सामने मेज
पर
पर
क्रिस्टल के
कटोरे में रखीं
कटोरे में रखीं
गुलाब की
सूखी पंखुड़ियाँ
सूखी पंखुड़ियाँ
एक बड़ा कप
काली कॉफी
काली कॉफी
और पल पल
गहराती यह रात
गहराती यह रात
अजीब सा हाल
है.
है.
शब्द अंगड़ाई
ले,
ले,
उठने को
बेताब हैं
बेताब हैं
और पलकें झुकी जा रही हैं.
***************
अरे बरसना है तो ज़रा खुल के
बरसो
किसी के सच्चे प्यार की तरह
ये क्या बूँद बूँद बरसते हो
तुम,
सीली छत से टपकती भाप की
तरह
बरसो
किसी के सच्चे प्यार की तरह
ये क्या बूँद बूँद बरसते हो
तुम,
सीली छत से टपकती भाप की
तरह
*************
कितना भी हरा हो घास का
मैदान
पाए जाते हैं कुछ धब्बे
सूखी घास के
उग ही आते हैं कुछ पोधे
खरपतवार से
ये जीवन भी तो कुछ ऐसा ही
है न ।
मैदान
पाए जाते हैं कुछ धब्बे
सूखी घास के
उग ही आते हैं कुछ पोधे
खरपतवार से
ये जीवन भी तो कुछ ऐसा ही
है न ।
*************
कुछ लोग
किसी के जैसे नहीं
होते
किसी के जैसे नहीं
होते
वह होते हैं कुछ जुदा कुछ
निराले
निराले
पांचवी ऋतू से, नौवीं दिशा से
या इन्द्रधनुष के आंठवे रंग
से
से
सबमें मिलकर भी सबसे अलग
आसमां के पार जैसे एक फ़लक
*******************
कोई शिकवा नहीं
शर्त नहीं
शक भी नहीं।
द्वेष नहीं
भेद नहीं
लेन देन भी नहीं।
बंद होंठों की इबादत है,
प्रेम मिज़ाज नहीं,
एक आदत है….
वाह …..
कवितायें लिखा करो न और ज्यादा…कितनी प्यारी हैं सभी की सभी…..
अनुलता
शिखा अब तो मान गए यार ……लेख …फिर रसोई चिंतन ..और अब यह क्षणिकाएँ ….और कितना लोहा मनवाओगी ..भाई …:)
शब्द अंगड़ाई ले,
उठने को बेताब हैं
और पलकें झुकी जा रही हैं.
कमाल करती हैं आप भी…| अब सारे खूबसूरत शब्द तो आपके पास पहुंचे हैं…हम तारीफ के लिए शब्द कहाँ से लाएं…:)
अंतिम वाली तो बहुत जबरदस्त है . साधुवाद आपको
कसम से दीदी !! मज़ा आ गया 🙂
वाह शिखा,साबित कर दिया – 'कुछ लोग किसी के जैसे नहीं होते
होते हैं एकदम निराले,
पांचवी ऋतू से, नौवीं दिशा से
या इन्द्रधनुष के आंठवे रंग से .
सबमें हो कर भी अलग
आसमां के पार जैसे एक और फ़लक !'
बेतरतीब से ख्यालों में
उतर आई है
एक कप काली कॉफ़ी
सुरूर के साथ
झुकी जा रही हैं पलकें
पर ख्याल हैं कि
इन्द्रधनुष के सात रंगों से इतर
खोज रहे हैं आठवां रंग
बेखयाली में ही
पहुँच गए हैं आसमां से पार
अलग फलक पर
झुकी पलकों से
हरे मैदान में सूखी घास को
देखते हुए
बंद होठों से
करते हुए इबादत
महज़ प्यार ही नहीं
ये भी है ज़िन्दगी
जीने की एक आदत ।
बहुत खूब । अब इससे ज्यादा क्या लिख सकती हूँ ?
अरे क्या बात है। यही तो थे ख्याल। परफेक्ट दी 🙂
prem mizaz nahi aadat hai….
So sweet !
so nice…………………
बेतरतीब से ख्यालों में
उतर आई है
एक कप काली कॉफ़ी
सुरूर के साथ
झुकी जा रही हैं पलकें
bahut sunder kamal lajavab
badhai
rachana
आड़े तिरछे ख्यालों को क्या खूब सहेजा है आपने ।
पांचवी ऋतु से नवीं दिशा से …होते है कुछ लोग बहुत अलग से !
बेतरतीब होते हुए भी कितने करीने से सजे हैं ये ख्याल !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन मिलिए १६ वीं लोकसभा की नई अध्यक्षा से – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !
हम जैसे लोग क्या नही है यही सोच कर जिंदगी बिगाडते हैं ऐसे में ये इंद्रधनुष के आंठवे रंग से लोग जीना सिखा जाते हैं।
बढ़िया… अच्छा लगा पढ़कर
कोई शिकवा नहीं
शर्त नहीं
शक भी नहीं।
द्वेष नहीं
भेद नहीं
लेन देन भी नहीं।
बंद होंठों की इबादत है,
प्रेम मिज़ाज नहीं,
एक आदत है….
अरे ग़ज़ब है भाई…शिखा, बहुत सुन्दर बन पड़ी है ये कविता…बधाई
प्रेम एक आदत है … खुल के नहीं बरसता सीलन सा टपकता है … सामने एक खुला फलक है पर पलकें हैं जो बोझिल हुयी जा रही हैं …
गहरा एहसास लिए हैं ये पल … गज़ब लिखा है …
वाह, बेतरतीब ख़याल… ही इतना लाजवाब है यदि तरतीब में लिखा होता तो क्या होता….
वाह
As I website owner I conceive the content material here is very good, thanks for your efforts.
I was reading some of your posts on this site and I conceive this web site is really instructive! Continue posting.