गद्य

ये उन दिनों की बात है, जब हवाई यात्रा आम लोगों के लिए नहीं हुआ करती थी और हवाई अड्डे तो फिर बहुत ही खास होते थे. आने वाले को लेने, पूरा कुनबा सज धज कर आया करता था.? साथ में फूल भी होते थे और कैमरा भी. अब क्योंकि यात्रा ख़ास होती थी तो सामान भी खास होता था…

ये उन दिनों की बात है जब कैमरा की घुंडी घुमाकर रील आगे बढ़ाई जाती थी। एक क्लिक की आवाज के साथ रील आगे बढ़ जाती थी एक रील में 15 , २३ या ३६ फोटो होते थे… जो कभी कभी एक ज्यादा या एक कम भी हो जाते थे. पूरे फोटो खिंच जाने पर कैमरे की एक टोपी घुमाकर…

ग्रीष्मकालीन अवकाश, स्कूल वर्ष और स्कूल के शैक्षणिक वर्ष के  बीच गर्मियों में स्कूल की एक लम्बी छुट्टी को कहते है। देश और प्रांत के आधार पर छात्रों और शिक्षण स्टाफ को आम तौर पर छ: से आठ सप्ताह के बीच यह अवकाश दिया जाता है। जहाँ भारत में यह अवकाश सामान्यत: पाँच से छ: सप्ताह का होता है वहीँ संयुक्त…

आज शायद 22 साल बाद फिर इस शहर में यह सुबह हुई है। रात को आसमान ने यहाँ धरती को अपने प्रेम से सरोबर कर दिया है। गीली मिट्टी की सुगंध के साथ धरा महक उठी है। आपके इस शहर में आज फिर हूँ। हर तरफ आपके चिन्ह दिखाई पड़ते हैं। वह नुमाइश ग्राउंड में लगे बड़े से पत्थर पर…

बच्चे न तो आपकी मिल्कियत होते हैं न ही फिक्स डिपॉजिट जिन्हें आप जब चाहें, जैसे मर्जी चाहें रख लें या भुना लें। बच्चे तो आपके माध्यम से इस समाज और दुनिया को दिया गया सर्वोत्तम उपहार हैं जिन्हें आप अपनी सम्पूर्ण क्षमता और अनुराग के साथ पालते हैं, निखारते हैं और इस दुनिया के लायक बनाते हैं। उनपर आपका…

बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा। न जाने क्यों नहीं लिखा। यूँ व्यस्तताएं काफी हैं पर इन व्यस्तताओं का तो बहाना है. आज से पहले भी थीं और शायद हमेशा रहेंगी ही. कुछ लोग टिक कर बैठ ही नहीं सकते। चक्कर होता है पैरों में चक्कर घिन्नी से डोलते ही रहते हैं. न मन को चैन, न दिमाग को, न ही पैरों को.…

लो फिर आ गया वह दिन. अब तो आदत सी बन गई है इस दिन लिखने की. बेशक पूरा साल कुछ न लिखा जाए पर यह दिन कुछ न कुछ लिखा ही ले जाता है. आप का ही असर है सब. मुझे याद है स्कूल में एक भाषण प्रतियोगिता थी. मैंने पहली बार अपनी टीचर के उकसाने पर भाग ले…

कल रात बिस्तर पर जल्दी चली गई थी. पड़ते ही आँख लग गई मगर थोड़ी देर में ही तेज तूफानी आवाजों से अचानक नींद खुल गई. डबल ग्लेज शीशों के बावजूद हवाओं का भाएँ भाएँ शोर घर के अंदर तक आ रहा था. बीच बीच में आवाज इतनी भयंकर होती कि लगता खिड़कियाँ तोड़ कर तूफ़ान कमरे में फ़ैल जाएगा.…

BHU की समस्या और हालात के बारे में मैं इतना ही जानती हूँ जितना सोशल साइट्स पर पढ़ा. जितना भी समझ में आया उससे इतना अनुमान अवश्य लगा कि समस्या कुछ और है और हंगामा कुछ और. मुझे अपने स्कूल में हुआ एक वाकया याद आ रहा है. हमारा स्कूल एक छोटे से शहर का “सिर्फ लड़कियों के लिए” स्कूल…

कभी कहा जाता था गुप्त दान, महा दान. कि दान ऐसे करो कि एक हाथ से करो तो दूसरे को भी पता नहीं चले. खैर वो ज़माना तो चला गया और अब दान ने एक फैशन का सा स्वरुप ले लिया है. जहाँ एक भेड़चाल के चलते हम दान करते हैं और उससे भी अधिक उसका दिखावा. इसी फैशन के…