वो जो आसमां में रोशनी सी चमकी है अभी,

शायद तुम ही हो जिसकी रूह मुस्कुराई है।

निहारा है जो बड़ी बड़ी गोल गोल आंखों से,

तो शायद ये आब मेरी पलकों में उतर आई है।

ये जो मेरे दिल में अचानक से हूक उठती है कभी,

तुम्हारी ही रुबाई है जो मेरे शब्दों में कविताई है।

हो न हो ये तुम्हारा ही आशीष है मेरे सिर पर,

कि गहन उदासी में भी ताक़त सी मैंने पाई है।

जब भी गिरी हूँ, रोई हूँ, चोट खाई है जो कभी,

तुम्हारी आश्वस्ति जैसे मेरी नजर उतार आई है।