संस्मरण

ग्रीष्मकालीन अवकाश, स्कूल वर्ष और स्कूल के शैक्षणिक वर्ष के  बीच गर्मियों में स्कूल की एक लम्बी छुट्टी को कहते है। देश और प्रांत के आधार पर छात्रों और शिक्षण स्टाफ को आम तौर पर छ: से आठ सप्ताह के बीच यह अवकाश दिया जाता है। जहाँ भारत में यह अवकाश सामान्यत: पाँच से छ: सप्ताह का होता है वहीँ संयुक्त…

यह साल खास था. कुछ अलग. अलग नहीं, बहुत अलग. इतना अलग कि मैं मुड़ मुड़ कर देखती रही, पूछती रही – “ ए जिन्दगी ! तुम मेरी ही हो न? किसी और से बदल तो न गईं? तुम ऐसी तो न थीं. न जाने कितना कुछ अप्रत्याशित घटा. कितने ही पल ऐसे आये जिन्हें दुनिया ख़ुशी कहती है. मैं…

तब डबल बेड पर चार और लोगों के साथ सिकुड़े – सिकुड़े लेट कर सोने में जो सुकून आता था, आज किंग साइज़ के पलंग पर फ़ैल कर सोने में भी नहीं आता. वह सुकून आपसी विश्वास का था. इस विश्वास का कि आजू बाजू जो लोग हैं वे अपने हैं, साथ हैं और हमेशा साथ और यदि हम साथ साथ हैं…

आज भी जब हो जाते हैं मन के विचार गड्डमड्ड डिगने लगता है आत्मविश्वास डगमगाने लगता है स्वाभिमान नहीं सूझती कोई राह उफनने लगता है गुबार छूटने लगती है हर आस तो दिल मचल कर कहता है तुम कहाँ हो ? यहाँ क्यों नहीं हो? फिर एक किरण आती है नजर भंवर में जैसे मिल जाती है डगर भेद सन्नाटा…

प्रिय बेटियों, पूरी आशा है तुम वहाँ कुशल पूर्वक होगी। हम यहाँ ठीक हैं। तुम्हारी मम्मी भी आ गईं हैं। वह भी ठीक हैं। हम रोज चाय के समय तुम लोगों को याद करते हैं। मम्मी तुम लोगों के समाचार देती हैं। उनकी बातें खत्म ही नहीं होतीं। ऐसा लगता है न जाने कब से नहीं बोलीं हैं। यह जगह…

  वो जो आसमां में रोशनी सी चमकी है अभी, शायद तुम ही हो जिसकी रूह मुस्कुराई है। निहारा है जो बड़ी बड़ी गोल गोल आंखों से, तो शायद ये आब मेरी पलकों में उतर आई है। ये जो मेरे दिल में अचानक से हूक उठती है कभी, तुम्हारी ही रुबाई है जो मेरे शब्दों में कविताई है। हो न…

वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि बाँट लुंगी कुछ भीगी बातें। पता चलता कि एक या दो दिन बाद उनका श्राद्ध है। मैं अवाक रह जाती। मुझे देश से बाहर होने…

आज शायद 22 साल बाद फिर इस शहर में यह सुबह हुई है। रात को आसमान ने यहाँ धरती को अपने प्रेम से सरोबर कर दिया है। गीली मिट्टी की सुगंध के साथ धरा महक उठी है। आपके इस शहर में आज फिर हूँ। हर तरफ आपके चिन्ह दिखाई पड़ते हैं। वह नुमाइश ग्राउंड में लगे बड़े से पत्थर पर…

लो फिर आ गया वह दिन. अब तो आदत सी बन गई है इस दिन लिखने की. बेशक पूरा साल कुछ न लिखा जाए पर यह दिन कुछ न कुछ लिखा ही ले जाता है. आप का ही असर है सब. मुझे याद है स्कूल में एक भाषण प्रतियोगिता थी. मैंने पहली बार अपनी टीचर के उकसाने पर भाग ले…

कल रात बिस्तर पर जल्दी चली गई थी. पड़ते ही आँख लग गई मगर थोड़ी देर में ही तेज तूफानी आवाजों से अचानक नींद खुल गई. डबल ग्लेज शीशों के बावजूद हवाओं का भाएँ भाएँ शोर घर के अंदर तक आ रहा था. बीच बीच में आवाज इतनी भयंकर होती कि लगता खिड़कियाँ तोड़ कर तूफ़ान कमरे में फ़ैल जाएगा.…