ अप्रैल को रखी गई थी .परन्तु इसे सुचारू रूप से बढ़ाना मैने 18 मई से शुरू किया. और इसी दिन मेरी ब्लॉग की  रचना पर पहली  प्रतिक्रिया  आई अत: स्पंदन का जन्म दिन  मैने मई में ही मनाना उचित समझा.
चलिए आज आपको इसके जन्म  से आजतक की कहानी सुनाती हूँ .
जैसा कि आप  लोग मेरे परिचय से जानते हैं कि पत्रकारिता करने बाद मैने  गृहस्थ जीवन को अपना लिया था  .परन्तु लेखन का शौक और साहित्य में रूचि के कारण कभी कभार कविताएँ   लिख डायरी  में बंद करती रहती  थी..कुछ घर गृहस्थी का बोझ कम हुआ तो कुछ न कर पाने की  कुंठा सताने  लगी , ऐसे में ही एक मित्र ने ऑरकुट से परिचय कराया.और वहां कुछ कम्युनीटीज़  पर  अपना लिखा हुआ बांटना शुरू कर दिया. उस दौरान आभा क्षेत्रपाल की “सृजन का सहयोग ” और उसके सदस्यों ने मेरे रूठे आत्मविश्वास को मनाने में बहुत सहयोग दिया बहुत कुछ मिला वहां से ,बहुत से पुरस्कार भी और आराम से जिन्दगी चलने लगी .
तभी एक दिन कुश को टिप्पणी  करते हुए उनके ऑरकुट के साइड बार में एक लिंक दिखा ” कुश की कलम ” जिज्ञासा वश उसे क्लिक किया तो पता  चला कि कुछ ब्लॉग है ..थोडा पढ़ा तो लगा कि नेट डायरी  टाइप की  कोई चीज़ है जहाँ अपनी रचनाएँ  एक साथ संकलित  की  जा सकती हैं बस यही सोच कर एक ब्लॉग बना लिया कि कम से कम सब रचनाएँ  एक जगह इकठ्ठा  रहेंगी. तब तक ब्लॉगिंग  किस चिड़िया का नाम है ये तक नहीं मालूम था , बस रचनाएँ  उसपर पोस्ट करती कोई पढता और प्रतिक्रिया देता तो  आभार व्यक्त करने के लिए उसके ब्लॉग पर चली जाती. उन्हीं शुरूआती दिनों में जिन साथियों ने अपनी प्रतिक्रियाओं  से मेरा हौसला बढाया उनमे थे “श्यामल सुमन , दिगंबर नास्वा, नारद मुनि, शमा, अलबेला खत्री , श्याम सखा श्याम, प्रकाश गोविन्द , संगीता पुरी, डॉ. अशोक प्रियरंजन ,किशोर  चौधरी,  भूतनाथ ,कपिल अनिल गुप्ता, विजय कुमार सत्पति ,स्वप्निल, प्रीती ,अशोक कुमार पाण्डेय.अंशुजा  और  विजय तिवारी किसलय ( विजय जी ने  तो अपने ब्लॉग पर मेरा interview  ही छाप  डाला जो मेरी जिन्दगी का पहला साक्षात्कार  है 🙂 और मुझे हमेशा याद रहेगा  )आज इस मौके पर आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया क्योंकि अगर आपके उत्साह वर्धक शब्द न मिले  होते तो आज मैं ब्लॉगजगत में न टिकी होती.
फिर इसी क्रम में अचानक एक दिन एक फ्रेंड रिकुयेस्ट आई .और उस इंसान ने धकेल  दिया  मुझे एक्टिव ब्लॉगिंग  के इस दलदल में .जी हाँ वह थे इस ब्लॉगजगत के भीम, रुस्तमे ब्लॉग जगत, जंगली सांड, और भी न जाने क्या क्या  सबके चहेते महफूज़ मियां  .वही थे जिन्होंने सबसे पहले ब्लॉगवाणी  से परिचय कराया ,फिर टिप्पणी  की महत्ता समझाई. उनके ब्लॉग पर कैसे १०० टिप्पणी  और पाठक आते हैं  इस पर भाषण दिया(  हाँलांकि इन सब टिप्स  पर मैं कभी अमल नहीं कर पाई  ) आज भी ये सोच कर हंसी आती है कि कैसे वो अचानक आकर कहते थे ” अरे जल्दी चटका लगाइए न ” और भाग जाते थे ( शायद किसी और को यही कहने 🙂 ) और मैं बेचारी सोचती रह जाती थी कि ये चटका क्या बला है ..और ये कहाँ और कैसे लगाया जाता है .हा हा हा . और ब्लॉग जगत के बहुत से विद्वानों   से परिचय भी कराया. तो इस तरह वो मेरे ब्लॉग गुरु हुए 🙂 और इस तरह फिर हमने ब्लॉगिंग  शुरू की….. बहुत बहुत  शुक्रिया महफूज़ .
अब ब्लॉगिंग  तो शुरू कर दी पर  स्वभाव  से जल्दबाज़   होने के कारण वर्तनी दोष भी बहुत किया करती थी ऐसे में एक मसीहा बन कर आईं संगीता स्वरुप और हमने झट उन्हें अपना एडिटिंग का कार्यभार सौंप दिया. बस लिखती और मेल कर देती कि दी! देख लो ज़रा  और वो उसे शुद्ध कर वापस भेज देतीं और मैं उसे पोस्ट कर देती..मजे की बात तो यह कि वह जो अशुद्धियों को ठीक करतीं मुझे वो दिखाई ही नहीं पड़ती थीं 🙂 और मैं उनसे पूछती क्या ठीक किया है आपने ? ऐसा ही तो था ..हा हा हा हा. पर मेरी इन  बदतमीजियों(इसमें द पर हलंत नहीं लग रहा )  के बावज़ूद वो आज तक बड़े प्रेम से मेरा ये कार्यभार संभाले  हैं.वो मेरी सलाहकार, दोस्त, दी, एडिटर ,आलोचक सब हैं .और इसके लिए मैं उनका शुक्रिया अदा करना भी अपना हक़ समझती हूँ 🙂
अब तक मैं ज्यादातर कविताएँ  ही पोस्ट किया करती थी या कभी कभार कुछ छोटे लेख.या रिपोर्ताज .फिर एक दिन परिचय हुआ रश्मि रविजा से और उन्होंने मुझे कहा कि तुम सारी दुनिया घूमी हुई हो …कितनी यादें होंगी ..खट्टे मीठे पल होंगे .संस्मरण क्यों नहीं लिखती.?सुनकर पहले तो मैं बहुत हंसी कि ये मेरे बस की बात ही नहीं है . कैसे कोई अपने पल ऐसे पब्लिक में कहानी बना कर लिख सकता है ? और कोई पढेगा  क्यों? क्या पड़ी है किसी को, बोरिंग नहीं हो जायेगा?..पर वो मुझे यदा कदा उकसाती रहीं कि नहीं कोशिश  तो करो देखना लोग पसंद करेंगे .तो एक दिन उनका मान रखने के लिए मैने अपने जीवन का पहला संस्मरण लिखा “वेनिस की  एक शाम ” और ये देख कर मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि सच में लोगों ने उसे बहुत पसंद किया और यहाँ तक कि इन्हीं २-४ संस्मरण ने मुझे नामित संवाद सम्मान का अधिकारी भी बना दिया … तो रश्मि ! इस सलाह के लिए मैं आपकी हमेशा आभारी रहूँगी |  🙂
बस फिर क्या था हौसले बुलंद होते गए …नए दोस्त मिलते गए और कारवां बढता गया.
 शाहिद मिर्जा “शाहिद“- जो खुद एक बेहतरीन शायर हैं परन्तु मेरी अधकचरी नज्मों को जिन्होंने हमेशा पूरे दिल से सराहा.
समीर लाल – जिनकी उड़नतश्तरी कैसे हर नए ब्लॉग पर पहुँच जाती है ? ये बात मेरी आज तक समझ में नहीं आई.शायद वाकई कोई ट्रांसमीटर लगा है उसमें 🙂 रश्मि प्रभा – जिनकी कर्मठतता    ने हमेशा मुझे प्रेरणा दी अदा जी – जिनकी टिप्पणियों  से हमेशा चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है :). खुशदीप सहगल -जो अपने छोटे से जय हिंद के साथ हमेशा कोई बड़ी बात कह जाते हैं 🙂 दीपक मशाल – जो कि मुझे बड़े हक़ से डांट गए कि “सात समुन्दर पार सब के ब्लॉग तक आप चली जाती हैं ,और पड़ोस का एक ब्लॉग नहीं दिखाई देता आपको “(उनके  ब्लॉग एड्रेस मुझे नहीं मिल पा रहा था) ललित शर्मा– जिन्होंने हमेशा अपनी चर्चाओं में स्पंदन को स्थान दिया. रूप चन्द्र शाश्त्री – जिनकी कवितायेँ अपने आप में पूरा पाठ्यक्रम होती हैं पर वो किसी को भी सराहने में कभी गुरेज़ नहीं करते. मुक्ति– जिसने बहुत ध्यान से रचनाएँ पढ़ीं और बहुत ही संवेदनशीलता से प्रतिक्रिया की अनूप शुक्ल – जो जब  भी ब्लॉग पर आये कुछ सिखा कर गए.ओम आर्य – जिनकी लेखनी की मैं कायल हूँ.शरद कोकास – जिनकी कुछ तीखी कुछ मीठी प्रतिक्रिया हमेशा कुछ सिखा जाती है.जाकिर अली रजनीश– जिन्होंने मुझे संवाद सम्मान के काबिल समझा.निर्मला कपिला– जो अपनी टिप्पणियों   में भी अपनत्व  छोड़ जाती हैं.
और वाणी शर्मा, रेखा श्रीवास्तव, मनोज कुमार, एम०  वर्मा  , वंदना गुप्ता. जेन्नी शबनम ,फिरदौस, हरकीरत हीर, पाबला जी . हरी शर्मा,  राज भाटिया, अरविन्द मिश्र.श्रीमती अजीत गुप्ता .वंदना अवस्थी दुबे , मिथलेश  ( कृपया सभी नामों के आगे “जी” लगा लें 🙂 वो क्या है कि थोड़ी आलसी भी हूँ मैं.)आदि जिन्होंने मेरा हमेशा मान बढाया बेशक मैने कैसा भी लिखा सब ने   ख़ुशी ख़ुशी उसे झेला. और आज तक झेल रहे हैं इनका शुक्रिया अदा करके इनका मान नहीं घटाना चाहती मैं ,बस उनसे यही गुज़ारिश है कि अपना स्नेहिल साथ बनाये रखें.
यहाँ ब्लॉगजगत में ज्यादातर आपके काम की  सराहना करने वाले  ही मिलते हैं ..या फिर कुछ कुतर्क या विवाद करने वाले ..परन्तु मैं उन खुशनसीबों में से हूँ जिसे कुछ सच्चे मार्गदर्शक और आलोचक भी मिले जिन्होंने हमेशा मेरी गलतियों पर मेरा ध्यान आकर्षित कराया और बेहतर लिखने की  प्रेरणा दी उनमें सबसे पहला नाम है – आवेश,– जो धड़ल्ले  से कह देते हैं क्या बकवास लिखा है ? इसे कुछ और शार्प करो या ये लाइन हटाओ वगैरह – वगैरह . उस समय थोडा बुरा लगता है और मैं कह भी देती हूँ “ठीक है मुझे नहीं आता लिखना” पर जो पसंद आता है उसकी तारीफ भी ऐसी करते हैं कि आगा -पीछा सब माफ़ 🙂 फिर  शैफाली पाण्डेय ,शहरोज़, गौरव वशिष्ठ, दीपक शुक्ल आप सभी की निष्पक्ष समालोचना के लिए तहे दिल से आभार.
इन्हीं के साथ अनगिनत ऐसे नाम – अजय झा ,, अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी,  पी० डी०  ,   अल्पना वर्मा, अमिताभ श्रीवास्तव, विक्रम 7, अनिलकांत, रोहित ,  डॉ. अनुराग., कुश, नीरज गोस्वामी,सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, जी० के० अवधिया, संजय भास्कर, सुनीता शानू ,  अविनाश वाचस्पति ,काजल कुमार , गौतम राजरिशी,  दिलीप कठवेकर , रविंदर प्रभात, अनिल पुदस्कर ,चंडीदत्त ,शोभना चौरे ,  अपनत्व (सरिता)जो कभी – कभार अपनी झलक दिखा कर कर मेरी रचनाओं का मान बढा  गए.सबकी अपनी व्यस्तताएं  हैं…  आप सभी का कोटिश:  धन्यवाद .
अभी कुछ नए साथी जुड़े  हैं  मेरी रचनाओं से  -पंकज उपाध्याय, आशीष, कृष्णमुरारी प्रसाद,गिरीश बिल्लोरे , तरु, माधव, शीतल,रोहित, सुमन मीत, देवेश प्रताप,विनोद कुमार पाण्डेय, राजेन्द्र मिढ़ा, शेखर सुमन ,अनामिका. आप सब का तहे दिल से शुक्रिया अपना साथ बनाये रखियेगा. 
अब कुछ ऐसी टिपण्णीया जो थीं  जरा हट के और जिन्हें शायद मैं कभी नही भूल पाऊँगी.:)
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ 
http://shikhakriti.blogspot.com/2010/01/blog-post_27.html#comments
शरद कोकास

और अंत में उन सभी साथियों का शुक्रिया जिनके नाम मैं यहाँ भूल गई हूँ. मैं आप सभी की  दिल से आभारी हूँ और आशा करती हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
और ये ब्लॉग जो अब मेरी एक जरुरत ही नहीं ज़िंदगी बन गया है आज इसका जन्म दिन मानते हुए मेरे साथ केक काटेंगे और मोमबत्तियों में फूंक मारते  हुए ये कामना करेंगे कि ये ब्लॉग जगत जिसने बहुतों की  भावनाओं को पंख दिए, न जाने कितनो को निराशा की  गर्त से उठाकर सपनों  के उड़न खटोले पर बैठाया, कितनों  की  साहित्य साधना को नए आयाम दिए..इसे हम किसी भी गुटबाज़ी, द्वेष, या विवाद का कठघरा नहीं बनायेंगे.ये एक बहुत ही खूबसूरत मंच है भगवान इसे दीर्घायु करे.
इति  शुभम.

Many Happy Returns Of The Day.