Yearly Archives: 2013

उसे इंडिया वापस जाना है. क्योंकि यहाँ उसे घर साफ़ करना पड़ता है ,  बर्तन भी धोने होते हैं ,  खाना बनाना पड़ता है.  बच्चे को खिलाने के लिए आया यहाँ नहीं आती.  जब उसे जुखाम हो जाए तो उसकी माँ नहीं आ सकती .  फिल्मो में होली,दिवाली के दृश्य देखकर उसे हूक उठती है. कि उसका बच्चा वह मस्ती नहीं…

मैं रणवीर कपूर की फैन नहीं हूँ , न दीपिका मुझे सुहाती है , और कल्कि तो मुझसे “जिन्दगी न मिलेगी दुबारा” में भी नहीं झेली गई. फिल्म का शीर्षक भी बड़ा घटिया सा लग रहा था। फिर भी लन्दन में यदा कदा मिलने वाला एक “सनी सन्डे”,कुछ दोस्तों के कहने पर हमने इन तीनो की फिल्म यह जवानी है दीवानी…

अपने देश से लगातार , भीषण गर्मी की खबरें  मिल रही हैं, यहाँ बैठ कर उन पर उफ़ , ओह , हाय करने के अलावा हम कुछ नहीं करते, कर भी क्या सकते हैं. यहाँ भी तो मौसम इस बार अपनी पर उतर आया है. तापमान ८ डिग्री से १२ डिग्री के बीच झूलता रहता है. घर की हीटिंग बंद किये महीना…

एक ज्योतिषी ने एक बार कहा थाउसे वह मिलेगा सबजो भी वह चाहेगी दिल सेउसने मांगापिता की सेहत,पति की तरक्की,बेटे की नौकरी,बेटी का ब्याह,एक अदद छत.अब उसी छत पर अकेली खड़ीसोचती है वोक्या मिला उसे ?ये पंडित भी कितना झूठ बोलते हैं. ************************ चाहते हैं हम कि बन जाएँ रिश्ते  जरा से प्रयास से  थोड़ी सी गर्मी से  और थोड़े से…

  आह हा आज तो त्रिशूल दिख रही है. नंदा देवी और मैकतोली आदि की चोटियाँ तो अक्सर दिख जाया करती थीं हमारे घर की खिडकी से। परन्तु त्रिशूल की वो तीन नुकीली चोटियाँ तभी साफ़ दिखतीं थीं जब पड़ती थी उनपर तेज दिवाकर की किरणें. एकदम किसी तराशे हुए हीरे की तरह लगता था हिमालय। सात रंगों की रोशनियाँ…

कैसे कहूँ मैं भारतीय हूँ  क्यों करूँ मैं गुमान  आखिर किस बात का  क्या जबाब दूं उन सवालों का  जो “इंडियन” शब्द निकलते ही  लग जाते हैं पीछे … वहीँ न ,  जहाँ रात तो छोड़ो  दिन में भी महिलायें  नहीं निकल सकती घर से ? बसें , ट्रेन तक नहीं हैं सुरक्षित क्यों दूधमुंही बच्चियों को भी  नहीं बख्शते…

इस शहर से मेरा नाता अजीब सा है। पराया है, पर अजनबी कभी नहीं लगा . तब भी नहीं जब पहली बार इससे परिचय हुआ। एक अलग सी शक्ति है शायद इस शहर में कि कुछ भी न होते हुए भी इसे हमने और हमें इसने पहले ही दिन से अपना लिया। अकेलापन है, पर उबाऊ नहीं है। सताती हैं अपनों की…

एक मित्र को परिस्थितियों से लड़ते देख, उपजी कुछ पंक्तियाँ  पढ़ा था कहीं मैंने  किसी का लिखा हुआ कि  “शादी में मिलता है  गोद में एक बच्चा  एक बहुत बड़ा  बच्चा”. अक्षम हो जाते हैं जब  उसे और पालने में  उसके माता पिता, तो सौंप देते हैं  एक पत्नी रुपी जीव को.  जिसे देख भाल कर ले आते हैं वे  किसी…

एक दिन  उसने कहा कि नहीं लिखी जाती अब कविता लिखी जाये भी तो कैसे कविता कोई लिखने की चीज़ नहींवो तो उपजती है खुद ही फिर बेशक उगे कुकुरमुत्तों सी,या फिर आर्किड की तरहहर हाल में मालकिन है वो अपनी ही मर्जी की।कहाँ वश चलता है किसी का, जो रोक ले उसे उपजने से। हाँ कुछ भूमि बनाकर उसे बोया जरूर जा सकता है। बढाया भी जा सकता…

होली आने वाली है। एक ऐसा त्योहार जो बचपन में मुझे बेहद पसंद था। पहाड़ों की साफ़ सुथरी, संगीत मंडली वाली होली और उसके पीछे की भावना से लगता था इससे अच्छा कोई त्योहार दुनिया में नहीं हो सकता।फिर जैसे जैसे बड़े होते गए उसके विकृत स्वरुप नजर आने लगे। होली के बहाने हुडदंग , और गुंडा गर्दी जोर पकड़ने लगी…