रद्दी पन्ना –

सफ़ेद कोरे पन्ने सी थी मैं 

जिस पर जैसी चाहे 
इबारत लिख सकते थे तुम
पर तुमने भी चुनी काली स्याही 

यह सोच कर कि उसी से चमकेगा पन्ना 

पर भूल गए तुम 
उन काले शब्दों को उकेरना होता है 
बेहद एहतियात से 
तनिक स्याही बिखरी नहीं कि  

शब्द बदल जाते हैं धब्बों में

और फिर वह पन्ना 
जो सज सकता था किसी पुस्तक में 
रह जाता है बस एक रद्दी बनकर 
जिसमें सिर्फ 
मूंगफलियाँ लपेटी जा सकती है.
माचिस –
दोष तुम्हारा नहीं जान 
तुमने तो वही किया 
जो दस्तूर था
चाहा अपना भला 
सोचा अपने लिए
और बन गए घी का दीया
गुनाह तो मेरा था 
जो खुद को भुला 
बन गई डिब्बी माचिस की 
और जली तीली तीली तेरे लिए.

वापसी –
यूँ चलते चलते तेरे साए में 
राह से मिटा डाले कदमो के छापे भी 
जो उन्हीं के सहारे वापस जा सकती 
अब तो ढूँढनी होंगी नई राहें 
तलाशने होंगे जरिये
जोड़ना होगा सामान 
फिर से सफ़र के लिए 
यूँ तो उसी मंजिल पर लौटना 
अब आसां ना होगा.