समेटे हर लम्हा खुद में
हर ख्वाब का इन पर बसेरा है
झुकती हैं जब हौले से ये
शर्मो हया की वो बेला है
जो उठ जाएँ कुछ अदा से
मन भंवर ये बबला हो जाये
ये पलकें हैं प्यारी पलके
न बोले पर सब कह जाएँ
जो दो पल झपकें ये पलकें
तन मन सुकून यूं पा जाये
जो मिल जाये अपना सा कोई
खुद पर ही फिर उसे बिठाएं
जो गिरें तो हो जाये रात सनम
जो उठे तो सवेरा हो जाए
जो मिल जाएँ किसी से ये पलकें,
अनुराग ही पूरा हो जाये.