पुस्तक परिचय

“पाँव के पंख”….एक उड़ान – शिखा वार्ष्णेय By डॉ . उषा किरण (लेखिका ) यात्रा तो सभी करते हैं परन्तु जब कोई लेखक जो साथ में पत्रकार और घुमक्कड़ भी हो तो मन में ही नहीं पाँव में भी पंख लग जाते हैं और जब वे यात्रा संस्मरण लिखने बैठती हैं तो उसमें कुछ विशेष तो होना ही है। शिखा की…

 ‘पुरवाई’ से साभार  डायरी साहित्य की एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक बिना किसी लाग लपेट के अपनी बात कहने को स्वतंत्र होता है क्योंकि उसका सर्वोपरि पाठक वह स्वयं होता है। पर उसे प्रकाशित करना अपने व्यक्तिगत विचारों को अपने से इतर पाठक तक पहुँचाना है। साहित्य की सभी विधाओं में से डायरी एक ऐसी विधा है जिसमें लेखक…

  पूरी किताब लिखकर छपवाने के बाद पुस्तक की लेखिका शिखा वार्ष्णेय जब बेहद, मासूमियत से हमसे पूछतीं हैं कि मेरी किताब ‘देशी चश्मे से लंदन डायरी’ किस विधा के अन्तर्गत आएगी तो उनकी सादगी पर बहुत प्यार आता है और कहीं पढ़ी ये पंक्तियाँ बरबस याद आ जाती है…. ‘लीक पर वे चलें जिनके पग हारे हों’। अब चाहें…

दिनांक 14 अगस्त 2017 को मुझे सूचना मिली है कि ‘संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती’ के बी.कॉम. प्रथम वर्ष, हिंदी (अनिवार्य) पाठ्यक्रम के अंतर्गत विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत टेक्स्ट बुक में मेरी एक कविता ‘पगडण्डी की तलाश’ को स्थान मिला है. मेरे लिए ख़ुशी की एक और वजह.…

कुछ दिन पहले ही मुझे डाक से “प्रवासी पुत्र” (काव्य संग्रह) प्राप्त हुई है. कवर खोलते ही जो पन्ने पलटने शुरू किये तो एक के बाद एक कविता पढ़ती गई और एक ही बैठक में पूरी किताब पढ़ डाली. ऐसा नहीं कि किताब छोटी थी बल्कि उसकी कवितायें इतनी गहन और प्रभावी थीं कि पता ही नहीं चला कब एक…

शौर्य गाथाएँ – जैसा कि शीर्षक से ही अंदाजा हो जाता है कि यह संकलन वीरों के पराक्रम और त्याग की कहानियों से भरा होगा. यह संग्रह पिटारा है उन रणबांकुरों  के जीवन की सच्ची कहानियों का, जो अपने घर – परिवार, सुख – सुविधाओं और यहाँ तक कि अपनी जान की भी तिलांजलि देकर डटे रहते हैं सीमा और रणक्षेत्रों पर कि उनके…

अरुणा सब्बरवाल जी का नया कहानी संग्रह जब हाथ में आया तो सबसे पहले ध्यान आकर्षित किया उसके शीर्षक ‘उडारी’ ने ।जैसे हाथ में आते ही पंख फैलाने को तैयार. लगा कि अवश्य ही यथार्थ के आकाश पर कल्पना की उड़ान लेती कहानियाँ होंगी और वाकई पहली ही कहानी ने मेरी सोच को सच साबित कर दिया । संग्रह के…

कौन कहता है कि युवा वर्ग किताबें (हिंदी) नहीं पढता ? यदि वह आपके लेखन से खुद को रिलेट कर पाता है तो अवश्य ही पढता है. पढता ही नहीं अपने व्यस्ततम जीवन से समय निकाल कर अपनी प्रतिक्रया भी आपको लिख भेजता है. हाँ शर्त यह है कि किताबें उसके पढने के लिए उपलब्ध तो हों. आई आई टी…

जब से देश छूटा हिंदी साहित्य से भी संपर्क लगभग छूट गया और उसकी जगह (उस समय तो मजबूरीवश) रूसी, ग्रीक, स्पेनिश,अंग्रेजी आदि साहित्य ने ले ली. कभी कभार कुछ हिंदी की पुस्तकें उपलब्ध होतीं तो पढ़ ली जातीं। कई बार बहुत कोशिशें करके कुछ समकालीन हिंदी साहित्य खरीदा भी जिनमें कई तथाकथित चर्चित पुस्तकें भी शामिल थीं. परन्तु उनमें से बहुत…

“स्मृतियों में रूस” को प्रकाशित हुए साल हो गया. इस दौरान बहुत से पाठकों ने, दोस्तों ने, इस पर अपनी प्रतिक्रया से मुझे नवाजा. मेरा सौभाग्य है कि अब भी, जिसके हाथों में यह पुस्तक आती है वो मुझतक किसी न किसी रूप में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य ही पहुंचा देते हैं.पिछले दिनों दिल्ली के स्वतंत्र पत्रकार शिवानंद द्विवेदी”सहर ने इस…