एक दिन पड़ोस की नानी और अपनी मुन्नी में ठन गई। अपनी अपनी बात पर दोनों ही अड्ड गईं। नानी बोली क्या जमाना आ गया है…  घड़ी घड़ी डिस्को जाते हैं,  बेकार हाथ पैर हिलाते हैं ये नहीं मंदिर चले जाएँ, एक बार मथ्था ही टेक आयें॥ मुन्नी चिहुंकी तो आपके मंदिर वाले डिस्को नहीं जाते थे? ये बात और…

लरजते होंटों की दुआओं का फन देखेंगे, दिल से निकली हुई आहों का असर देखेंगे, चाहे तू जितना दबा ले मन का तूफान मगर आज हम अपनी बफाओं का असर देखेंगे। गर लगी है आग इधर गहरी तो यकीनन सुलग तो रही होगी आंच वहां भी थोड़ी, उस चिंगारी को दे अपनी रूह की तपिश, हम हवाओं की रवानी का…

ताल तलैये सूख चले थे,  कली कली कुम्भ्लाई थी ।  धरती माँ के सीने में भी  एक दरार सी छाई थी।   बेबस किसान ताक़ रहा था,  चातक भांति निगाहों से,  घट का पट खोल जल बूँद  कब धरा पर आएगी….   कब गीली मिटटी की खुशबू  बिखरेगी शीत हवाओं में,  कब बरसेगा झूम के सावन  ऋतू प्रीत सुधा बरसायेगी।   तभी श्याम…

रो रो के धो डाले हमने, जितने दिल में अरमान थे।  हम वहाँ घर बसाने चले, जहाँ बस खाली मकान थे।  यूँ तो दिल लगाने की, हमारी भी थी आरज़ू,  ढूँढा प्यार का कुआँ वहाँ, जहाँ लंबे रेगिस्तान थे।  हम तो यूँ ही बेठे थे तसव्वुर में किसी के, बिखरे टूट के शीशे की तरह कितने हम नादान थे।  एक…

जानता है जल जायेगा  फिर भी  जाता है करीब शमा के वो  ये जूनून पतंगे का हमें,  इश्क करना सिखा गया।  बोस्कोदेगामा जब निकला कश्ती पर  खतरों से न वो अज्ञात था।  पर जूनून उसके भ्रमण का हमें  अपने भारत से मिला गया।  जो न होता जूनून शहीदों में  कैसे भला आजादी हम पाते  जो न होता जूनून भगीरथ को  कैसे…

कुछ कोमल से अहसास हैं  कुछ सोये हुए ज़ज्वात हैं  है नहीं ये ज्वाला कोई  सुलगी सुलगी सी आग है  कुछ और नहीं ये प्यार है।   धड़कन बन जो धड़क रही  ज्योति बन जो चमक रही  साँसों में बसी सुगंध सी  महकी महकी सी बयार है  कुछ और नहीं ये प्यार है।   हो कोई रागिनी छिडी जेसे  रिमझिम पड़ती बूंदे…

कंपकपाते पत्ते पर ठहरी एक बूँद ओ़स की बचाए हुए किसी तरह खुद को तेज़ हवा उड़ा न दे धूप कहीं सुखा न दे उतरी है आकाश से गिर न जाये धूल में पर आखिर मिलना पड़ता है उसे उसी मिट्टी में कंक्कड़ पत्थर के बीच ही और वो लुप्त हो जाती है उसी धूल मिटटी की धरा में प्राणी भी तो…

एक आंटी अंकल आये थे आज बड़ी सी चमचमाती कार में, वह बाते कर रहे थे दीदी से कुछ कागजों पर लिखा पढी भी की  सारा आश्रम देखा बाद में पूछा था उसने, तो दीदी ने बताया था, छोटू को लेने आये है छोटू को पूरा ग्लास दूध मिलेगा, बिना पानी मिला , मलाई वाला. और तीनों वक़्त का खाना भी,…

होरी खेलन चल दिए श्री मुसद्दी लाल कुर्ता धोती श्वेत चका चक, भर जेब में अबीर गुलाल. दबाये मूँह में पान, कि आज़ नही छोड़ेंगे संतो भौजी को तो, आज़ रंग के ही लौटेंगे. और फिर भोली छवि भौजी की, अंखियन में भर आई बिन गुलाल लाल भए गाल, होटन पे मुस्की सी छाई. आने लगी याद लड़कपन की वो…

कहने को तो ये भीड़ है सड़कों पर कदम मिलते लोगों का रेला भर पर इसी मैं छिपी है संपूर्ण जिंदगी किसी के लिए चलती तो किसी के लिए थमती किसी के लिए आगाज़ भर तो किसी को अंजाम तक पहुँचाती इस रेले मैं आज़ किसी के पेरो को लग गये हैं पंख कि नौकरी का आज़ पहला दिन है…