Yearly Archives: 2011

“शब्-ए फुरक़त का जागा हूँ, फरिश्तों अब तो सोने दो, कभी फुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता…” कभी सोचा नहीं था कि इस पोस्ट के बाद यह श्रद्धांजलि इतनी जल्दी लिखूंगी. अभी इसी साल जून की तो बात है जब जगजीत सिंह का लन्दन में कंसर्ट था और वहां उनका ७० वां जन्म दिन मना कर आई थी उनके जन्म…

नादान आँखें. बडीं मनचली हैं  तुम्हारी ये नादान आँखें  जरा मूँदी नहीं कि  झट कोई नया सपना देख लेंगी.  इनका तो कुछ नहीं जाता  हमें जुट जाना पड़ता है  उनकी तामील में  करना पड़ता है ओवर टाइम .  अपने दिल और दिमाग की  इस शिकायत पर  आज रात खुली आँखों मे गुजार दी है मैने.  न नौ मन तेल होगा न राधा…

तम्बू लग चुके हैं, सजावट हो चुकी है और बस बारात का आना बाकी है. जी हाँ लन्दन में २०१२ में  होने वाले ओलंपिक  के लिए अभी लगभग पूरा एक साल पड़ा है .परन्तु लन्दन एकदम तैयार है.लगभग सारी तैयारियां हो चुकी हैं.स्टेडियम बनकर तैयार हैं.बस अन्दर की कुछ सजावट बाकी है जो जल्दी ही पूरी कर ली जाएगी. और……

रात के साये में कुछ पल मन के किसी कोने में झिलमिलाते हैं सुबह होते ही वे पल , कहीं खो से जाते हैं  कभी लिहाफ के अन्दर , कभी बाजू के तकिये पर कभी चादर की सिलवट पर  वो पल सिकुड़े मिलते हैं. भर अंजुली में उनको , रख देती हूँ सिरहाने की दराजों में  कल जो न समेट पाई तो ,…

आज हिंदी दिवस है.और हर जगह हिंदी की ही बातें हो रही हैं .मैं आमतौर पर इस तरह के दिवस या आयोजनों पर लिखने से बचती हूँ पर आज कुछ कहे बिना रहा नहीं जा रहा.आमतौर पर हिंदी भाषा के लिए जितने भी आयोजन होते हैं उनमें हिंदी को मृत तुल्य मान कर शोक ही मनाते देखा है.एक हँसती खेलती…

मेरी पिछली पोस्ट पर काफी विचार विमर्श हुआ. विषय का  स्त्री पुरुष के पूरक होने से , या उनके सम्मान से या फिर किसी तथाकथित नारी या पुरुष वाद से कोई लेना – देना  नहीं था. एक सीधा सादा सा प्रश्न था. कि क्या स्त्री विवाह को अपने करियर के उत्थान में बाधक महसूस करती है.? सभी विचारों का यहाँ उलेल्ख संभव नहीं फिर भी…

छतीस गढ़ के दैनिक  नवभारत में प्रकाशित एक आलेख. कुछ समय से ( खासकर भारतीय परिवेश में )अपने आस पास जितनी भी महिलाओं को अपने क्षेत्र  में सफल और चर्चित देख रही हूँ .सबको अकेला पाया है .किसी ने शादी नहीं की या कोई किसी हालातों की वजह से अलग रह रही हैं. और यह सवाल पीछा ही नहीं छोड़…

डेढ़ महीने की  छुट्टियों के बाद भारत से लौटी हूँ. और अभी तक छुट्टियों का खुमार बाकी है.कुछ लिखने का मन है पर शब्द जैसे अब भी छुट्टी पर हैं,काम पर आने को तैयार नहीं. तो सोचा आप लोगों को तब तक इन छुट्टियों में हुई मुलाकातों का ब्यौरा ही दे दूं. भारत जाने से पहले भी कुछ जाने माने…

सोमवार को भारत के लिए निकलना है. सो तैयारियों की भागा दौडी है.एक्साइमेंट इतनी है कि कोई बड़ी पोस्ट तो लिखी नहीं जाने वाली. इसलिए दौड़ते  भागते यूँ ही कुछ पंक्तियाँ ज़हन में कुलबुलाती रहती हैं.सोचा इन्हें ही आपकी नजर कर दूं ,तब तक, जब तक हम दिल्ली ,मुंबई आदि से घूम कर एक महीने बाद वापस नहीं आ जाते…

मुझे नृत्य से बेहद लगाव है और इसलिए टीवी की शौकीन ना होने पर भी उस पर पर आने वाले नृत्य के रियलिटी  कार्यक्रम मैं बड़े चाव से देखती हूँ .”नच बलिये” जैसे कार्यक्रमों में भारतीय नृत्य के अलावा सभी विदेशी और आधुनिक नृत्य शैली होने बाद भी वह डांस कार्यक्रम ही लगा करते थे.परन्तु  आजकल स्टार प्लस पर डांस का…