कभी देखो इन बादलों को!
जब काले होकर आँसुओं से भर जाते हैं,
तो बरस कर इस धरा को धो जाते हैं.
कभी देखो इन पेड़ों को,
 पतझड़ के बाद भी,
फिर फल फूल से लद जाते हैं,
ओर भूखों की भूख मिटाते हैं.
कभी देखो इन नदियों को,
पर्वत से गिरकर भी,
चलती रहती है,
अपना अस्तित्व खोकर भी
सागर से मिल जाती है.
 फिर क्यों हम इंसान ही ,
 दुखों से टूट जाते हैं,
एक गम का साया पड़ा नही की,
मोम बन पिघल जाते हैं.
क्यों हम नही समझते
इन प्रकृति के इशारों को,
हर हाल में चलने के इस ,
जीवन के मनोभावों को.
कभी इस बादल की तरह,
अपने आँसुओं से ,
किसी के पाओं धो कर देखो!
कभी इन पेड़ों की तरह,
अपने दुख के बोझ को,
किसी के सुख में बदल कर देखो.
इस नदियों की तरह,
 किसी की पूर्णता के लिए,
ख़ुद को मिटा कर देखो.
कायनात ही
इंसान के सुख-दुःख का आधार है
 इस प्रकृति के इशारों में ही ,
जीवन का सार है.