लोकप्रिय प्रविष्टियां

खुशनुमा सी एक शाम को यूं ही बैठे, मन पर पड़ी मैली चादर जो झाड़ी तो, गिर पड़े कुछ मुरझाये वो स्वप्नफूल, बरसों पहले दिल में दबा दिया था जिनको. पर जैसे दिल में कहीं कोई सुराग था, की हौले हौले सांस ले रहे थे सपने, पा कर आज अंशभर ऊष्मा ली अंगडाई, उमंग खिलने की फिर से जाग उठी…

देश के गंभीर माहौल में निर्मल हास्य के लिए 🙂 पृथ्वी  पर ब्लॉगिंग  का नशा देख कर कर स्वर्ग वासियों को भी ब्लॉग का चस्का लग गया. और उन्होंने भी  ब्लॉगिंग  शुरू कर दी. पहले कुछ बड़े बड़े देवी देवताओं ने ब्लॉग लिखने शुरू किये, धीरे धीरे ये शौक वहां रह रहे सभी आम और खास वासियों को लगने लगा…

सफलता पाना  आसान है पर उसे उसी स्तर पर बनाये रखना मुश्किल. शायद आप लोगों ने भी सुन रखा होगा. कुछ लोग मानते होंगे और कुछ लोग नहीं. परन्तु मैं हमेशा  ही इस विचार से १००% सहमत रही हूँ. अपने आसपास ,या दूर- दूर न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण मुझे मिल जाते हैं जिन्हें  देख कर इस विचार की सत्यता…

अब तक के २ साल आपने यहाँ पढ़े.  तीसरे साल में पहुँचते पहुँचते मेरे लेख  अमरउजाला, आज, और दैनिक जागरण जैसे समाचार पत्रों में छपने  लगे थे जिन्हें मैं डाक से भारत भेजा करती थी ,यूँ तो स्कूल के दिनों से ही मेरी अधकचरी कवितायेँ स्थानीय पत्रिकाओं में जगह पा जाती थीं पर स्थापित पत्रों में फोटो और परिचय के साथ…

 http://shikhakriti.blogspot.co.uk/2013/09/blog-post_15.html  यहाँ से आगे।  अब तक यह तो विजया की समझ में आने लगा था कि घर की तीसरी मंजिल पर रहने वाले निखिल के सगे भैया, भाभी क्यों अजनबियों की तरह रहते हैं, क्यों उन्होंने घर में आने जाने का रास्ता भी बाहर से बना लिया है, और क्यों त्योहारों पर भी वह एक दूसरे को विश तक नहीं करते। हालाँकि बात उलटी भी…

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