Yearly Archives: 2012

तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं  साक्षी हैं हमारे उन एहसासात के   एक एक बूँद आंसू से जिन्हें  हमने साझा किया था  सागर की लहरों को गिनते  हुए. ******************************** इतनी देर तक जो  इकठ्ठा होते रहे उमड़ते रहे  घुमड़ते रहे  इन आँखों में. अब जो छलके तो  गुनगुने नहीं  ठन्डे लगेंगे  ये आंसू. ************************ * बंद होते ही पलक से  जो बूँद शबनम सी गिरती…

  अभी कुछ दिन पहले करण समस्तीपुर की एक पोस्ट पढ़ी कि कैसे उन्होंने अपनी सद्वाणी  से एक दुर्लभ सा लगने वाला कार्य करा लिया जिसे उन्होंने गाँधी गिरी कहा.और तभी से मेरे दिमाग में यह बात घूम रही है कि भाषा और शब्द कितनी अहमियत रखते हैं हमारी जिन्दगी में. यूँ कबीर भी कह गए हैं कि- ऐसी वाणी बोलिए , मन का आपा…

चॉकलेट,मिठाई  आलिंगन, चुम्बन. गुलाब और टैडी  सारे पड़ावों से गुजर  आखिर में  प्रेम का नंबर आ ही गया  सुना है आज प्रेम दिवस है. ************* रीत कुछ हम भी निभा लें, कुछ लाल तुम पहन लो  कुछ लाल मैं भी पहन लूं  चलो हाथ में हाथ डाल  कुछ दूर यूँ ही टहल आयें कमबख्त लाल फूल भी आज  बहुत महंगे हैं. *******************  खाली बगीचे से मन …

फरवरी के महीने में ठंडी हवाएं, अपने साथ यादों के झोकें भी इतनी तीव्रता से लेकर आती हैं कि शरीर में घुसकर हड्डियों को चीरती सी लगती हैं.फिर वही यादों के झोंके गर्म लिहाफ बनकर ढांप लेते हैं दिल को, और सुकून सा पा जाती रूह. कुछ  मीठे पलों की गर्माहट इस कदर ओढ़ लेता है मन कि पूरा साल…

अभी तक नस्लवाद का इल्जाम पश्चिमी विकसित देशों पर ही लगता रहा है.आये दिन ही नस्लवादी हमलों के शिकार होने वालों की खबरे आती रहती हैं. कभी ऑस्ट्रेलिया से, तो कभी ब्रिटेन से तो कभी अमेरिका से. पर क्या कभी आपने सुना या सोचा कि अंग्रेज़ भी कभी इस नस्लवाद का शिकार हो सकते हैं.कुछ अजीब लगता है ना ? पर आजकल…

फ़्रांस की राजधानी पेरिस – द सिटी ऑफ़ लव, भव्यता, संम्पन्नता, ग्लेमर का पथप्रदर्शक.बाकी दुनिया से अलग एक शहर, जिसकी चकाचौंध के आगे सब कुछ फीका लगता है. लन्दन आने वाले हर व्यक्ति के  मन में सबसे पहले इस फैशन  की इस राजधानी को देख लेने की इच्छा बलबती होने लगती है. लन्दन से कुल  ३४३ km  ( सड़क से ) दूर पेरिस तक जाने…

रद्दी पन्ना – सफ़ेद कोरे पन्ने सी थी मैं  जिस पर जैसी चाहे  इबारत लिख सकते थे तुम पर तुमने भी चुनी काली स्याही  यह सोच कर कि उसी से चमकेगा पन्ना  पर भूल गए तुम  उन काले शब्दों को उकेरना होता है  बेहद एहतियात से  तनिक स्याही बिखरी नहीं कि   शब्द बदल जाते हैं धब्बों में और फिर वह…

बहुत समय से भारत के प्रसिद्द आई आई टी के किसी छात्र से बातचीत करने की इच्छा थी.मन था कि जानू जिस नाम का दबाब बेचारे भारतीय बच्चे पूरा छात्र जीवन झेलते हैं उस संस्था में पढने वाले बच्चे क्या सोचते हैं.कई बार कोशिश की पर जब मैं फ्री होती तो उसके इम्तिहान चल रहे होते (गोया वहां पढाई से ज्यादा…