इस आदम कद दुनिया में, लोगों का सैलाब है पर इंसान कहाँ हैं? रातों के अंधेरे मिटाने को, बल्ब तो तुमने जला दिए पर रोशनी कहाँ है? तपते रेगिस्तानों में भी बना दी झीलें तुमने पर आंखों का पानी कहाँ है? सजाने को देह ऊपरी, हीरे जवाहरात बहुत हैं पर चमकता ईमान कहाँ है? इस कंक्रीट के जंगल में मकान…