जीवन में छोटी छोटी खुशियाँ कितनी मायने रखती हैं इसे किसी को समझना हो तो उसके जीने के ढंग से समझा जा सकता था। कोई भी हालात हो या समस्या अगर उसका हल चाहिए तो बैठकर रोने या अपनी किस्मत को कोसने से तो कतई नहीं निकल सकता । हाँ ऐसे समय में सकारात्मकता से सोचा जाये तो जरूर कुछ समाधान निकल सकता है। और यदि न निकले तो जो होना है वो होकर ही रहेगा इस दशा में भी रोते रहने का कोई औचित्य नहीं होता। बल्कि कभी कभी हम इस नकारात्मक दल दल में इस कदर धस जाते हैं कि बची खुची खुशिया भी गँवा देते है।
उससे बेहतर है कि हालात अनुकूल हों या प्रतिकूल एक स्मित हमेशा रहे, जिसे देख कर सामने वाले को भी सुकून आये और फिर what goes around comes around. वह मुस्कान जरूर लौट कर आपके पास आएगी। कुछ ऐसा ही फलसफा था उनका जिसका हर लफ्ज़ वे जीते भी थे। मुश्किल कुछ भी रही हो हर पल को भरपूर जीना और अपने आसपास सबको जीना सिखाना यही शायद लक्ष्य था उनका।
और इसीलिए आज भी हर पल वह मुस्कान मेरे साथ ही रहती है।
और आज –
उससे बेहतर है कि हालात अनुकूल हों या प्रतिकूल एक स्मित हमेशा रहे, जिसे देख कर सामने वाले को भी सुकून आये और फिर what goes around comes around. वह मुस्कान जरूर लौट कर आपके पास आएगी। कुछ ऐसा ही फलसफा था उनका जिसका हर लफ्ज़ वे जीते भी थे। मुश्किल कुछ भी रही हो हर पल को भरपूर जीना और अपने आसपास सबको जीना सिखाना यही शायद लक्ष्य था उनका।
और इसीलिए आज भी हर पल वह मुस्कान मेरे साथ ही रहती है।
और आज –
बड़ी अलमारी की ऊपरी शेल्फ के
एक कोने में रखी पापा की घड़ी,
आज उचक कर आ गिरी है.
कहने लगी क्यों
मुझे बंद अलमारी में जगह दी है
चलते वक़्त के साथ भी थम सी गई हूँ
अकेले पड़े पड़े मैं अब थक गई हूँ.
देख मेरी नाड़ियों में अब भी रवानी है
एक कोने में रखी पापा की घड़ी,
आज उचक कर आ गिरी है.
कहने लगी क्यों
मुझे बंद अलमारी में जगह दी है
चलते वक़्त के साथ भी थम सी गई हूँ
अकेले पड़े पड़े मैं अब थक गई हूँ.
देख मेरी नाड़ियों में अब भी रवानी है
जैसे धड़कन में किसी की अब भी जवानी है
सुन कुछ बातें हैं , जो मुझे आज करनी हैं।
तेरी सुननी है और कुछ अपनी कहनी है
तब नेह से उठा मैंने उसे कलाई से लगाया है
शायद पापा का मन आज फिर,
शायद पापा का मन आज फिर,
मेरी उंगली पकड़ टहलने का कर आया है ।
पापा मम्मी और हम तीनों बहने 🙂
So I am walking with him today on his birthday and saying Happy Birthday Papa 🙂
भावप्रवण रचना , पिता के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि . कर्मठ मनुष्य अपनी छाप छोड़ कर ही जाते है और दिलों में जिन्दा रहते है . उनको स्मृतियों को नमन
Shikha G aapki smarti rachanaaon ke saath aapke vichaar bhi samaaj ke liye sakaratmak va sunder hain.
काश कोई बिटिया सदैव पापा की उंगली पकड़ कर ही चलती रहती! कविता पढ़ कर भाव भीने-भीने हो गए।
क्या बात है शिखा, तभी तो मैं तुम्हारा फैन हूं। मेरी भी दो बेटियां हैं। उम्र में तुम मेरे बराबर ही होगी लेकिन अब लगता है शिखा भी तो मेरी बेटी जैसी ही है 🙂
सकारात्मक सोच ही जीवन को लक्ष्य तक ले कर जाती है । पापा के जन्मदिन पर यादों की पिटारी का भावपूर्ण तोहफा ।
you made me cry today shikha !!
though i wish i too can remember my dad in such a positive way…..i know fathers never ever want to see their adorable daughters sad …
wish you everlasting happiness !!
anu
पापा के लिये भी बेटी एक कोमल अहसास होती है ! बहुत सुन्दर यादें !
जैसे मेरी बेटी आपकी फ़ैन है वैसे ही मैं आपके पापा का फ़ैन हूँ!! कन्याकुमरी की यह तस्वीर और सामने फैला विस्तृत समुद्र उनकी विशाल पर्सनालिटी का प्रतीक है! फिल्म थ्री इडियट्स की करीना याद आ गयी, जो अपनी बहन की शादी के मौक़े पर भी अपनी माँ की ओल्ड-फ़ैशण्ड उंगली पकड़कर शामिल हुई थी!! थामे रहिए पापा की उंगली. और उन्हें हैप्पी बर्थ-डे!
आज मैंने अपनी बिटिया की एक घटना शेयर की अपने पोस्ट पर और यहाँ एक बिटिया अपने पापा को याद कर रही है!!
शब्दों से परे ..
भावपूर्ण करते शब्द शब्द …!!नमन अंकल को ।
पढ़ते हुए , बस यादों में पापा और उनका दुलार छा गया …. सस्नेह !
भावप्रवण…..
आपकी इस प्रस्तुति को आज की जन्म दिवस कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर …. आभार।।
हम कितने भी बड़े हो जाए , पिता की अंगुली थामे एक अक्स साथ चलता है हमेशा !
पिता नमक इस छाँव को नमन !
पिता की यादें ,बेटी के मन में समय-समय पर जागती हैं और जब वह अनुभूति जागती है, उन क्षणों में बीच का व्यवधान खत्म हो जाता है.वे जीवन्त पल उनकी धरोहर हों जैसे !
ऐसे ही उँगली पकड़े कोई ले जाता रहे, सदा ही बच्चा बना रहे मन। पिताजी को जन्मदिन की शुभकामनायें।
बहुत ही सुंदर ह्रदय स्पर्शी रचना…यह यादें ही तो है जो सदा होंसला देती है।
पापा ने चलने के लिए, हौसले की सीख के साथ ऊँगली थाम ली न
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-02-2014) को "विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता" (चर्चा मंच-1517) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पापा जी के आत्ममन को जरूर राहत मिली होगी।
यादे ही जीने का सहारा बन जाती हैं।
मर्मस्पर्शी स्मृतियों का पिटारा ….
सकारात्मक सोच वाली बात से बिलकुल सहमत हूँ , और पापा की याद में लिखी कविता बहुत ही अच्छी ।
बहुत कोमल अहसास…दिल को छू गए…
Tender feelings-my tributes!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
मन भीगा और एक मुस्कान भी होठों से गुज़र गई … कई बार ऐसा होता है …
मन को छूती पोस्ट …
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