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आज इन पलकों में नमी जाने क्यों है 
रवानगी भी इतनी थकी सी जाने क्यों है 
जाने क्या लाया है समीर ये बहा के 
सिकुड़ी सिकुड़ी सी ये हंसी जाने क्यों है.

खोले बैठे हैं दरीचे  हम नज़रों के 

आती है रोशनी भी  उन गवाक्षों से 

दिख रहा है राह में आता हुआ उजाला 
बहकी बहकी सी ये नजर जाने क्यों है
यादों की स्याही में आस यूँ खोई  है 
या कल की सेज पे आज यह सोई है
कानो में फुसफुसाती सी है कैसी आहट 
सहमी सहमी सी ये रूह जाने क्यों है. 
कोई पल छन्न से जैसे बिखरा है 
कोई तारा शायद कहीं पे गिरा है
आँखों के कटोरों में नमकीन पानी 
भीगी भीगी सी ये बरसात जाने क्यों है.