क्या अब भी होली की टोली घर घर जाया करती है ? क्या सांझ ढले अब भी महफ़िल जमाया करती है। क्या अब भी ढोलक की थापों पे ठुमरी, ख्याल सजाये जाते हैं ? “जोगी आयो शहर में व्योपारी” क्या अब भी गाये जाते हैं। क्या अबीर गुलाल की बिंदी हर माथे पे लगाई जाती है ? क्या गुटके रेता…
लोकप्रिय प्रविष्टियां
चल पड़े जिधर दो डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर. ये पंक्तियाँ बचपन से ही कोर्स की किताबों में पढ़ते आ रहे थे .गाँधी को कभी देखा तो ना था. पर अहिंसा और उपवास से अंग्रेजी शासन तक का तख्ता पलट दिया था एक गाँधी नाम के अधनंगे फ़कीर से वृद्ध ने. यही सुनते आये थे. अंग्रेजों की गुलामी से…
आज शायद 22 साल बाद फिर इस शहर में यह सुबह हुई है। रात को आसमान ने यहाँ धरती को अपने प्रेम से सरोबर कर दिया है। गीली मिट्टी की सुगंध के साथ धरा महक उठी है। आपके इस शहर में आज फिर हूँ। हर तरफ आपके चिन्ह दिखाई पड़ते हैं। वह नुमाइश ग्राउंड में लगे बड़े से पत्थर पर…
आज मुस्कुराता सा एक टुकडा बादल का मेरे कमरे की खिड़की से झांक रहा था कर रहा हो वो इसरार कुछ जैसे जाने उसके मन में क्या मचल रहा था देखता हो ज्यूँ चंचलता से कोई मुझे अपनी उंगली वो थमा रहा था कह रहा हो जैसे आ ले उडूं तुझे मैं बस पाँव निकाल देहरी से बाहर जरा सा.…
ज़माना बदल रहा है, ज़माने का ख़याल भी और उसके साथ कुछ दुविधाएं भी. आज इस देश काल, परिवेश में समय की मांग है कि घर में पति पत्नी दोनों कमाऊ हों. यानि दोनों का काम करना और धन कमाना आवश्यक है खासकर लंदन जैसे शहर में. जहाँ एक ओर बाहर जाकर काम करना और अपना कैरियर बनाना आज की स्त्री के लिए…