क्रेमलिन – वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शुमार.
घर की मुर्गी दाल बराबर .बस यही होता है. जो चीज़ हमें सहजता से सुलभ हो जाये उसकी कदर ही कहाँ करते हैं हम. और यही कारण होता है कि जिस जगह हम रहते हैं वहां के दर्शनीय स्थलों के प्रति उदासीन से रहते हैं .अरे यहीं तो हैं कभी भी देख आयेंगे, और ये कभी – अभी करते करते गाड़ी स्टेशन से छूट जाती है. .
मोस्को ..हर दिल के करीब.
यही होता था हमारे साथ. मोस्को – .रूस की राजधानी और योरोप का सबसे बड़ा शहर मस्कबा (मोस्को ) नदी के आसपास बसा यह इतना खूबसूरत है कि वर्ल्ड हेरिटेज साईट में इसका नाम है . पर हमारे लिए वह बस एक शहर भर था जहाँ रहकर हमें अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी और या फिर छात्रों वाली कुछ मस्ती .आज दुनिया के बाकी विकसित देशों से तुलना करती हूँ तो पाती हूँ कि मोस्को के दर्शनीय स्थल तो छोडिये मेट्रो स्टेशन भी कम दर्शनीय नहीं थे जहाँ बाकी देशों के मेट्रो स्टेशन एक गंदे से “सब वे” नजर आते हैं वहीँ मोस्को के मेट्रो स्टेशन किसी भी म्यूजियम से कम नहीं .एक एक स्टेशन किसी ना किसी थीम पर बना है और इतना खूबसूरत है कि दर्शक आलीशान इमारतें भूल जाये.हालाँकि तब हमारे लिए ये स्टेशन सिर्फ आने जाने का एक साधन भर हुआ करते थे या ज्यादातर रूसियों की तरह पुस्तक पढने की एक जगह (आपको मेट्रो में बैठे या खड़े सभी यात्री कोई ना कोई पुस्तक पढ़ते दिखाई देंगे )इसलिए विदेशी यात्रियों को वहां के चित्र खींचते देख हमें उनकी बेबकूफी पर हंसी आया करती थी पर आज हमें अपनी बेबकूफी पर रोना आता है कि हमने क्यों नहीं उन सब नक्काशी और सुन्दरता को अपने केमरे में कैद किया.
मोस्को का एक खूबसूरत मेट्रो स्टेशन
वैसे मोस्को में अलग से कोई स्थान देखने जाना हो या नहीं, पर कुछ चीज़ें आपको अपने आप ही दिख जाएँगी जैसे स्टालिन के समय में बनाई गईं “सात बहने “ जी नहीं ये स्टालिन की सात बहनों के पुतले नहीं हैं बल्कि हैं चर्च जैसे आकार की सात इमारतें हैं जो मोस्को के अलग अलग कोनो पर बनाई गई हैं और मोस्को की सबसे ऊंची इमारतों में से हैं जिन्हें लगभग हर जगह से देखा जा सकता है और इनमें से एक है मोस्को स्टेट यूनिवर्सिटी की ईमारत .वैसे मोस्को की सबसे ऊंची ईमारत है “अस्तान्किनो टावर .जिसे जब १९६७ में बनाया गया था तब वह विश्व कि सबसे ऊंची ईमारत थी.
यूँ इन दर्शनीय स्थलों को देखने जाने के लिए हम छात्रों के पास ना तो पर्याप्त समय होता था ना ही धन, परन्तु कभी कभी अनुवादक के काम के दौरान अपने मेहमानों ( क्लाइंट ) को घुमाने के चलते काफी कुछ देख लिया करते थे हम . और इस तरह हमें आम के आम और गुठलियों के दाम मिल जाया करते थे .मतलब काम भी हो जाता था,पैसे भी मिल जाते थे और फ्री में घुमाई भी हो जाती थी .इसी क्रम में त्रित्याकोव्स्काया गेलरी, ,जहाँ 15 वीं सदी से भी पहले कि तस्वीरें देखी जा सकती हैं ,खूबसूरत गोर्की पार्क जिसके पास से बहती मस्कबा नदी उसकी शोभा बढाती है.खूबसूरत फव्वारों और पुतलों से सजा दोस्ती और एकता का प्रतीक ऑल रशियन एक्जीबिशन सेंटर , रशियन बेले का मशहूर केंद्र बल्शोई ( बड़ा ) थियेटर और ठीक क्रास्नाया प्लोशाद (रेड स्क्वायर ) पर बना हुआ स्टेट हिस्टोरिकल म्यूजियम.वगेरह वगेरह हमने देख डाला था.
सेवेन सिस्टर्स की एक सिस्टर.
वैसे रूसी लोग संगीत और नृत्य के बेहद शौक़ीन होते हैं और किसी भी छुट्टी के दिन थियेटर भरे रहते हैं फिर बेले हो या ओपेरा कार्यक्रम से ज्यादा वहां उपस्थित लोग आकर्षित करते हैं खूबसूरत,शिष्ट ,परिष्कृत लोग और बेहद खूबसूरत, औपचारिक लिबास. थियेटर के अन्दर का दृश्य किसी शाही शादी का सा प्रतीत होता है.यूँ भी रूसी लड़कियों जितनी खूबसूरत लड़कियां शायद ही कहीं होती हों उसपर बेले में थिरकते नर्तक चाबी भरे किसी गुड्डे गुडिया से लगते .और सर्कस का तो कहना ही क्या. जिमनास्ट जैसे हर रूसी बालिका की रग रग में बसता हो सुगठित लचकता शरीर दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देता था .
पर जिसने हमारे दिल पर गहरी छाप छोड़ी वह था लेनिन की समाधि जहाँ लेनिन का वास्तविक निर्जीव शरीर प्रिजर्व करके अबतक रखा हुआ है .यह गवाह है रूसी जनता के उस प्यार का जो ब्लादिमीर लेनिन को मिला . २१ जनवरी १९२४ को लेनिन की मृत्यु के बाद लेनिन के प्रशंसक लेनिन को अपने से दूर नहीं करना चाहते थे और इसके तुरंत बाद रूस की सरकार को पूरे देश १०,००० से ज्यादा टेलीग्राम मिले जिसमें ये प्रार्थना कि गई थी कि लेनिन को भावी पीढ़ी के दर्शनार्थ संरक्षित रखा जाये. इसलिए तत्काल इस पर कार्यवाही शुरू कि गई और और २७ जनवरी को लेनिन के ताबूत को एक खास लकड़ी के बक्से में रखा गया और और फिर बाद में यह विचार किया गया कि किस तरह उनके शरीर को ज्यादा समय के लिए संरक्षित रखा जा सकता है और इस तरह कई प्रक्रियाओं से गुजरता हुआ लेनिन का पार्थिव शरीर आज भी शीशे के एक ताबूत में संरक्षित रखा हुआ है. और इसकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती हालाँकि समय समय पर यह बात उठती रहती है कि उन्हें दफना देना चाहिए यही उनके प्रति सही श्रधांजलि होगी .परन्तु फिलहाल तो दर्शनार्थीयों के लिए उनके दर्शन उपलब्ध हैं.दर्शन के लिए समाधी के बाहर लम्बी लाइन लगती है और अन्दर प्रवेश करते ही भावनाओं और सम्मान का एक ज्वार सा महसूस होता है कितने ही लोगों के आँखों के कोर गीले दिखाई देते हैं. उस महानायक का मृत्युपरांत आभामंडल भी उनके हर समर्थक को ये विश्वास दिला जाता है कि उनका नायक अब भी उनके साथ है और इस देश को हमेशा संरक्षित रखेगा.
चिर निंद्रा में ब्लादिमिर लेनिन.
(तस्वीरें गूगल से सभार )
शिखा जी मजा आ गया इस संस्मरण को पढ़ कर और बहुत कुछ जानने को भी मिला.
सादर
बड़ा अच्छा भ्रमण रहा….
दिल्ली और कोल्कता के मेट्रो के सामने तो ये किसी महल से कम नहीं लग रहा…..
पिछले कुछ दिनों से लगातार आपके ब्लॉग पर खाकसार की नज़र है. एक बेहद अच्छी जानकारी से भरा हुआ सरल, सहज शब्दों से उकेरी गयी बात लगती है. निर्मल वर्मा की नोवेल पढ़ रहा हूँ, कुछ शब्द इतने दुरूह लगते हैं की धयान सिर्फ एहसास और घटनाओं के विवरण पर रहता है नाम याद नहीं रहते… काफी कुछ जानने को है आपके ब्लॉग पर, मुझे पहले आना चाहिए था… लेकिन वो क्या है ना कि स्तरीय चीजें देर सवेर मिल ही जाती हैं. कई बार लगता है दफ्तर बैठे विदेश कि सैर कर आया…
रूस वैसे भी बचपन से दिल के करीब है (हमारी विदेश नीति भी यही है ) … आवारा के दीवाने वहां भी बहुत हैं.. अभी हाल ही में देमेत्री मेदेदेव का यहाँ आना हुआ.. उन्होंने हिंदी गानों पर डांस किया और रा- १ कि शूटिंग देखी…
चाहूँगा कभी रुसी कवियों को हिंदी में अनुवाद कर डालें… आखिर स्पंदन में वो भी तो बसता है.
शिखा जी
आपने तो मास्को की सैर करा दी… मास्को में हमारे एक दोस्त हैं…बहुत किताबें लाते थे…बचपन से रशियन साहित्य बहुत पढ़ा है… इसलिए रूस से एक रिश्ता क़ायम हो गया है…
aankhon me tair gaya kamred Trilokchand jee ne bata tha ek bar par ye kuchh badala saa hai
haan vo gaye bhee to 1950-51 men
jaaree rahe wah
waooooo!
abhi tak sabse interesting, article, itni sari jaankari, aur lenin the gandhian of Russian ke bare me jaankar, bahut achha laga, aur russian ka aaj bhi bhavuk hona, hame bhi bhavuk kar gaya!
thnx for sharing this beautiful information! U R simply Grr888888
wants more form u, ye kafi din jke bad aaya hai!
शिखा,
तुम्हारी नजर से हम मास्को घूम कर दर्शन कर रहे हैं. ये चीज वाकई सराहनीय है क्योंकि इस तरह से जानकारी इतनी आसानी से नहीं मिल पाती है. वैसे तुम ऑनलाइन गाइड का काम बखूबी कर रही हो.
काफी कुछ जानने को मिला,आभार.
आपके विस्तृत रूस प्रवास ने हम पाठको को एक मित्र देश की सभ्यता के बारे में अवगत कराया , मूर्धन्य रूसी साहित्यकारों को जानने का सौभाग्य दिया , तात्कालिक सोवियत संघ की आन्तरिक विसंगतियों पर भी आपकी नजर से देखने को मिला . उनके तमाम आर्थिक , सामाजिक पहलुओं पर भी समुचित प्रकाश डाला आपने .साथ में दर्शनीय स्थलों का भ्रमण भी . आपकी ये श्रृंखला सर्वांगीण रूप से सोवियत संघ को जानने में मदद्शाली है . और हमारे जैसे पाठको के लिए ये श्रृंखला पढ़ते समय मुस्कान देने के अलावा ज्ञानवर्धक भी रही . आपका बहुत बहुत आभार .
भ्रमण कराने के लिए आभार
शिखा जी
नमस्कार !
आपने तो मास्को की सैर करा दी..संस्मरण को पढ़ कर मजा आ गया
कुछ दुर्लभ चित्रों से सजी इस पोस्ट के द्वारा कई रोचक जानकारी भी मिली। भाषा-शैली और संस्मरण काफ़ी पसंद आया। आभार।
बहुत ही सुन्दर नगर और प्रस्तुतीकरण भी।
सच कहा आप ने जिस जगह हम रहते हे, उस के बारे कभी ज्यादा ध्यान नही देते, हमारा भी यही हाल हे , वेसे कई बार दिल मे इच्छा हुयी हे मास्को को देखने की, कभी गर्मियो मे जाये के दो चार दिन के लिये, तब खुब सारे चित्र दिखायेगे आप सब को, आप दुवारा दिखाये चित्र बहुत ही सुंदर लगे ओर विवरण ने तो मन मे ओर भी ज्यादा उत्सुकता पेदा कर दी मास्को जाने की. धन्यवाद
बहुत ही अच्छा संस्मरण………चलो इसी बहाने मास्को के दर्शन भी हो जा रहें …………..
सिखा जी
घर बैठे मास्को घूम ले इससे अच्छा और क्या होगा | आप के इन संस्मरण को पढ़ कर मुझे भी रुसी भाषा से जुड़ा अपनी एक घटना याद आ गई समु मिला तो जरुर उसे ब्लॉग पर लिखूंगी | आप से एक बात पूछनी थी सवाल थोडा अजीब है पर मेरी घटना से जुड़ा है सो पूछ रही हु | क्या रूस में लड़किया कभी भी कोई ऐसे कपडे नहीं पहनती है जिसमे उनके पेट दिखते हो जैसे साड़ी में दिखते है |
" अंशुमाला !हम्म लगता है अब इसपर भी एक पोस्ट लिखनी होगी:) ऐसा नहीं है कि कभी भी ऐसे कपड़े नहीं पहनती वजह शायद जलवायु की है आप अपना आई डी दीजिए तो मेल से बताती हूँ क्योंकि यहाँ बताने बैठी तो एक और पोस्ट बन जायेगी 🙂
शिखा जी ऐसे लिखती हैं कि यूं लगता है लाइव देख रहे हों………शानदार प्रस्तुतिकरण दिल को छू गया।
मॉस्को वर्णनः ऐसा लगा जैसे साथ साथ घूम रहे हों और आप हमारी गाइड हों… गाइड ही तो हैं!!
मेट्रो स्टेशनः किसी 5 स्टार होटेल के इंटिरियर सा, सचमुच ख़ूबसूरत!
तस्वीरें: जीवंत.. ख़ासकर कॉमरेड लेनिन को देखना.. एक प्रश्न मेरा भी.. सुना था, उनके शव में ख़राबी आने के कारण या उसके अंदेशे से लेनिन की दाढ़ी शेव कर दी गई थी.. क्या यह सअच है?
पोस्ट का इम्पैक्टः कब ख़तम हो गई पता नहीं चला..
शिखा जी,
बहुत खूबसूरत रहा मास्को का ये चित्रों से सजा सफ़र.
आदरणीया शिखा वार्ष्णेय जी
सस्नेहाभिवादन !
"मॉस्को : हर दिल के करीब संस्मरणात्मक आलेख के लिए आभार !
मेरी किशोरावस्था से ले'कर सोवियत संघ के टुकड़े होने तक रेड़ियो मॉस्को के माध्यम से मेरी जो प्रगाढ़ घनिष्टता रही , आपकी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद पुनर्जीवित हो उठी ।
प्राथमिक शिक्षा के दौरान मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि सोवियत संघ धरती पर परियों का देश है ।
मिखाइल गोर्बाचेव सहित समूचे विश्व में साम्यवाद का पतन होने के साथ ही एक परीलोक की अवधारणा भी ध्वस्त हुई ।
… किंतु कुछ झलक आपने फिर ज़िंदा की है ।
शुक्रिया !
~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं – शुभकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
– राजेन्द्र स्वर्णकार
सुन्दर के अतिरिक्त और क्या कहूं
बेहद खूबसूरत चित्र …
मेट्रो स्टेशन की तो बात ही क्या है …
सात बहनों का रहस्य भी आज खुल ही गया …
सोविअत नारी जैसी पत्रिकाओं में इनके लम्बे गाउन और फ्रॉक जैसी पोशाकें मुझे बहुत लुभाती थी …कभी इन पर भी कुछ लिखो !
सजीव चित्रण –
बहुत बढ़िया लिखा है –
आप निश्चित ही बधाई की पात्र हैं –
मास्को के बारे में बिना अधिक जाने मेरे मन में इमेज अच्छी नहीं थी , मगर अब देखने का मन करने लगा है ! बहुत अच्छा लिखती हो लगता है खुद घूम रहे हूँ ! आभार शिखा !
यह सारी जानकारी तो एकदम से नयी है। बहुत श्रेष्ठ। आपका आभार।
kal ke charchamanch par aapki post hogi.
मास्को की खूबसूरती वास्तव में देखने लायक है । काश कि अपने कुछ और भी तस्वीरें खिंची होती ।
पढ़कर आनंद आया ।
लेकिन अब दिल्ली की मेट्रो और स्टेशंस भी कम नहीं हैं ।
मज़ा आ गया .. और ये मेट्रो स्टशन है …. क्या गज़ब है … असल में है या आपकी फोटोगरी का कमाल है … और लेनिन की समाधि …. ऐसा लगता है कितनी सजीव है ..
बहुत ही प्रभावशाली प्रस्तुति
शिखा जी, आपके संस्मरणों से बहुत कुछ जानने को मिलता है। शुक्रिया।
———
पति को वश में करने का उपाय।
@ सलिल जी ! जब मैंने देखा था तब लेनिन की वह फ्रेंच कट दाड़ी दिखाई पड़ रही थी. वैसे यह सच है कि उनके हाथ पैरों पर कुछ काले धब्बे आ गए थे जिसका बाद में किसी लेप से उपचार किया गया. तो हो सकता कुछ हिस्सा दाड़ी का भी साफ़ किया गया हो.
हर देश की एक महान संस्कृति और सभ्यता होती है जिसपर हर उस देशवासी को नाज़ होता है जो उसका निवासी है,,, मगर कुछ ऐसी संस्कृतियाँ हैं जिनपर सिर्फ उस देश के नागरिक ही नहीं बल्कि सारा विश्व गर्व करता है.. वो संस्कृतियाँ वैश्विक धरोहर होती हैं. उनकी इमारतों, इबारतों से लेकर उनके नेता और भी बहुत कुछ सदियों तक याद रखे जाते हैं. चीन और भारत की तरह रूस भी वैसी ही संस्कृति का वारिस है. बहुत सुन्दर विवरण दी.
बहुत सजीव वर्णन मॉस्को का …छायाचित्रों के साथ विवरण और भी रोचक बन गया है …
तुम्हारे लिखने का अंदाज़ ऐसा है जिससे पढ़ने वाले को लगता है की दृश्य बिल्कुल आँखों के सामने चल रहे हैं ..
संस्मरण के साथ हम भी मॉस्को घूम रहे हैं और शायद यदि हम खुद देखते तो वो चीज़ें छूट जातीं जिनको तुमने बहुत
सूक्ष्मता से वर्णित किया है …बहुत अच्छी पोस्ट ..बधाई
—
शिखा जी इतनी बेहतरीन जानकारी दे रहीं है आप हमें रूस के बारे में तस्वीरों के साथ ….
आपके लेखों की जीतनी भी तारीफ की जाये कम है ….
इतने मनोयोग से लिखती है आप की हर पोस्ट अपनी छाप छोडती है …..
मोस्को का खूबसूरत मेट्रो स्टेशन देख तो आँखें चौंधिया गईं ..
और लेनिन का वास्तविक निर्जीव शरीर प्रिजर्व करके अबतक रखा हुआ है ये बात भी हमें आज पता चली ….
बहुत बहुत आभार ….!!
bahut hi rochk aur gyanvardhn sansmarn .
aise hi likhte rahe .
shubhkamna
मास्को के बारे में अच्छी जानकारी मिली।वहां के मेट्रो का दृश्य मन को छू गया।धन्यवाद।
मास्को को देखना (आपकी नज़र से) बहुत अच्छा लगा.
बहुत सारी दिलचस्प जानकारी को समेटे हुए
सुन्दर संस्मरण है. काफी नयी बातों को जानने
को मिला. चित्र भी बहुत सुन्दर हैं.
आभार व शुभ कामनाएं
बढिया रही मास्को यात्रा। सभी की अपनी अलहदा संस्कृति है। हिन्दुओं में तो मरने के बाद जितनी जल्दी हो सके अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। ताबूत में लेटे ब्लादिमीर लेनिन को देख कर मुझे लगा कि जैसे वे अंतिम गति का इंतजार कर रहें है।
(यह बात सही उठी थी कि उन्हे अब दफ़ना देना चाहिए)
आभार शिखा जी।
सुंदर
bahut durlabh jankariyan dene ke liye hardik aabhar!
घुमाई के लिए आपका आभार. बहुत अच्छा लगा 🙂
बहुत खूब! कल से आपका संस्मरण आया हुआ है लेकिन अभी तक पढ़ा नहीं था। इस लिये नहीं कि आपका लिखा दाल बराबर समझते हैं। 🙂
सोचते हैं आराम से पूरे मजे लेकर पढ़ा जाये और हुआ भी वैसा ही। आनन्दित हुये बांचकर। मन करता है कि चला जाये कभी मास्को घूमने। लेकिन अभी तो जाड़ा बहुत है। वैसे कित्ता किराया होगा आजकल मास्को का?
आगे की कड़ियों का भी इंतजार है।
शिखा जी,आपके सुन्दर संस्मरण के साथ मास्को घूमने का आनंद आ गया ! वहाँ के मेट्रो station की तस्वीर देख कर एक बार तो विश्वास ही नहीं होता की यह sattion है !
ऐसे संस्मरणों की भविष्य में भी प्रतीक्षा रहेगी !
धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह …बहुत ही सुन्दर सचित्र प्रस्तुति …बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
Sach kahun to inn desho ke baare me jaankar ham kaun sa teer maar lenge…agar kabhi videsh jana hua bhi to Nepal se aage nahi jayenge, pakka pata hai…:P
par sach ye hai ki aapke sansmaran ka style..aur usme jo wastvikta hoti hai, dono itni saafgoi se darshayee jati hai ki pathak ko bina pura padhe chain nahi milta…
aisa hi mere saath hota hai…
dhanyawad..!!
लेनिन के दर्शन करा दिए आपने
काफी प्रभावित हूं उनके विचारों से
इसलिए और भी अच्छा लगा
शिखा……एक बात बताऊँ…..तुमने मेरे बहुत सारे पैसे बचा दिए अब तक…..बचपन से ही सोचा करता आया हूँ….सोवियत-संघ (अब रूस) जाने के विषय में….घर में तब सोवियत संघ और एक अन्य रसियन किताब आती थी….बरसों तक आती रही….कब बंद हो गयी….सो भी पता नहीं…सो किसी रसियन लड़की से शादी के सपने देखा करता था मैं….और मेरे बचपनिया दोस्त भी यही मानते थे कि ये लड़का ऐसा ही करेगा….(हा…हा…हा….हा…बचपन के सपने….सपनों में बचपना….)सो आज तक ना तो रसिया जाना ही हुआ….और वहां की लड़की से ब्याह तो बहुत ही दूर….सैकड़ों रसियन लड़कियों के फोटो मेरी किताबों में हुआ करते थे तब….मैं एक बावला हुआ करता था…..रसिया के पीछे…..उसकी भव्यता….उसके विकास….उसकी वैज्ञानिकता…..सब के सब मुझे अचंभित करते थे सदा….और तुम मुझे एक बार फिर मुझे वहीँ लौटा ले जाती हो(बचपने में…..और कहाँ.,,,,)….उसके लिए तुम्हे बेतरह धन्यवाद दे लूं….कभी सामने आओ तो….तुम्हें बताऊँ….कि किस तरह यह सब मुझे किस लोक में पहुंचा देता है…..आज भी…..और मजा यह कि मैं इसके लिए तुम्हें टिकट का एक पैसा तक नहीं देता…..तो इस तरह बचाएं हैं तुमने मेरे बहुत सारे पैसे…..मगर अब सोचता हूँ…..एक बार तो आना ही होगा कभी…..मास्को…..है ना…..शिखा……!!!
राजीव जी ! ये संस्मरण में अपनी यादों की स्याही में मन की कलम डुबो कर लिखती हूँ .उसपर अगर ये किसी को उसकी यादों में, सपनो में लौटा ले जाएँ तो इससे बड़ा कोई कॉम्प्लीमेंट नहीं हो सकता .इसके लिए मैं आपका धन्यवाद कर लूं 🙂
रही बात मोस्को जाने की ..तो एक बार जाना तो बनता है. कितना भी बदल गया हो समय पर मन के भाव तो नहीं बदला करते.और वह देश सबसे अलग है ..
लो कर लो बात…..फ़टाफ़ट जवाब…..वो भी मास्को से…..यानी की मस्कवा से……चिट्ठी आई है….आई है…..आई है….चिट्ठी मस्कवा से…..!!!!
आनन्द आ गया.
रोचक विवरण, सुंदर चित्र.
सात दिन बाद कोई ब्लॉग पढ़ रहा हूँ और वो भी आपका, और उसपे से भी मोस्को का इतना खूबसूरत विवरण..
वैसे ये पोस्ट कल ही पढ़ लिया था, मैंने अपनी माँ और बहन को बताया लेनिन के बारे में, तो उन्होंने कहा उन्हें पहले से पता था..मुझे नहीं पता था 🙁 😛
और मेट्रो स्टेशन तो सही में एकदम मस्त लग रहा है…फोटोग्राफी का मजा आएगा 🙂
रूसी लड़कियां खूबसूरत होती हैं, सुना भी है और देखा भी 🙂
शिखा दी,
बहुत देर से आया, माफी चाहूँगा.
पर आपके यात्रा वृत्तांत ना पढूँ, ये संभव नहीं है.
आभार रख लीजिये.
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