हम जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में “व्रत” का बहुत महत्त्व है हमें अपने बुजुर्गों को बहुत से उपवास करते देखा है,कुछ लोग भगवान को खुश करने के लिए उपवास रखते हैं ,कुछ लोग भोजन नियंत्रित (डाईट)करने के लिए उपवास करते हैं और कुछ लोग विरोध प्रदर्शित करने के लिए भी उपवास करते हैं . और हमेशा यही ख़याल आया है कि आखिर क्यों इतने उपवास किये जाते हैं
.तो आइये जानते हैं कि हम उपवास क्यों करते हैं.क्या भोजन को बचाने के लिए ? या व्रत के बाद ज्यादा खाने के लिए ? 🙂 शायद नहीं तो फिर –
हम उपवास क्यों रखते हैं.
व्रत को संस्कृत में उपवास कहा जता है – उप = पास , और वास = रहना ..अर्थात पास रहना ( ईश्वर के ) यानि मानसिक तौर पर ईश्वर के करीब रहना .तो फिर उपवास का भोजन से क्या सम्बन्ध ?-हम देखते हैं कि हमारी बहुत सी शक्ति भोज्य पदार्थ खरीदने में ,पकाने में ,खाने में और फिर पचाने में खर्च हो जाती है ,कुछ खास तरह का खाना हमारे मष्तिष्क को कुंठित और उत्तेजित भी करता है इसलिए कुछ दिन हम तय करते हैं कि सादा और हल्का खाना खाकर या खाना नहीं खाकर वो शक्ति बचायेंगे जिससे हमारा मष्तिष्क सतर्क और शुद्ध हो सके .जिससे हमारा ध्यान खाने से हट कर शुद्ध विचारों में लग सके और ईश्वर के करीब रहे.
इसके अलावा हम ये जानते हैं कि हर तंत्र को आराम की जरुरत होती है तो रोज़ की भोजन व्यवस्था से थोडा परिवर्तन हमारी पाचन प्रणाली के लिए बहुत बेहतर होता है .
आप जितना अपनी इन्द्रियों में लिप्त रहेंगे वो उतनी ही ज्यादा इच्छा करेंगी तो उपवास करके हम अपनी इन्द्रियों को वश में करना सीखते हैं जिससे हम अपने मष्तिष्क को फिर से तैयार कर सकें उसे सुकून दे सकें .
गीता में भी हमें “युक्ता आहार”(उचित भोजन ) लेने के लिए कहा गया है – यानि सात्विक भोजन ,ना ज्यादा कम ना बहुत ज्यादा .” .
तो यह रहा उपवास का लॉजिक … काश मेरी नानी ये मुझे बता पाती तो मैं भी हफ्ते में एक व्रत तो जरुर रखती :)….. कोई बात नहीं अब रख लेंगे
:)
(कुछ पुस्तकों और जन्चार्चाओं पर आधारित.)
चित्र गूगल साभार .
हम ऐसा क्यों करते हैं ? भाग २ ( उपवास.)

saargarbhit aalekh.
हम्म…एक के बाद एक आप सब सिखाती जा रही हैं हमें…अच्छा है, और बताइए..हम तो सुनने के लिए हैं ही बैठे हुए 🙂
अच्छी बात पता चली 🙂
मेरे ख्याल मै उपवास के दो लाभ है, एक तो हम सारा दिन कुछ खाते नही,( अच्छा है फ़िर रात को भी कुछ ना खाये) जिस से हमारे पेट को अराम मिलता है ओर हमारा स्वस्थ्य ठीक रहता है, दुसरा अगर हम उस दिन का बचा खाना किसी भुखे को दे दे तो उस् बेचारे का पेट भी भर जायेगा…
बहुत अच्छे से विश्लेषण किया है…और उपवास के पीछे का वैज्ञानिक दृष्टिकोण स्पष्ट किया है.
बहतु सारी बातें पता चलीं…ऐसे ही गहन चिंतन-मनन कर पोस्ट लिखती रहो…हम सबका भला हो जाएगा…:)
आज कल कहाँ अध्यात्म में गुम हो रही हो :):)
ब्लोगवाणी क्या गयी तुमने संन्यास ग्रहण कर लिया है?
हा हा हा …
वैसे बहुत अच्छी जानकारी और सीख मिल रही है तुम्हारे इस प्रयास से…..बहुत बढ़िया पोस्ट
जितने भी उपवास हमारे ग्रंथों मे दिये गये हैं वो सब मौसम,के हिसाब से स्वस्थ रहने के लिये दिये गये हैं। उनके पीछे और भी बहुत से कारण हैं मगर हम लोगों ने उनका स्वरूप बदल दिया है मेरी सहेली जिस दिन सोमवार का व्रत रखती है उस दिन शाम को चार प्राँठे मलाई मे शक्कर डाल कर खाती है — हा हा हा बहुत अच्छा आलेख है। इस विषय पर पूरी जानकारे के लिये कल्यान गीता प्रेस गोरख पुर से व्रतोत्सव अंक 2004 मंगवा कर पढें उसमे सभी व्रत और उत्सवों का प्रयोजन दिया गया है। शुभकामनायें
उपवास करके हम अपनी इन्द्रियों को वश में करना सीखते हैं
मुख्य बात यही है .. बाकी सब गौण .. पर आजकल हमलोग इंद्रियों को वश में न खुद करना चाहते हैं और न ही अपने बच्चें को इंद्रियों को वश करना सिखलाना चाहते हैं .. उसका फल जब भुगतने को मिलता है .. तो सब समझ में आने लगता है .. पर तबतक बहुत देर हो चुकी होती है।
बढ़िया जानकारी …..दिया आपने .
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बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने .धन्यवाद
पता है जितनी ख़ूबसूरत आप हैं ना….. उतना ही ख़ूबसूरत आप लिखतीं भी हैं…. आज तो आपने बहुत ही सुंदर पोस्ट लिखी है…. बिलकुल अपनी सीरत जैसी…. बियुटी और ब्रेन का ग़ज़ब का कॉम्बिनेशन है….
Aap vishleshan bahut achha kartin hain! Waise upwaas kaa jo bhi shatreey matlab hoga,wah raha nahi hai…kewal phalahaar ho to alag baat hai,lekin us din to zaroorat se zyada bharee aahaar liya jata hai..aaloo,saabudaanaa,yah sab starch hai.Alawa khoya aur paneer kee mithai bhi grahan kee jaatee hai..asli maqsad to kho jata hai!
bahut hi achchhi jankari dhany bad !
arganik bhgyoday.blogapot.com
बहुत ही पसंद आई है ये पोस्ट..
नानी मानकर ही सलाह ले लेते हैं. 🙂
अब से रखेंगे हम भी उपवास!!
हा हा!!
आपसे शब्दशः सहमत. उपवास , शरीर, मस्तिस्क , और कामनाओ पर विजय तथा अपने आप को सर्व शक्तिमान के पास महसूस करने का उपक्रम है. .वैसे आपकी नानी ने जरुर बताया होगा आपको उपवास के बारे , आप भले ही बताये या ना बताये…और आज के सन्दर्भ में उपवास एक कड़ी बन सकता है , अन्न उन लोगों तक पहुचने का जिनको दो समय का भोजन मुयस्सर नहीं है.
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आजकल तो लोगों ने उपवास का उपहास कर दिया है। जिस दिन उपवास करना होता है उस दिन सारा दिन ही रसोई में व्यतीत होता है। अच्छी और विचारक पोस्ट।
नयी नयी जानकारियों को आपने बड़े ही अछे ढंग से प्रस्तुत किया है.आभार
विकास पाण्डेय
http://www.vicharokadarpan.blogspot.com
एक गुज़ारिश है शिखा जी आप से—
http://maykhaana.blogspot.com/2010
/06/blog-post_246.html
पर russian language मे TV journalist क्या केह रहा है……..यदी आप बता दे तो क्रिपा होगी /
http://maykhaana.blogspot.com/2010/06/blog-post_246.html
उपवास के लाभ ही हैं ….यदि सही तरीके से किये जाएँ …
तन के साथ मन की भी शुद्धि हो जाती है !
एक बार एक आदमी डाक्टर के पास गया उसने कहा-डाक्टर साहब मुझे भूख नहीं लगती।
डाक्टर ने कहा- ये लो दो गोली, एक खाना खाने के बाद ले लेना दूसरी खाना खाने से पहले।
एक नासमझ सा सवाल मेरा है-
कृपया मुझे बताएं कि उपवास रखने के लिए क्या करना होगा। क्या संतोषी माता का सोलह शुक्रवार का व्रत रखना ठीक होगा या फिर..
सामने सेब को पड़ा देखकर भी उसे खाना नहीं होगा। अरे हां क्या उपवास के दौरान मैं लगभग एक किलो सेब.. चार केले और साबूदाने की खिचड़ी खा सकता हूं या नहीं।
आपकी पोस्ट अच्छी है..अन्यथा मत लीजिएगा…
सच तो यह शिखाजी की मैं भूखा नहीं रह सकता, लेकिन एक समय था जब भूख को जब्त करना जानता था।
पत्रकारिता के दौरान ही एक बार जब बस्तर के जंगलों में फंसा था तो आदिवासियों के द्वारा दी गई चीटियों की चटनी से पेट की भूख शांत करनी पड़ी थी।
अच्छी जानकारी.
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ekdam sahi hain
सही बताया आपने,
उपवास का अर्थ ही है,उप + वास,अर्थार्त ईश्वर के निकट वास करना या आत्म के निकट वास करना।
इन्द्रिय तृष्णा पर संयम रखकर ही आत्म निरिक्षण करने में सक्षम होते है। यही मुख्य कारण है।
बाकि भोजन का सम्मान,भोजन की बचत,शारीरिक शक्ति व पाचन क्रिया को आराम,स्वस्थ्य, और भुख को समझना आदि गौण है।
mere upwas karan to dono hai, thora bhagwan se kuchh milne ki lalak aur dieting bhi…….lekin ye baat maine bhagwan ko kah bhi di……….:)
main Thursday ko upwas rakhta hoon!!
as usual…….aap achchha updesh bhi dene lage ho..:)
shikha ji,
upwaas ka waigyanik aur dhaarmik mahatwa to aapne bata diya. ek tathya aur bhi dekhiye…
upwaas ke baad bhojan = kheer- puri+ fal ( fruit) + mithaai (sweets)= punya ke sath swadisht bhojan (mahgaai ka asar nahin kyunki ek baar mein hin 3no waqt ka khana kha liya) bachat bhale na ho par mann santusht hota. aur jab mann santusht to fir sansaar bhi sundar…
ek aur fayada dekhiye…ha ha ha ha nahin nahin bas…jyada fayda bata di to hamare sabhi raajneta upwaas karne lagenge…
bahut badhiya likh rahi hain, jaankari achhi mil rahi, dhanyawaad.
shubhkaamnayen.
डिओसा,
मज़ा आ गया, व्रत के बारे मैं आपकी जानकारी देखकर, हिन्दू पूजा-संस्कृति मैं ध्यान को विशेष महत्त्व दिया गया है, ध्यान करने के लिए मन की एकाग्रता की सर्वाधिक जरुरत होती है, जैसा की हम सभी जानते हैं भोजन के पश्चात शरीर मैं आलस्य बढ़ जाता है क्यूंकि आहार के पश्चात सारा शरीर तंत्र भोजन के पाचन की प्रक्रिया मैं व्यस्त हो जाता है, जिसके फलस्वरूप शेष प्रक्रियां शिथिल हो जाती हैं, यह स्थिति मानसिक एकाग्रता मैं बाधक होती है, यानि ध्यान सही नहीं हो पाता, इसीलिए ध्यान और पूजन के साथ व्रत यानि उपवास को भी रखा गया है, हर व्यक्ति का शरीर और मानसिक ढ्रदता, इस स्तर की नहीं होती की निराहार रहा जा सके, इसीलिए ऐसे आहार का विधान किया गया जिसके ग्रहण करने पर आलस्य न्यूनतम या न हो, वैसे व्रत की व्यवस्था प्राचीनतम समय मैं योगिओं और साधकों के लिए ही थी किन्तु समाज मैं सात्त्विकता रहे इसीलिए व्रत की व्यवस्था को गृहस्थों के लिए भी खोल दिया गया,
आज भी भारतीय ग्रामीण परिवारों मैं व्रत को बहुत महत्तव दिया जाता है,
एक बहुत अच्छे ब्लॉग विषय को देखकर बहुत ख़ुशी हुई,
Good Logic :), Ab to ek aadh Upwas hum bhi rakh lenge saal do saal me.
बहुत अच्छी जानकारी
achchha kaha aapne… ek aur baat seekhne ko mili….ab se mai bhi upvaas rkhoongi… ab tak badi mushkil se bas shivraatri ka vrat karti thi….agle bhag ka intzaar rahega.
बढ़िया जानकारी। शुक्रिया॥
Thank you shikha ji for the translation.
उप्वास और तपस्या का अस्ली कारन तो साधु महात्मा ही जाने….लेकिन मेरी नयी समझ ये है की ये बुरे समय और बुरे दिनो की भी तय्यारी होती है…..कभी १-२ दिन भुखे रेह्ना पडे या जमीन पे सोना पडे या कुछ और जो मन माफ़िक ना हो तो इन्सान टूटॆ नही..survive कर जाये /क्योन्कि सब के अच्छॆ दिनो की तरह बुरे दिन भी तय है /
और फ़िर ये practice बड्ती जाती है /हर खेल की तरह इस्के भी district level,state level,national level and international level के खिलाडी पाये जाते है-expertise level मे /
ये मेरी समझ है…..हो सक्ता है मै गलत होउ /
ज्योतिष के अनुसार जो ग्रह आपका कमजोर हैऔर अच्छे प्रभाव में नहीं है उसको उपवास के द्वारा ठीक करने की कोशिश की जा सकती है |जैसे आपका चन्द्रमा खराब है तो सोमवार का उपवास कर उसको ठीक किया जा सकता है |
बहुत अच्छी जानकारी दे रही है आप
आभार
Hi..
Wah kya lekh likha hai..kam se kam mere liye to ye bahut mahatvapurn raha, ab main logon ko apne saptah main 2 din ke upvas ka karan samjha sakta hun..
Ye batayen ki aise vilakshan IDEA kahan se aate hain..etne sargarbhit aalekh ko prastut karne ki badhayee sweekar karen.
Behatareen aalekh….
Deepak
शिखा जी, उपवास के महत्व को आपने खूबसूरती के साथ अपने लेख में प्रस्तुत किया है। उपवास का संधि-विच्छेद कर उसके अर्थों की व्याख्या ज्ञानवर्धक है। हमारे देश में खाद्य पदार्थों की कमी के कारण इसकी कीमत आसमान छू रही है और महंगाई की मार से जनता परेशान है। ऐसे में हमारे देश का हर परिवार अगर सप्ताह में एक शाम भी उपवास करे तो भोजन की कमी की समस्या से बहुत हद तक निजात पाया जा सकता है और साथ ही साथ हमारी आत्मशुद्धि व पेटशुद्धि भी हो जाएगी।
वैष्णवी वंदना
heheh..ye wala pata tha,,,,ye wala..maine apne pardada se poocha tha ..jab chhota tha…hehehe…:)
good
bahut achchha
You actually make it seem so easy with your presentation however I to find this matter to be actually something which I feel I’d never understand. It sort of feels too complicated and very broad for me. I’m having a look forward in your next publish, I’ll attempt to get the grasp of it!
An interesting discussion is worth comment. I think that you should write more on this topic, it might not be a taboo subject but generally people are not enough to speak on such topics. To the next. Cheers