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स्पंदन = मेरे मन में उठती भावनाओं की  तरंगे.जिन्हें साकार रूप दिया मेरे इस प्यारे ब्लॉग ने ..जी हाँ इस माह  मेरे स्पंदन का फर्स्ट बर्थडे है .वैसे तो इसकी नींव  २७ अप्रैल को रखी गई थी .परन्तु इसे सुचारू रूप से बढ़ाना मैने 18 मई से शुरू किया. और इसी दिन मेरी ब्लॉग की  रचना पर पहली  प्रतिक्रिया  आई…

मेरी पिछली पोस्ट पर काफी विचार विमर्श हुआ. विषय का  स्त्री पुरुष के पूरक होने से , या उनके सम्मान से या फिर किसी तथाकथित नारी या पुरुष वाद से कोई लेना – देना  नहीं था. एक सीधा सादा सा प्रश्न था. कि क्या स्त्री विवाह को अपने करियर के उत्थान में बाधक महसूस करती है.? सभी विचारों का यहाँ उलेल्ख संभव नहीं फिर भी…

अधिकार हमने ले लिए सम्मान अभी बाकी है। बलिदान बहुत कर लिए, अभिमान अभी बाकी है। फर्लांग देहरी दिए बढ़ा, आसमाँ पे अपने कदम। खोल मन की सांकले, निकास अभी बाकी है। रूढ़ियों के घुप्प अंधेरे चीर बनकर ‘शिखा’ स्त्रीत्व से चमकता, स्वाभिमान अभी बाकी है।…

सफलता पाना  आसान है पर उसे उसी स्तर पर बनाये रखना मुश्किल. शायद आप लोगों ने भी सुन रखा होगा. कुछ लोग मानते होंगे और कुछ लोग नहीं. परन्तु मैं हमेशा  ही इस विचार से १००% सहमत रही हूँ. अपने आसपास ,या दूर- दूर न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण मुझे मिल जाते हैं जिन्हें  देख कर इस विचार की सत्यता…

एक दिन स्कूल से आकर एक बच्ची ने कहा – मुझे एक साफ़ कपड़ा चाहिए हमें डी टी (डिजाइन एंड टेक्नोलॉजी) में शॉर्ट्स सिलने हैं। वह तभी ही प्राइमरी स्कूल से सेकेंडरी में आई थी  सातवीं क्लास में। उसकी बात सुनते ही, बचपन से पनपी मानसिकता और पूर्वाग्रहों से युक्त मैं ..तुरंत पूछा, अच्छा ? फिर क्लास के लड़के उस पीरियड में क्या करेंगे ?…

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