आलेख

*सिर्फ एक पंक्ति फेसबुक की दिवार पर – “मैंने अपनी महिला मित्र को छोड़ दिया. अब मैं आजाद हूँ.” और नतीजा… उस लडकी ने शर्मिंदगी और दुःख में आत्महत्या कर ली. *एक बच्ची ने फेस बुक पर एक इवेंट डाल दिया .कल उसका जन्म दिन है सभी को आमंत्रण .दूसरे दिन हजारों की संख्या में उसके घर आगे उपहार लिए…

तीन मध्यम वर्गीय १६- १७ वर्षीय  बालाएं आधुनिक पश्चिमी पोशाक , एक हाथ में स्टाइलिस्ट बैग्स और दूसरे में ब्लेक बेरी.इस काले बेरी  ने बाकी सभी मोबाइल को छुट्टी पर भेज दिया है आजकल. स्थान -महानगर की मेट्रो . शायद किसी कोचिंग क्लास में जा रहीं थीं या फिर आ रहीं थीं.पर उनकी बातों में कहीं भी लेश मात्र भी…

“शब्-ए फुरक़त का जागा हूँ, फरिश्तों अब तो सोने दो, कभी फुर्सत में कर लेना हिसाब आहिस्ता आहिस्ता…” कभी सोचा नहीं था कि इस पोस्ट के बाद यह श्रद्धांजलि इतनी जल्दी लिखूंगी. अभी इसी साल जून की तो बात है जब जगजीत सिंह का लन्दन में कंसर्ट था और वहां उनका ७० वां जन्म दिन मना कर आई थी उनके जन्म…

आज हिंदी दिवस है.और हर जगह हिंदी की ही बातें हो रही हैं .मैं आमतौर पर इस तरह के दिवस या आयोजनों पर लिखने से बचती हूँ पर आज कुछ कहे बिना रहा नहीं जा रहा.आमतौर पर हिंदी भाषा के लिए जितने भी आयोजन होते हैं उनमें हिंदी को मृत तुल्य मान कर शोक ही मनाते देखा है.एक हँसती खेलती…

मेरी पिछली पोस्ट पर काफी विचार विमर्श हुआ. विषय का  स्त्री पुरुष के पूरक होने से , या उनके सम्मान से या फिर किसी तथाकथित नारी या पुरुष वाद से कोई लेना – देना  नहीं था. एक सीधा सादा सा प्रश्न था. कि क्या स्त्री विवाह को अपने करियर के उत्थान में बाधक महसूस करती है.? सभी विचारों का यहाँ उलेल्ख संभव नहीं फिर भी…

छतीस गढ़ के दैनिक  नवभारत में प्रकाशित एक आलेख. कुछ समय से ( खासकर भारतीय परिवेश में )अपने आस पास जितनी भी महिलाओं को अपने क्षेत्र  में सफल और चर्चित देख रही हूँ .सबको अकेला पाया है .किसी ने शादी नहीं की या कोई किसी हालातों की वजह से अलग रह रही हैं. और यह सवाल पीछा ही नहीं छोड़…

मुझे नृत्य से बेहद लगाव है और इसलिए टीवी की शौकीन ना होने पर भी उस पर पर आने वाले नृत्य के रियलिटी  कार्यक्रम मैं बड़े चाव से देखती हूँ .”नच बलिये” जैसे कार्यक्रमों में भारतीय नृत्य के अलावा सभी विदेशी और आधुनिक नृत्य शैली होने बाद भी वह डांस कार्यक्रम ही लगा करते थे.परन्तु  आजकल स्टार प्लस पर डांस का…

लन्दन – पुस्तकों की दुकानों, पुस्तकालयों , प्रकाशकों , लेखकों का शहर .लेकिन इस शहर में तीन में से एक बच्चा बिना अपनी एक भी किताब के बड़ा होता है.जहाँ ८५% बच्चों के पास उसका अपना एक्स बॉक्स ३६० है , टीवी पर अपना कण्ट्रोल है, पूरा कमरा खिलोनो से भरा पडा है, ८१ % के पास अपना मोबाइल फ़ोन है.…

चाइल्ड ओबेसिटी पर मेरे पिछले लेख में बहुत से पाठकों ने बच्चों में दुबलेपन की शिकायत की.और कहा कि कुछ प्रकाश इस समस्या पर भी डाला जाये .मैं कोई डॉo  नहीं हूँ परन्तु इस समस्या के कुछ देखे भाले अनुभव हैं जिन्हें आपसे बांटना चाहती हूँ .शायद कुछ मदद हो सके. कुछ लोगों ने कहा कि बच्चे कुछ नहीं खाते.…

हवा हुए वे दिन जब बच्चे की तंदरुस्ती  से घर की सम्पन्नता को परखा जाता था. माताएं अपने बच्चे की बलाएँ ले ले नहीं थकती थीं कि  मेरा बच्चा खाते पीते घर का लगता है. एक वक़्त एक रोटी  कम खाई तो चिंता में घुल घुल कर बडबडाया  करती थीं ..हाय मेरे लाल ने आज कुछ नहीं खाया शायद तबियत ठीक नहीं है. नानी दादी से जब भी बच्चा…