कभी उस दुखी दिखती, बिसूरती औरत के

कलेजे में  झाँक कर देखना

जिसे तुमने कह दिया कि सुखी तो है

फिर भी रोती है

क्या कमी है जो आँचल खारे पानी से भिगोती है.

कभी ज़रा प्यार से देखना उसका कंधा दबा कर

शायद फिर सच्चे लगें तुम्हें उसके वो आँसू

जिन्हें तुमने खारिज कर दिया मगरमच्छी बता कर.

ज़रा उसके शब्दों के पीछे जाकर

कोशिश करना समझने की उनके अर्थ

आखिर क्यों उसे दिखाना पड़ रहा है अपना दर्द .

क्यों नहीं उसके अन्दर छुपी हँसी बाहर आती

क्यों नहीं वह भी तुम्हारी तरह ही खिलखिलाती.

कभी सोचना अकेले में बैठकर

क्या मजबूरी रही होगी उसकी दुखी दिखाने की

क्या उसको भारी पड़ रही होगी आदत मुस्कुराने की ?

एक बार डाल कर देखना उसके जूते में पाँव अपना

हो सकता है कि कोई कोना काट रहा हो

या हो कोई चोबा उभरा जो दिख न रहा हो.

या फिर उस आलीशान जूते से बड़ा हो उसका पाँव

और तुम्हें दिख रही हो सिर्फ जूते की सजावट

नहीं महसूस हो रही उसकी वो कसावट,

जिसमें बंधा है उसका पाँव

सिकुड़ रही हैं उसकी उँगलियाँ

और दर्द अंगूठे से, रीढ़ पर होता हुआ

पहुँच रहा है मस्तिष्क तक.

टीस रहा है उसका वजूद और फिर,

दर्द झलक रहा है उसकी आँखों से.

एक बार,सिर्फ एक बार, ध्यान से देखना उसको

शायद अब तुम्हें उसका रिसता दर्द महसूस हो !