सपाट चिकनी सड़क के किनारे 

कच्चे फुटपाथ सी लकीर 
और उसके पीछे 
कंटीली झाड़ियों का झुण्ड 
आजू बाजू सहारा देते से कुछ वृक्ष 
और इन सबके साथ चलती 
किसी के सहारे पे निर्भर 
यह कार सी जिन्दगी 
चलती कार में से ना जाने 
क्या क्या देख लेती हैं 
ये ठिठकी निगाहें.


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पल पल झपकती 
पुतलियों के मध्य 

पनपता एक दृश्य 
श्वेत श्याम सा 
तैरता खारे पानी में 
होता बेकल 
उबरने को 
होने को रंगीन 
हर पल 
जाने क्या क्या समाये रखती हैं 
खुद में ये ठिठकी निगाहें।
(शीर्षक अमित श्रीवास्तव जी से साभार।)