होली पर दुनिया गुझिया बना रही है और हम यह –
सुनिये…. सुनिये….. ज़रा अपने देश से होली की फुआरें आ रही थीं
सुनिये…. सुनिये….. ज़रा अपने देश से होली की फुआरें आ रही थीं
कभी फेसबुक पे तो कभी व्हाट्स एप पे
गुझियायें परोसी जा रही थीं
कुछों ने तो फ़ोन तक पे जलाया था
और आज कहाँ कहाँ क्या क्या बना
सबका बायो डाटा सुनाया था
सुन सुनके गाथाएँ हमें भी जोश आया
फट से श्रीमान जी को फरमान सुनाया
सुनो , ज़रा ऑफिस से आते हुए खोवा ले आना
और शनिवार को बैठकर गुझिया बनवाना
वो फ़ोन पे ही परेशान से नजर आने लगे
इतनी ठण्ड में भी पसीने रिसीवर पे छाने लगे
बोले, अरे छोड़ो भी बेकार की मेहनत करोगी
ये इंडिया के चोचले हैं यहाँ कहाँ पचड़े में पड़ोगी
दूकान से मिठाई ले आयेंगे
फिर आराम से बैठ कर खायेंगे
हमने कहा
नहीं जी हम तो अबके गुझिया ही बनायेंगे
और अपना हुनर दिखा के ही बतलायेंगे
वो रानू, पिंकी , मझली सब मस्तिया रही हैं
रोज व्हाट’स एप में पिक्चर चिपका रही हैं
गुझिया सेव के साथ उनकी गप्पें भी पक रही हैं
और यहाँ हम बिन चुगली, बिन गुझिया मर रही हैं
हमारा मूड देख श्रीमान जी ने हथियार डाल दिया
और जैसा मिला खोवा लाकर हमें पकड़ा दिया
शनिवार को सुबह से हमने अभियान चलाया
और घर के हर सदस्य को एक एक काम थमाया
सुनो , हम बेलेंगे, तुम भरना
और बच्चो तुम किनारे काट कर
रजाई के नीचे धरना .
सब को ठिकाने बैठा कर काम का श्री गणेश हुआ
अधकचरे ज्ञान से गुझिया अभियान शुरू हुआ
अब कभी मैदा जी इठलायें कभी खोवे जी भरमायें
कभी कांटे की चम्मच जी टेड़े मेढे बलखायें
आधे दिन में जैसे तेसे तलने की बारी आई
तो घी में पड़ते ही सब की सब गुझिया खिल आईं
अब तक हमारा सब्र का घड़ा पूरा भर चुका था
उसपर सुबह से उदर बेचारा उपेक्षित सा पडा था.
फैली गुझिया देख के हम भी फ़ैल गए
तुमने मन से नहीं बनाई, सब उनपे पेल गए
अब हुलिया हमारा देख श्रीमान को तरस आया
झट से डोमिनोज फ़ोन कर पिज़्ज़ा मंगवाया
एक पीस हजम किया तो गले से आवाज़ आई
बिना गप्पों के ये गुझिया भी कहाँ बनती हैं भाई.
ये सुहाती वहीँ जहाँ मनाई जाए होली
अपनी तो इनके चक्कर में आज
ऐसे तेसी हो ली .
बहुत सुन्दर, कुछ भी हो जाये, अपनापन कहाँ भुलाये भूलता है। मटरी ट्राइ कर लें अब।
वाह जबर्दस्त हैगा . क्या गुज़िआ बनी है , मटर पपड़ी का भी जुगाड़ है ?
हद है … बेहद हद है … कहाँ गुजिया … कहाँ पिज्जा … 🙁
🙂
अरे मैदा बेल कर ऊपर खोये का पूरण फैलातीं….bake करतीं…बन जाती हिन्दुस्तानी गुझिया पिज़्ज़ा 🙂
अनु
क्या सच में सारी खुल गयी 🙂
अनुलता का सुझाव अच्छा है , बेक करने से खुल भी जाए तो बर्बाद नहीं होती !
मैने बनाई हैं गुझिया और सेव भी – आप पास में होतीं तो ….!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (16-03-2014) को "रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1553) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया शिखाजी। होली की शुभ कामना।
ये तो होली की कविता है। असली गुझिया तो कल बनेंगी 🙂
Schchiye kaa byaan kiyaahai!
Bhut khub,
Vinnie
….बिना गुजिया के कैसी होली …?गुजिया भेज रही हूँ …होली की शुभकामनायें …..पढ़ कर समझ आ गया था ये होली की ही कविता हो सकती है ….,असल गुजिया बनेगी ज़रूर ….हमने कल ही बना ली ….!!…
बहुत बढ़िया लिखा है ….!! 🙂
मुझे तो मीठी लगी गुझिया भी और कविता भी । होली की हार्दिक रंगों भरी शुभकामनायें ।
हा हा … हम तो दुबई में बाज़ार से ही ले आये … पर आपकी कोशिश ही बहुत है … याद तो ताज़ा रखी …
होली की हार्दिक बधाई …
बहुत ही सुन्दर,आपको भी होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
waah waah bahut sundar shikha …………..vaise yadi main banaaoon to shayad yahi haal ho kyonki aati hi nahi banani :p
सामयिक और सुन्दर पोस्ट…..आप को भी होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं…
नयी पोस्ट@हास्यकविता/ जोरू का गुलाम
अरे वाह…. पढने से ज़्यादा सुनने में मज़ा आ गया 🙂
रंगों का ये पर्व खूब मुबारक़ हो आपको…
गुझिया अब तक तो बन कर समाप्त भी हो गयी होगी ,फोटो देखी अच्छी है 🙂
:):) मैं तो यह पहले ही सुन चुकी थी … आखिर गुंझिया बन भी गयीं
yah kavita aapki awaj mai suni achcha laga holi par gujiya to apne desh mai hi banti hai pardesh mai kitni mashkat kai baad bhi mushkil hai
Ha Ha ! such a lively picture you have etched! Since I make Gujhiya every holi, I can understand !
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