ऑफिस से आकर उसने अलमारी खोली। पीछे से हैंगर निकाल कर निहारा। साड़ी पहनने की ख़ुशी ने कुछ देर के लिए सारा दिन भूख प्यास से हुई थकान को मिटा दिया। वह हर साल इसी बहाने एक नई साड़ी खरीद लिया करती है कि करवा चौथ पर काम आएगी। वर्ना यहाँ साड़ी तो क्या कभी सलवार कमीज पहनने के मौके भी नहीं आते. वह जल्दी जल्दी तैयार होकर पूजा की थाली सजाने लगती है. काफी देर तो पहले ही हो गई, थोड़ी देर में ही बस मंदिर में पूजा होगी। उसपर भीड़ भी तो इतनी होती है. वहां तो ३ बजे से महिलाएं जुटने लगतीं हैं कि जल्दी से पूजा कर चाय शाय पी ली जाए. सोचते सोचते उसने जल्दी से थाली में बायना, दीया आदि रखा और भारी साड़ी समेटते हुए कार में जाकर बैठ गई.
लंदन में रहने का वैसे एक आराम है. हर इलाके में ही कोई न कोई मंदिर मिल जाता है जहाँ सभी महिलाएं इकठ्ठा होकर थाली बांटने वाली पूजा कर लिया करतीं हैं. वर्ना तो घर में अकेले ही पूजा करो त्यौहार जैसा लगता ही नहीं, और घर से नुकल कर कहीं जाना न हो, कुछ लोग साड़ी श्रृंगार न देखें तो कुछ करने का मन भी कहाँ करता है. सोचती हुई वह मंदिर तक पहुँच गई कार पार्किंग में लगा कर निकली तो देखा बाहर कम से कम एक ब्लॉक दूर तक लाइन लगी हुई है. ये लो! हो गया व्रत। अब जब तक मेरा नंबर आएगा तब तक तो अंदर पूजा खत्म हो जाएगी। इसी भीड़ से बचने के लिए आजकल उसकी कुछ साथी सहेलियों ने अब अपने घरों में ही पूजा करना शुरू कर दिया है. पर वो, हर साल सोचती है अगले साल नहीं आएगी, फिर पता नहीं क्यों हर साल ही आ जाती है. उसे वहां सजी संवरी दुल्हन सी महिलाएं देखना बहुत अच्छा लगता है.
जाने कब यही सब सोचते सोचते लाइन मंदिर के द्वार तक पहुंच गई. उसने अंदर झांककर देखा पूरे हॉल में खूबसूरती से फूलों की सजावट की गई थी। लग रहा था किसी के विवाह का आयोजन है. दरवाजे तक महिलाओं के घेरे बने हुए थे. अभी अभी एक चक्र पूजा का समाप्त हुआ था तो वे महिलाएं लाइन से पुजारी के पास अपनी थाल का सामान रख कर अपना प्रसाद ले रही थीं फिर उनके बाहर निकलने की व्यवस्था पीछे के दरवाजे से थी जिससे कि एक जगह पर हौच पॉच न हो. यह अच्छा है इस शहर में हर काम में व्यवस्था और अनुशासन दिखाई देता है. वरना अपने यहाँ तो त्योहारों पर मंदिर जाना ही मुहाल। मंदिर के अन्दर भी दिमाग में यही चलता रहता है कि बाहर उतारी चप्पल वापस मिलेगी या नहीं.
पूजा के दूसरे चक्र के लिए महिलाएं छोटे छोटे गोले बनाकर बैठने लगीं थीं, वह भी उन्हीं में से एक घेरे में जाकर बैठ गई. आसपास नजर घुमाई तो एक से एक बढ़कर साड़ी , लहंगे और सूट में महिलायें सजी धजी हुई थीं. अपने सबसे अच्छे, भारी जेवर और कपड़ों को शायद इसीदिन के लिए वे संभाल कर रखती हैं. नव वधुओं का श्रृंगार तो देखते ही बन रहा था. लगता है जैसे अभी अभी जयमाला के स्टेज से उठकर आ रही हैं. यूँ बड़ी उम्र की महिलायें भी कम नहीं लग रहीं थीं. अच्छा ही था. भूख प्यास से मन हटाने के लिए कुछ समय इस श्रृंगार के लिए पार्लर में बिता आओ. बुरा भी क्या था. आखिर जिसके लिए ये सब कर रही हैं कुछ खामियाजा वो भी तो भुगतें. उनकी लम्बी उम्र होगी तो उनकी अर्धांगिनी के हिस्से भी तो कुछ आये. तभी स्टेज पर बैठी कुछ महिलायें माइक लेकर घोषणा करने लगीं और पूजा शुरू होने की तैयारी करने की सूचना देने लगीं। इस दौरान लगातार वहां से पति – प्रेम के हिंदी फ़िल्मी गीत गाये जा रहे थे. “तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा, तुम्हीं देवता हो” “दीपक मेरे सुहाग का” पूजा की थाली घुमाई जा रही थी और कुछ के सुहाग साइड में लगी कुर्सियों में बैठ कर अपनी लाइफ लाइन बढाने वालियों को निहार रहे थे. कुछ के देवता बाहर अपने नौनिहालों को संभाले विचरण कर रहे थे तो कुछ बाहर कार में ही बैठे अपनी जिन्दगी के एक्सटेंड होने का इंतज़ार कर रहे थे. हंसी आने लगी उसे. क्या ड्रामा है ये सब. उसके ऑफिस का कोई अभी ये सब देख ले तो उन्हें समझाना मुश्किल हो जाये। सुबह ही एक कलीग से जिक्र किया तो जबाब आया “यू गाइज़ आर सेक्सिस्ट। क्या कोई व्रत पुरुष भी रखते हैं अपनी पत्नियों के लिए?” उसके पास जबाब नहीं था तो हंसी में यह कह कर कि हाँ हाँ अब सब रखते हैं, उसने पल्ला छुड़ाया था। अब तो भारत में भी इस त्यौहार के कितने तरीके बदल गए हैं. पर यहाँ – अभी तक तुम्हीं मेरे मंदिर… उसे खुद पर हंसी आने लगी. वह भी तो यही सब ड्रामे में शामिल होने आ गई है. पता नहीं क्यों, नहीं छोड़ा जाता उससे यह सब. यहाँ तो कोई मजबूरी नहीं है, कोई कुछ कहने वाला नहीं है. समाज का, लोगों का किसी का कोई भय नहीं। फिर भी।
अब माइक पर गीतों की आवाज बंद हो गई है और पुजारी जी ने कमान थाम ली है और उनकी कथा सुनाने के साथ पूजा शुरू हो गई है. एक एक अध्याय के बाद वहां बैठीं महिलाएं जो अब तक गीत गा रही थीं थाली घुमाने वाला गीत गातीं हैं और थाली घुमाई जाती हैं. फिर पुजारी जी कथा शुरू करते हैं और समय की मांग को देखते हुए वहां बैठे पतियों को भी पत्नी प्रेम की सीख देते जाते हैं.पूरे सात बार थालियां घुमाने के बाद पुजारी जी चाँद निकलने का समय बताते हैं और शुभकामनाओं के साथ पूजा समाप्त हो जाती है.
चाँद निकलने का समय तो पता है पर चाँद दिखेगा भी या नहीं, पता नहीं। हर साल की वही गाथा है. लंदन के मौसम का कुछ पता नहीं। बादल हो गए तो हो गए. पूरी रात न दिखे। नहीं तो एकदम समय पर चमक जाए. पुजारी जी भी कह देते हैं की समय से १० – १५ मिनट तक इंतज़ार करके व्रत तोड़ लेना। आखिर देश काल की अपनी सीमाएं हैं. और आसमान में निकले चाँद या सेटेलाइट पर, है तो चाँद ही. देखना है, कहीं भी देख लो. वह यह सोचकर कर घर आ जाती है कि तब तक कुछ खाना बना लेगी। चाँद निकला तो ठीक है. नहीं तो भारत में घर में फ़ोन करेगी वहां निकल जायेगा, वे लोग व्रत तोड़ चुके होंगे तो वह भी इंटरनेट पर चाँद देखकर खाना खा लेगी। यूँ हिन्दी फिल्मों में तो कितना भव्य लगता है सब. और यहाँ देखो… भारत में तो हल्दीराम के रेस्टोरेंट जब से खुल गए हैं कोई इस दिन घर पर खाना बनाता या खाता ही नहीं। क्या बढ़िया सजी हुई थाली मिलती है बाजार में. देवता जी भी अपना गिल्ट कम करने के लिए कह देते हैं कि अरे कहाँ व्रत में परेशान होओगी, वो नया रेस्टोरेंट खुला है न , वहां बुक करा दिया है मैंने डिनर या यहीं मंगवा लेते हैं हल्दीराम से थाली. पर यहाँ अभी भी पुरानी घिसी पिटी परम्पराएँ चल रही हैं. यहाँ आज भी वही सब, उसी तरीके से होता है जैसा वे पीछे देख छोड़ आये हैं. उसके बाद जमुना में तो बहुत पानी बह गया. पर यहाँ के थेम्स का पानी वहीँ का वहीँ ठहर गया है जैसे. आखिर अपनी संस्कृति और परम्परा को बनाये रखने का ठेका जो उठाया हुआ है. बेचारे प्रवासियों के पास अपने को भारतीय साबित करने के यही कुछ तो मौके होते हैं न.
In Hindu religion Karwa chauth have very important festival which is celebrated by marries couple.very lovely festival for indian hindu couple.thanks for sharing a lovely story based on Karwa Chauth.
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