प्रेम दिवस कहो या valentine day ..कितना खुबसूरत एहसास है …आज के दौर की इस आपा धापी जिन्दगी में ये एक दिन जैसे ठहराव सा ला देता है .एक दिन के लिए जैसे फिजा ही बदली हुई सी लगती है ..फूलो की बहार सी आ जाती है…हर चेहरा फूल सा खिला दीखता है..कोई गर्व से , कोई ख़ुशी से , कोई उम्मीद से.. हाँ फूलो के दाम दोगुने हो जाते हैं..फिर भी हर हाथ में फूल दिखाई देते हैं …कोई लेने वाला है ..तो को देने वाला…कितना सुखद एहसास है.अब कुछ लोग कहेंगे बेकार के पचड़े हैं ..समय और पैसे की बर्बादी.क्या प्यार के लिए एक विशेष दिन का होना जरुरी है? ..बिना उसके प्रेम नहीं हो सकता ? तो जनाब प्रेम के इजहार की ये प्रथा आज की नहीं …बहुत पुरानी है ..हमारे देश में बसंत पंचमी के दिन पीले फूलों के साथ प्रेम इजहार की परंपरा न जाने कब से चली आ रही है…हाँ अब उसका स्वरुप जरुर बदल गया है..आज उन पीले फूलो की जगह सुर्ख लाल गुलाब और ग्रीटिंग कार्ड्स ने ले ली है..वैसे इस प्रेम दिवस को मनाने के लिए जरुरी नहीं की आप प्रेमी -प्रेमिका ही हों …ये दिवस आप हर उस इंसान के साथ मना सकते हैं जिसे आप प्यार करते हैं..फिर चाहे वो आपके भाई – बहन हों, माँ -पिता हों या फिर दोस्त…बस ये दिन एक बहाना है इस भौतिक वादी समय में थोडा प्यार बाँटने का ,थोडा प्यार पाने का..
खैर इस प्यार के बहुत से रूप होते हैं …एक रूप का एक नाम इंतज़ार भी है… तो आज उसी पर एक कविता अर्ज़ की है…

तुम्हें पता है?

रोज़ ही आती हूँ मैं
इस सागर तट पर
यूँ ही नंगे पांव,
सीली मिट्टी की छुअन
अहसास कराती है
तेरी मीठी हरकत सा
ये नमकीन सी हवा
सिहर जाता है मेरा तन
जैसे अभी पीछे से आकर
बना लेगा तू बाहों का घेरा
और मैं निर्जीव डाल सी
लचक जाउंगी तेरे आगोश में
कल फिर आएगा यही वक़्त
ये मद्धम-मद्धम सा सूर्य
यूँ ही उफनेंगी ये लहरे
तेरे प्यार की तरह
और चली जाएँगी
भिगो कर मेरे तलुवे
और मैं फिर इंतज़ार करूँगी
हमेशा, हर सुबह, इसी तरह.