पिता माँ से नहीं होते
वह नहीं लगाते चिहुंक कर गले
नहीं उड़ेलते लाड़
नहीं छलकाते आँखें पल पल
रोके रखते हैं मन का गुबार
और बनते हैं आरोपी
देने के सिर्फ लेक्चर.
पर तत्पर सदा हटाने को 
हर कांटा बच्चों के पथ से
खड़े वट वृक्ष की तरह
देते छाया कड़ी घूप में
और रहते मौन
नहीं मांगते क़र्ज़ भी
कभी अपने पितृत्व का।