Yearly Archives: 2011

सूनसान सी पगडण्डी पर  जो हौले हौले चलता है. शायद मेरा वजूद है. जो करता है हठ,  चलने की पैंया पैंया   बिना थामे  उंगली किसी की.  डर है मुझे  फिर ना गिर जाये कहीं  ठोकर खाकर. नामुराद  जिद्दी कहीं का. …

पिछले कुछ दिनों बहुत भागा दौड़ी में बीते .२४ जून से २६ जून तक बर्मिघम  के एस्टन यूनिवर्सिटी में कुछ स्थानीय संस्थाओं और भारतीय उच्चायोग के सहयोग से तीन दिवसीय “यू के विराट क्षेत्रीय हिंदी सम्मलेन २०११” था .और हमारे लिए आयोजकों से फरमान आ गया था कि आपको भी चलना है और वहाँ अपना पेपर  पढना भी है. अब क्या बोलना…

तेरी मेरी जिन्दगी  उस रसीली जलेबी की तरह है जिसे देख ललचाता है हर कोई कि काश ये मेरे पास होती नहीं देख पाता वो उसके  गोल गोल चक्करों को  उस घी की तपन को  जिसमें तप कर वो निकली है. ************************* कभी कोई लिखने बैठे  कहानी तेरी मेरी  तो वो दुनिया की  सबसे छोटी कहानी होगी जिसमें सिर्फ एक…

मनोज जी ने अपने ब्लॉग पर प्रवासी पंछियों पर एक श्रंखला शुरू की है. जो मुझे बेहद पसंद है .क्योंकि उसमें मुझे अपने बचपन के बहुत से सवालों के जबाब मिल जाते हैं.ये कुछ पंक्तियाँ उन्हीं आलेखों से प्रेरित हैं. कहते हैं उड़ान परों से नहीं हौसलों से होती है पर क्या हौसला ही काफी है. हौसले के साथ तो …

देश के गंभीर माहौल में निर्मल हास्य के लिए 🙂 पृथ्वी  पर ब्लॉगिंग  का नशा देख कर कर स्वर्ग वासियों को भी ब्लॉग का चस्का लग गया. और उन्होंने भी  ब्लॉगिंग  शुरू कर दी. पहले कुछ बड़े बड़े देवी देवताओं ने ब्लॉग लिखने शुरू किये, धीरे धीरे ये शौक वहां रह रहे सभी आम और खास वासियों को लगने लगा…

लन्दन – पुस्तकों की दुकानों, पुस्तकालयों , प्रकाशकों , लेखकों का शहर .लेकिन इस शहर में तीन में से एक बच्चा बिना अपनी एक भी किताब के बड़ा होता है.जहाँ ८५% बच्चों के पास उसका अपना एक्स बॉक्स ३६० है , टीवी पर अपना कण्ट्रोल है, पूरा कमरा खिलोनो से भरा पडा है, ८१ % के पास अपना मोबाइल फ़ोन है.…

इंग्लिश समर की सुहानी शाम है,  अपोलो लन्दन के बाहर बेइन्तिहाँ  भीड़ है. जगजीत सिंह लाइव इन कंसर्ट है. “तेरी आवाज़ से दिल ओ ज़हन महका है तेरे दीद से नजर भी महक जाये ” कई दिनों से हो रहा यह एहसास जोर पकड़ लेता है. हम अन्दर प्रवेश करते हैं. थियेटर के अन्दर बार भी है. देखा लोग वहां से…

यूँ ही कभी कभी ठन्डे पड़ जाते हैं मेरे हाथ. तितलियाँ सी यूँ ही मडराने लगती हैं पेट में. ऊंगलियाँ करने लगती हैं अठखेलियाँ यूँ ही एक दूसरे से . पलकें स्वत: ही हो जाती हैं बंद. और वहाँ बिना किसी जुगत के ही कुछ बूंदे निकल आती हैं धीरे से. काश कि तेरे पोर उठा लें और  कह दें उन्हें मोती. या…

चाइल्ड ओबेसिटी पर मेरे पिछले लेख में बहुत से पाठकों ने बच्चों में दुबलेपन की शिकायत की.और कहा कि कुछ प्रकाश इस समस्या पर भी डाला जाये .मैं कोई डॉo  नहीं हूँ परन्तु इस समस्या के कुछ देखे भाले अनुभव हैं जिन्हें आपसे बांटना चाहती हूँ .शायद कुछ मदद हो सके. कुछ लोगों ने कहा कि बच्चे कुछ नहीं खाते.…

हवा हुए वे दिन जब बच्चे की तंदरुस्ती  से घर की सम्पन्नता को परखा जाता था. माताएं अपने बच्चे की बलाएँ ले ले नहीं थकती थीं कि  मेरा बच्चा खाते पीते घर का लगता है. एक वक़्त एक रोटी  कम खाई तो चिंता में घुल घुल कर बडबडाया  करती थीं ..हाय मेरे लाल ने आज कुछ नहीं खाया शायद तबियत ठीक नहीं है. नानी दादी से जब भी बच्चा…