तू बता दे ए जिन्दगी किस रूप में चाहूँ तुझे मैं? क्या उस ओस की तरह जो गिरती तो है रातों को फ़िर भी दमकती है. या उस दूब की तरह जिसपर गिर कर शबनम चमकती है. या फिर चाहूँ तुझे एक बूँद की मानिंद . निस्वार्थ सी जो घटा से अभी निकली है. मुझे बता दे ए जिन्दगी किस रूप में चाहूँ तुझे मैं.…
लोकप्रिय प्रविष्टियां
विज्ञान कभी भी अपने दिमाग के दरवाजे बंद नहीं करता। बेशक वह दिल की न सुनता हो परंतु किसी भी अप्रत्याशित, असंभव या बेबकूफाना लगने वाली बात पर भी उसकी संभावनाओं की खिड़की बन्द नहीं होती। यही कारण है कि आज हम बिजली का बल्ब, हवाई जहाज या टेलीफोन जैसी सुविधाओं का सहजता से उपयोग करते हैं जिनकी इनके अविष्कार…
जिंदगी में पहली बार ऐसा हुआ था जब सीजन की पहली बर्फबारी हुई और कोई बर्फ में खेलने को नहीं मचला। हॉस्पिटल के चिल्ड्रन वार्ड में अपनी खिड़की के पास का पर्दा हटाया तो एक हलकी सी सफ़ेद चादर बाहर फैली थी पर खेलने के लिए मचलने वाला बच्चा बिस्तर पर दवा की खुमारी में आराम से सोया हुआ था. मैंने…
Voronezh Railway Station. वो कौन थी?..जी ये मनोज कुमार की एक फिल्म का नाम ही नहीं बल्कि मेरे जीवन से भी जुडी एक घटना है. बात उन दिनों की है जब मैं १२ वीं के बाद उच्च शिक्षा के लिए रशिया रवाना हुई थी | वहां मास्को में बिताये कुछ दिन और वहां के किस्से तो आप ...अरे चाय दे दे मेरी माँ .……..में पढ़ ही चुके…