भोपाल- यूँ यह शहर अनजान कभी ना था. गैस त्रासदी , ताल तलैये और बदलते वक़्त के साथ न्यू मीडिया और हिंदी साहित्य के बढ़ते हुए क्षेत्र के रूप में भोपाल हमेशा ही चर्चा में सुनाई देता रहा. परन्तु कभी इस शहर के दर्शनों का लाभ नहीं मिला अत: इस बार जब भारत प्रवास के दौरान श्री अनिल सौमित्र जी का निमंत्रण,…
लन्दन में ओलम्पिक जोश अपने चरम पर है.27 जुलाई को उद्घाटन समारोह है.परन्तु अफ़सोस यह कि हमें उद्घाटन की तो क्या पूरे खेलों में से किसी एक की भी टिकट नहीं मिली है. और हमें ही नहीं, हमारी पहुँच में जितने भी लोग हैं किसी को भी नहीं मिली है.ऐसे में हमने सोचा कि क्यों फिर ये छुट्टियां बर्बाद की जाएँ, जब…
हमारे पास रविवार शाम गुजारने के लिए दो विकल्प थे. एक बोल बच्चन और एक कॉकटेल .अब बोल बच्चन के काफी रिव्यू पढने के बाद भी हॉल पर जाकर जेब खाली करने की हिम्मत ना जाने क्यों नहीं हुई तो कॉकटेल पर ही किस्मत अजमाई का फैसला किया गया, यह सोच कर ओलम्पिक साईट में नए खुले मॉल का VUE सिनेमा चुना गया…
लरजती सी टहनी पर झूल रही है एक कली सिमटी,शरमाई सी थोड़ी चंचल भरमाई सी टिक जाती है हर एक की नज़र हाथ बढा देते हैं सब उसे पाने को पर वो नहीं खिलती इंतज़ार करती है बहार के आने का कि जब बहार आए तो कसमसा कर खिल उठेगी वह आती है बहार भी खिलती है वो कली भी…
बस काफी भरी हुई है .तभी एक जोड़ा एक बड़ी सी प्राम लेकर बस में चढ़ता है.लड़की के हाथ में एक बड़ा बेबी बैग है और उसके साथ के लड़की नुमा लड़के ने वह महँगी प्राम थामी हुई है.दोनो प्राम को सही जगह पर टिका कर बैठ जाते हैं. प्राम में एक बच्चा सोया हुआ है खूबसूरत कम्बल से लगभग पूरा…
क्या दे सजा उसको क्या फटकारे उसे कोई , हिमाक़त करने की भी जिसने इज़ाजत ली है ********* हमारे दिन रात का हिसाब कोई जो मांगे तो क्या देंगे अब हम उसके माथे पे बल हो, तो रात और फैले होटों पे दिन होता है. ************** उसकी पलकों से गिरी बूंद ज्यूँ ही मेरी उंगली से छुई हुआ अहसास कितने गर्म ये जज़्बात होते हैं . ************ तेरे दिल के पास जो …
रोमांच की भी अपनी एक उम्र होती है और हर उम्र में रोमांच का एक अलग चरित्र. यूँ तो स्वभाव से रोमांचकारी लोगों को अजीब अजीब चीजों में रोमांच महसूस होता है,स्काइडाइविंग , अंडर वाटर राफ्टिंग, यहाँ तक कि भयंकर झूलों की सवारी, जिन्हें देखकर ही मेरा दिल धाएं धाएं करने लगता है. मेरे ख़याल से रोमांच का अर्थ प्रसन्नता…
मैं नहीं चाहती लिखूं वो पल तैरते हैं जो आँखों के दरिया में थम गए हैं जो माथे पे पड़ी लकीरों के बीच लरजते हैं जो हर उठते रुकते कदम पर हाँ नहीं चाहती मैं उन्हें लिखना क्योंकि लिखने से पहले जीना होगा उन पलों को फिर से उखाड़ना होगा गड़े मुर्दों को कुरेदने होंगे कुछ पपड़ी जमे ज़ख्म और फिर उनकी दुर्गन्ध …
पुलिस कहीं भी हो हमेशा ही डरावनी सी होती है .इस नाम से ही दहशत का सा एहसास होता है .पुलिस नाम के साथ ही सख्त, क्रूर, डरावना, भ्रष्ट, ताक़तवर, असंवेदनशील और भी ना जाने कितनी ही ऐसी उपमाएं स्वंम ही दिमाग में चक्कर लगाने लगती हैं. यानि हाथ में डंडा लिए और कमर में पिस्तोल खोंचे कोई पुलिस वाला…
रौशन और खुली, निरापद राहों से इतर कई बार अँधेरे मोड़ पर मुड़ जाने को दिल करता है. जहाँ ना हो मंजिल की तलाश , ना हो राह खो जाने का भय ना चौंधियाएं रौशनी से आँखें. ना हो जरुरत उन्हें मूंदने की टटोलने के लिए खुद को, पाने को अपना आपा. जहाँ छोड़ सकूँ खुद को बहते पानी सा,…