काली अँधेरी रात से हो सकता है  डर लगता हो तुमको  मैं तो अब भी स्याह रात में  तेरी याद का दिया जलाती हूँ। ये दिन तो गुजर जाता है  दुनिया के रस्मो रिवाजों में रात के आगोश में अब भी,  मैं गीत तेरे गुनगुनाती हूँ। दिन के शोर शराबे में  सुन नहीं सकता आहें मेरी इसलिए रात के संन्नाटे…

सुबह की चाय की प्याली और रफ़ी के बजते गीतों के साथ एक हुड़क आज़ भी दिल में हिलकोरे सी लेती है दिल करता है छोड़ छाड़ कर ये बेगाना देश और ये लोग ऊड जाएँ इसी पल थाम कर अपनो के प्रेम की कोई डोर। मन पंछी उड़ान भर रहा था उसके अपने ख़यालों में कि हक़ीक़त ने ली अंगड़ाई…

कुछ थे रंगबिरंगे सपने, कुछ मासूम से थे अरमान कुछ खवाबों ने ली अंगड़ाई कुछ थीं अनोखी सी दास्तान फिर चले जगाने इस संमाज को मिले हाथ से कुछ और हाथ बढ़ चले कदम कुछ यूँ पाने को अपने हिस्से का एक कतरा आसमान…… तपती धूप में नीमछांव सा, निर्जन वन में प्रीत गान सा स्वाती नक्षत्र की एक बूँद के…

ये कैसा महान देश है मेरा…. कल के कर्णधार ही जहाँ भूखे नंगे फिरते हैं भावी सूत्रधार जहाँ ढाबे पर बर्तन घिसते हैं सृजन करने वाली माँ का जहाँ आँचल सूखा रहता है और सृजन का भागीदार  नशे में डूबा रहता है ये कैसा महान देश है मेरा…. देश चलाने वाले ही जब देश को बेचा करते हैं और रखवाले…

तुम पर मैं क्या लिखूं माँ,तेरी तुलना के लिएहर शब्द अधूरा लगता हैतेरी ममता के आगेआसमां भी छोटा लगता हैतुम पर मैं क्या लिखूं माँ. याद है तुम्हें?मेरी हर जिद्द कोबस आख़िरी कहपापा से मनवा लेती थी तुम.मेरी हर नासमझी कोबच्ची है कहटाल दिया करती थीं तुम.तुम्हारा वह कठिन श्रम  तब मुझे समझ आता था कहाँ  तुम पर मैं क्या…

अहसास तेरी मासूम निगाहों का मेरी सर्द निगाहों से इस कदर मिला कि  सारी क़ायनात पीछे छोड़ कर मैं तेरी नज़रों मे मशगूल हो गया। तेरे दिल के सॉफ आईने मे देखा जो तसव्वुर अपना मैने सारे जमाने की मोहब्बत का हसीन अहसास अधूरा हो गया। सुनी जो धीमी-धीमी रुनझुन तेरे पावं मे खनकती पायल की मंदिर में बजती हुई घंटी…

कहीं सुनहरी बदन सेकती, कहीं किसी का बदन जलाती चिलचिलाती धुप कहीं रुपसी करती है डाइटिंग कहीं जान से मारती है भूख. कहीं फ़ैशन है कम कपड़ों का , कहीं एक ओड़नी को तरसता योवन कहीं  बर्गर ,कोक में डूबा कोई, कहीं कूड़े में वाड़ा पाँव ढूँढता बचपन. वही है धरती अंबर वही है, वही है सूरज, चाँद और तारे…

बंद खिड़की के पीछे खड़ी वो, सोच रही थी की खोले पाट खिड़की के, आने दे ताज़ा हवा के झोंके को, छूने दे अपना तन सुनहरी धूप को. उसे भी हक़ है इस आसमान की ऊँचाइयों को नापने का, खुली राहों में अपने , अस्तित्व की राह तलाशने का, वो भी कर सकती है अपने, माँ -बाप के अरमानो को…

पापा तुम लौट आओ ना, तुम बिन सूनी मेरी दुनिया, तुम बिन सूना हर मंज़र, तुम बिन सूना घर का आँगन, तुम बिन तन्हा हर बंधन.  पापा तुम लौट आओ ना याद है मुझे वो दिन,वो लम्हे , जब मेरी पहली पूरी फूली थी, और तुमने गद-गद हो 100 का नोट थमाया था. और वो-जब पाठशाला से मैं पहला इनाम…

हर सुबह आती है जैसे , रात के जाने के बाद. याद उनकी आती है, उनके खो जाने के बाद. ज़िंदगी की राह में, अक्सर ही ऐसा होता है,  गुनगुनाते हैं हम नगमे,  शब्द खो जाने के बाद. लेके ज़हन में घूमते हैं, तस्वीर किसी की यूँ सदा, कि  देख ना पाएँगे उन्हें हम, आँख नम होने के बाद. आधी-अधूरी…