माँ!आज़ ज्यों ही मैं
तेरे गर्भ की गर्माहट में
निश्चिंत हो सोने लगी
मेने सुना
तू जो पापा से कह रही थी।
और मेरी मूंदी आँखें
भर आईं खारे पानी से।
क्यों माँ! क्यों नही तू चाहती
की मैं दुनिया में आऊँ ?
तेरे ममता मयी आँचल में
थोड़ा स्थान मैं भी पाऊँ ?
भैया को तेरी गोद में
मचलते खेलते देख कर
मेरा मन भी
तेरे पल्लू में दुबकने को करता है
जब वो चूमता है तुझे
अपने गीले होठों से
तुझे गले लगाने को
मेरा दिल भी मचलता है
मुझे भी तेरे आँगन में
छम छम करके चलना है
तेरे हाथों से निबाला खाना है
तेरी उंगलियों से संवारना है।
सच माँ!मेरी निश्चल मुस्कान से
तेरी उदासी के बादल छट जाएँगे
जब देखेगी पल पल बढ़ते मुझको
तुझे दिन बचपन के याद आएँगे
ना कर इन खुशियों से दूर मुझे
वादा है ना बिल्कुल सताऊँगी
जब तू चाहेगी तब रोऊँगी
जब चाहेगी तब सो जाऊं गी।
भैया के खिलोनो को भी मैं
ना हाथ तनिक लगाऊंगी
और डोली में चढ़ते वक़्त भी
ना रोऊंगी ना तुझे रुलाऊंगी।
बस आने दे दुनिया में मुझको
तेरी अपनी हूँ ,ना कोई पराई हूँ
कैसे कर पाएगी तू खुद से दूर
मैं तो तेरी ही परछाई हूँ.
मैं तेरी परछाई हूँ

hey i am a Big AC of yours now…..fan will be small….[:)]
शिखाजी,
बहुत ही अच्छा लगा आपने इतनी भावमय रचना मुझसे साँझा की
बहुत ही सुन्दर भावनाए है, पड़ कर अच्छा लगा!
विडम्बना यह है की इस कु-कृत्य के लिया अक्सर नारी के ऊपर दबाव डाला जाता है
जाग्रति के इस अभियान में कदम आगे बड़ाने के लिए बहुत बहुत बधाई !!
Wow that was strange. I just wrote an incredibly long comment but after I clicked submit my comment didn’t appear. Grrrr… well I’m not writing all that over again. Anyhow, just wanted to say great blog!
I’m still learning from you, while I’m trying to achieve my goals. I absolutely liked reading everything that is written on your site.Keep the tips coming. I enjoyed it!