पापा तुम लौट आओ ना,
तुम बिन सूनी मेरी दुनिया,
तुम बिन सूना हर मंज़र,
तुम बिन सूना घर का आँगन,
तुम बिन तन्हा हर बंधन.
 पापा तुम लौट आओ ना

याद है मुझे वो दिन,वो लम्हे ,
जब मेरी पहली पूरी फूली थी,
और तुमने गद-गद हो
100 का नोट थमाया था.
और वो-जब पाठशाला से मैं
पहला इनाम लाई थी,
तुमने सब को
घूम -घूम दिखलाया था.
अपने सपनो के सुनहरे पंख ,
 फिर से मुझे लगाओ ना.
पापा तुम लौट आओ ना.

इस ज़हन में अब तक हैं ताज़ा
तुम्हारे दोरे से लौटने के वो दिन,
जब रात भर हम
अधखुली अंखियों से सोया करते थे,
 हर गाड़ी की आवाज़ पर
खिड़की से झाँका करते थे.
घर में घुसते ही तुम्हारा
सूटकेस खुल जाता था,
 हमें तो जैसे अलादीन का
 चिराग़ ही मिल जाता था.
 वो अपने ख़ज़ाने का पिटारा
फिर से ले आओ ना.
पापा बस एक बार लौट आओ ना.

आज़ मेरी आँखों में भरी बूँदें,
तुम्हारी सुद्रण हथेली पर
गिरने को मचलती हैं,
आज़ मेरी मंज़िल की खोई राहें ,
तुम्हारे उंगली के इशारे को तरसती हैं,
अपनी तक़रीर अपना फ़लसफ़ा
फिर से एक बार सुनाओ ना,
 बस एक बार पापा! लौट आओ ना.