संस्मरण

हम जब बचपन में घर में आने वाली पत्रिकाएं पढ़ते तो अक्सर मम्मी से पूछा करते थे कि गर्मियों की छुट्टियां क्या होती हैं. क्योंकि पत्रिकाएं, गर्मियों में कहाँ जाएँ? कैसे छुट्टियां बिताएं, गर्मियों की छुट्टियों में क्या क्या करें और गर्मियों की छुट्टियों में क्या क्या सावधानी रखें, जैसे लेखों से भरी रहतीं। हमें समझ में नहीं आता था कि जिन गर्मियों की छुट्टी…

–“अरे तब तरबूज काट कर कौन खाता था. खेतों पर गए, वहीं तोड़ा घूँसा मार कर बीच में से, खड़ा नमक छिड़का और हाथ से ही खा लिया आखिर में रस बच जाता था तो सुढक़ लिए उसे यूँ ही. -दावतें भी मीठी और नमकीन अलग अलग होती थीं. एक- एक बालक सेर -सेर भर रबड़ी खा जाता था. घर के बुजुर्ग…

उस शहर से पहली बार नहीं मिल रही थी मैं, बचपन का नाता था. न जाने कितनी बार साक्षात्कार हुआ था. उस स्टेशन से, विधान सभा रोड से और उस एक होटल से. यूँ तब इस शहर से मिलने की वजह पापा के कामकाजी दौरे हुआ करते थे जो उनके लिए अतिरिक्त काम का और हमारे लिए एक छोटे से…

मुस्कुराहटें संक्रामक होती है बहुत तेजी से फैलती हैं साथ ही चिंता, दुःख जैसे वायरस के लिए एंटी -वायरल  भी होती है. फिर वह मुस्कुराहटें मरीज की हों या मरीज के साथ वाले की उनका प्रभाव सामने वाले पर अवश्य ही पड़ता है और इसी मुस्कराहट से उपजी सकारात्मकता से बेशक मुश्किलें न सुलझें पर कुछ वक्त के लिए भुलाई…

जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ था जब सीजन की पहली बर्फबारी हुई और कोई बर्फ में खेलने को नहीं मचला। हॉस्पिटल के चिल्ड्रन वार्ड में अपनी खिड़की के पास का पर्दा हटाया तो एक हलकी सी सफ़ेद चादर बाहर फैली थी पर खेलने के लिए मचलने वाला बच्चा बिस्तर पर दवा की खुमारी में आराम से सोया हुआ था. मैंने…

जीवन में छोटी छोटी  खुशियाँ कितनी मायने रखती हैं इसे किसी को समझना हो तो उसके जीने के ढंग से समझा जा सकता था। कोई भी हालात हो या समस्या अगर उसका हल चाहिए तो बैठकर रोने या अपनी किस्मत को कोसने से तो कतई नहीं निकल सकता । हाँ ऐसे समय में सकारात्मकता से सोचा जाये तो जरूर कुछ…

लंदन में इस साल अब जाकर मौसम कुछ ठंडा हुआ है. वरना साल के इस समय तक तो अच्छी- खासी ठण्ड होने लगती थी, परन्तु इस बार अभी तक हीटिंग ही ऑन नहीं हुई है. ग्लोबल वार्मिग का असर हर जगह पर है. वैसे भी यहाँ के मौसम का कोई भरोसा नहीं।शायद इसलिए   और हम जैसे दो नावों में सवार प्राणी इस…

 दिल्ली पुस्तक मेले का परिसर, खान पान में व्यस्त जनता। किसी भी मेले का अर्थ मेरे लिए होता है, कि वहां वह सब वस्तुएं देखने, खरीदने को मिलें जो आम तौर पर बाजारों और दुकानों में उपलब्ध नहीं होतीं। और यही उत्सुकता मुझे पिछले महीने के,भारत में प्रवास के आखिरी दिन की व्यस्तता के बीच भी दिल्ली पुस्तक मेले में खींच ले…

  आह हा आज तो त्रिशूल दिख रही है. नंदा देवी और मैकतोली आदि की चोटियाँ तो अक्सर दिख जाया करती थीं हमारे घर की खिडकी से। परन्तु त्रिशूल की वो तीन नुकीली चोटियाँ तभी साफ़ दिखतीं थीं जब पड़ती थी उनपर तेज दिवाकर की किरणें. एकदम किसी तराशे हुए हीरे की तरह लगता था हिमालय। सात रंगों की रोशनियाँ…

इस शहर से मेरा नाता अजीब सा है। पराया है, पर अजनबी कभी नहीं लगा . तब भी नहीं जब पहली बार इससे परिचय हुआ। एक अलग सी शक्ति है शायद इस शहर में कि कुछ भी न होते हुए भी इसे हमने और हमें इसने पहले ही दिन से अपना लिया। अकेलापन है, पर उबाऊ नहीं है। सताती हैं अपनों की…