हे नारी तू हड़प्पा है…
अब आप सोच रहे होंगे कि भाई, नारी का हड़प्पा से क्या सम्बन्ध ? तो जी ! जैसे हड़प्पा की खुदाई चल रही है सदियों से, रोज़ नए नतीजे निकाले जाते, हैं फिर उन्हें अपने शब्दों में ढाल इतिहास बना दिया जाता है …
ऐसे ही बेचारी नारी है- खुदाई दर खुदाई हो रही है आदिकाल से, और किये जा रहे हैं सब अपने अपने तरीके से व्याख्या पर नतीजा ? ठन-ठन गोपाल….सच्चाई का किसी को कुछ पता नहीं परन्तु खोदना बंद नहीं होता.बड़े -बड़े विद्वान् आते हैं कुछ खोजते हैं पता नहीं क्या का क्या समझते हैं और फिर अपनी ही कोई मनघडंत कहानी बना इतिहास में छाप देते हैं.
किसी ने निष्कर्ष निकाला कि कमजोर है बेचारी तो घर ले जाकर बिठा दिया ।
तो किसी को दुर्गा नजर आई तो माथा टिका दिया.
किसी को सुन्दरता दिखी तो अजंता अलोरा में लगा दिया.
तो किसी ने भोग बना कर कोठों पर सजा दिया ।
पर नारी पर शोध ख़तम नहीं हुआ. यहाँ तक कि बड़े बड़े ऋषि मुनि भी अछूते नहीं रहे इस विषय से…अब तुलसी दास को ही लीजिये लिखनी थी राम कथा -तो उसमें भी औरत को ले आये…और ताड़न का अधिकारी बना डाला. अब न जाने उनकी कौन सी भेंस खोली थी किसी औरत ने।
ऋषियों ने वेदों में त्रिया चरित्र करार दे दिया .
फिर हमारे राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त जी ने नारी को अबला बना दिया।( अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी…)
पर शोध ख़तम नहीं हुआ…लगातार जारी है।अब जब सारी उपमाएं, तुलनाये ख़तम हो गई तो कुछ नारी वाद का झंडा ले खड़े हो गए. और निष्कर्ष निकाला गया कि हम किसी से कम नहीं… और लड़े जा रहे हैं इसी मुद्दे पर ….
तो कहीं हो रही हैं चर्चाओं पर चर्चाएँ ..,शोध पर शोध ।
कोई अपने सर्वे के आधार पर कहता है की यह गेहुआं सांप होतीं हैं…औरतें झूठ का पुलिंदा होती हैं….
तो कोई अपने शोध से निष्कर्ष में उसे झूठी, कपटी, बहलाने -फुसलाने वाली बना देता है.अरे जब इतना समझते हो तो क्यों आते हो झांसे में दूर रहो नारी से।
मुझे तो समझ ये नहीं आता कि इस नारी नाम की मनुष्य को बख्श क्यों नहीं दिया जाता. अरे ऊपर वाले ने एक कृति गढ़ी है बाकि सब की तरह. जैसे ये पृथ्वी है, आकाश है,पेड़ -पौधे हैं, जानवर है वैसे ही एक नर है और एक नारी है फिर ये नारी को ही लेकर इतना हंगामा क्यों ?और बहुत से विषय हैं सोचने के लिए, सुलझाने के लिए, रिसर्च के लिए, उन पर ध्यान दो. नारी को ऐसे ही रहने दो जैसी वो है क्यों उसे वेवजह शोध का विषय बनाया हुआ है ?
बेचारा ऊपर वाला भी सोचता होगा – ये क्या बला बना दी मैने, कि बाकि सारी समस्याएं, सारे कर्म भूल कर सब इसी पर शोध करने पे तुले हुए हैं.
तो तात्पर्य ये है, जिसे उसका रचियता (ब्रह्मा) नहीं समझ सका उसे आप- हम जैसे तुच्छ मनुष्य क्या समझेंगे… तो बेहतर होगा नारी पर रिसर्च करने की बजाय दुनिया की बाकी समस्याओं का हल ढूँढने में वक़्त का उपयोग किया जाये.
तो तात्पर्य ये है, जिसे उसका रचियता (ब्रह्मा) नहीं समझ सका उसे आप- हम जैसे तुच्छ मनुष्य क्या समझेंगे… तो बेहतर होगा नारी पर रिसर्च करने की बजाय दुनिया की बाकी समस्याओं का हल ढूँढने में वक़्त का उपयोग किया जाये.
शिखा,
विषय बहुत रूचि कर है . और विषय के अनुरूप चित्र भी खूब लगाये हैं…
सच कहा कि ना जाने क्यों लोग नारी को क्लिष्ट बनाते जा रहे हैं.. शोध के लिए लगता है कि सबसे आसान
विषय समझते हैं जब कि सबसे दुरूह है नारी हृदय को जानना और समझना .. भारतीय परिवेश में तो वैसे भी पूरा परिवार
नारी के ऊपर ही टिका होता है..फिर भी नारी को वो सम्मान नहीं मिलता जिसकी वो अधिकारिणी होती है…बस लोग नारी पर खुदाई तो करते जा रहे हैं पर उसके मन को नहीं पढ़ पाते..अच्छा लेखा है….सार्थक लेख के लिए बहुत बहुत बधाई
कमाल का लिखा है,शिखा…और बिलकुल सामयिक. थकान और बोरियत सी होने लगी है..ये नारी पर लेख पढ़ पढ़ कर.सही विश्लेषण किया है तुमने बड़े से बड़े कवि-कथाकार भी 'नारी' पर कुछ कहने का मोह नहीं त्याग पाए.अपने अपने तरीके से अपने दर्शन परोस दिए…और सब चटखारे ले लेकर आजतक उन्हें उधृत किये जा रहें हैं.
बहुत ही बढ़िया..और शैली तो माशाल्लाह ऐसी धाराप्रवाह की सांस लेना भूल जाये कोई.बहुत बहुत शुक्रिया,सबके मन की बात इस शानदार ढंग से कह डालने के लिए.
शिखाजी,
बहुत अच्छे, कुछ शोधों के परिणाम अच्छे और सटीक नहीं मिलते हैं फिर भी शोध जारी रखा जाता है, नारी तो आदि काल से विवाद का विषय बनी हुई है. क्योंकि शोधकर्ताओं के पास अब विषय ही नहीं बचे हैं. जब कि उनको लगता है कि उनकी टिपण्णी से नारियों को आपत्ति होती है, नहीं बिलकुल भी नहीं बस कुछ फिजूल बातों पर तरस आता है और उससे ज्यादा उनपर को पीछे से तालियाँ बजाते हैं.
ऐसी सार्थक रचना पर बधाई.
नारी, नारी और सिर्फ नारी एक नया शव्द 'नारी अस्मिता'इन पहलुओं पर कलम चलाना मानवता जो समझी जाती है.
सार्थक लेखन के लिए धन्यवाद.
आदरणीय शिखा जी एक मित्र ने आप का लिंक दिया बेतुका विषय है इसलिए नहीं आना चाहता था पर उनके आग्रह से यहाँ पर आया यहाँ आकर अगर मै ये पोस्ट नहीं पड़ता तो एक अच्छी पोस्ट से अनभिग्य रहता , शिखा जी आप की पोस्ट कथित नारीवादी और पुरुष वादी लेखको के गाल पर एक करारा तमाचा है(अगर वो समझे ) ये तमाचा है उनके गाल पर जो अविषय को विषय बना कर अपने अपने वर्ग में वेकार की वाह वाही लूटते है , अरे अगर इतनी ही चिंता है समाज की तो समाज के वास्तविक मुद्दों और उनके कारणों के बारे में लिखो स्त्री और पुरुष के बारे में अनसुलझी पहेलिया बुझा कर समाज के नीति निर्धारक न बनो और एक नयी समस्या न खड़ी करो , मै पूछना चाहता हूँ क्या कभी किसी ने इन समस्याओ के बारे में लिखा है
1 CRIME AGAINST WOMEN (IPC+SLL)
1-KIDNAPPING & ABDUCTION OF WOMEN —- 20416
2 MOLESTATION -38734
3 SEXUAL HARASSMENT —10950
4 CRUELTY BY HUSBAND AND RELATIVES— 75930
5 IMPORTATION OF GIRLS —61 0.
TOTAL CRIME AGAINST WOMEN (IPC+SLL) —-185312
ये केवल कुछ चंद वानगी है जो सरकारी आकड़ो पर आधारित है और हाँ इन अपराधो में शामिल अपराधी केवल पुरुष ही नहीं महिलाए भी है कहने का मतलब बस इतना ही है पुरुष और स्त्री से उपर उठ कर समाज की वास्तविक समस्याओ को पहिचानने पर बल दो और लिखो तभी कुछ सार्थक होगा
सादर
प्रवीण पथिक
जे बात …आज मारा सीधा शौट ….बाऊंड्री के पार ..बिल्कुल सही समय पर सही जगह चोट की है । भई अब तो हमें ऐसी पोस्टों पे टीपने में भी डर लगता है …क्योंकि आजकल आप लोगों की एक ब्रिगेड ..खोज खोज कर हम जैसे टिप्पणीकारों की खटिया खडी करनें में लगी है । क्या पता कौन कौन सी टिप्पणी को कहां कहां जोड कर क्या अर्थ-अनर्थ निकाल लिया जाए । मगर जब पढा है टीपेंगे भी जरूर । शिखा जी ..मुझे खुद हैरानी होती है कि जब पुरुष ..बहस के लिए कोई विषय नहीं है तो फ़िर महिला / नारी ..क्यों ..हां उनकी स्थिति ,उनकी समस्याएं , जरूर बहस और मंथन का विषय हो सकती हैं । आपने सही दिशा में कदम बढाया है ॥
अब तक शायद ऐसा विरोध भी नहीं देखा होगा ऐसा लिखने वालो ने.. आपने खुलकर विरोध किया है तो शायद नारी को शोध अथवा भोग की वस्तु मानने वालो की भी दिमाग की कुण्डी खुले.. शायद मुंह तोड़ जवाब नहीं दे पाने की वजह से ही लोग ऐसा लिखते होंगे.. जिस दिन जवाब मिल जाए तब शायद ये नौबत भी नहीं आये..
आपकी हिम्मत काबिल ए तारीफ़ है..
’नारी बिना जग सूना ’ जी हां समाज में नारी की स्थिति हमेशा बेहतर होना चाहिये- मां , बहन , पत्नी , बेटी आदि के रूप में और इनका आदर सम्मान करके ही कोई समाज सम्पूर्ण प्रगति कर सकता है
ek prashnchinh lagata lekh purush samaj ki soch par……..sarthak ho gaya aapka likhna.
Main to ulajh gaya aapka lekh padhkar. har vyakti azaad hai apni baat kahne ke liye. vyakti vahi kahna chahta hai jo uske swabhav mein hota hai . agar kisi ka swabhav kisi se bhinn hai to ismein vyakti ka kya dosh hai.vichaar kisi mein uthane se nahin uthte vo to swata hi uthte hain.
kundan ko kya maloom ki vo kundan hai. vo to sunaar hi batlata hai ki vo kundan hai.mujhe to aisa lagta hai ki apke antarman mein purush ke prati nafrat ka bhav hai.khair, meri baat ko anyatha na len. yah usi tarah bhinn hai hai jis tarah aapka lekh.aap patrakar hain. patrkaar ko har baat anoothe dhang se kahne ki pravrati hoti hai jis se logon ka dhyan khiche.aap prtibha ki dhani hain aisa mujhe jaroor mahsoos hua .bhinn likhen pardosharopad na karen.yaad rakhen nar nari ek doosare ke poorak hain. badhai!! ki aap hakdaar hain.Shubhkaamnayen.
नारी बिना जग सुना…..नारी को नारी ही रहने दो! चाहे वो किसी भी समाज या वर्ग कि हो.वो जैसा जीवन जिए..जो पहने ,जैसा खाए.. लेकिन समाज को ये मंज़ूर नहीं होगा!!
समाज का निर्माण ही ,जो समाज है , का नियंता पुरुष ही बन बैठा है..और सत्ता जिसकी होती है..वो हर कुछ अपने मुताबिक चाहता है….
ये पीड़ा किसी अल्पसंख्यक, दलित की भी रहती है..
लेकिन नारी सबसे ज्यादा पीड़ित है किसी भी समाज की हो…वर्ग की हो..
लेकिन दलित और मुस्लिम समाज की नारियों को दोहरे संघर्ष झेलने पड़ते हैं….
अच्छे लेखन के लिए मुबारक बाद!धारधार !!!!
मैडम ,
अनुपालन के लिए नोट किया !
सादर ,
भवनिष्ठ
अरविन्द
शिखा,
क्या बात कह दी…
जिनको और कोई टोपिक नहीं मिले तो नारी तो है ही…शोध करने के लिए…..
जब भगवान् नहीं समझ पाए नारी को फिर ये क्या समझेंगे….
नारी को समझने की न तो हैसियत है इनकी न ही औकात….इसलिए पटकते रहे सर अपना और देते रहे खोखली दलीलें…. लेकिन इनका शोध कभी भी पूरा नहीं होगा….आने वाले कई युग ऐसे ही बीत जायेगे….इसलिए इनपर ध्यान देना ही बेवकूफी है…..हम जो भी करते हैं …जैसे भी करते हैं सही करते हैं…अपनी सोच और अपने कर्म का कोई भी लेखा-जोखा किसी को भी देना अब बेमाने लगने लगा है……इस तरह की मानसिकता ब्लॉग जगत में ही देखने को मिल रही है…वर्ना घरों में अपने आस-पास यही लोग कुछ और राग अलापते नज़र आते हैं…..इस दोगली नीति को क्या कहा जाएगा ??
इस सार्थक रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
——————
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
बिलकुल सपाट शब्दों में। बहुत अच्छा लिखा…करारा। दूर तक आवाज़ उठी। बधाई।
sarthak post…vicharniya…
Sahi kaha…bilkul sahi….
sach hai….ye log sampradayikta par nahi likhte…bhookh, gareebee par nahi likhte..aapsee raag dwesh,vidwesh par bhi nahi likhte ….bas naree par likhkar itishree kar lete hain….
सच कह रहीं हैं आप…. आजकल नारी पे बहुत खुदाई हो रही है….. पहले तो पुरुष ही करते थे और अब तो खुद नारी ही आजकल यह खुदाई ज्यादा कर रहीं हैं…. यह खुदाई बंद होनी चाहिए…. क्यूंकि जितना खोदते हैं उतना ही और घर हो जाता है….. और यह गहराई सदियों से और गहरी होती जा रही है….. पर निष्कर्ष कुछ नहीं निकलता…. वही back to square one….. इस बेवजह के मुद्दे को फालतू में लोग रिसर्च कर रहे हैं….. मुद्दा न हो गया जुरासिक पार्क हो गया….. अरे! भई …नारी जैसी है उसे वैसे ही रहने दो….. लेकिन यह बुद्धिजीवियों के समझ में नहीं आता …. और यह बुद्धिजीवी नारी भी है और पुरुष भी…… सही कह रहीं हैं… आप ….जब इसे कुदरत ही नहीं समझ पाया तो हम और आप क्या समझेंगे….. ? इस दुनिया में बहुत से काम हैं…… हम तो अब उन्ही पर ध्यान देंगे…… बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट…..
आपको नए साल (हिजरी 1431) की मुबारकबाद !!!
सलीम ख़ान
शिखा जी,
गज़ब का लेख है आपका| औरत सबसे रहस्यमयी प्राणी है इस संसार की, और शायद सबसे कोमल, कठोर और शक्तिशाली भी| अपनी सुरक्षा केलिए देवताओं ने स्त्री को दुर्गा काली बनाया, मेनका ने देवता को रिझाया, सीता और सती अग्नि में समाई, एक कृष्ण और हजारो गोपियाँ, पर ये सब तो हमारे युग की बात नहीं| हमारे युग में स्त्रीयों को कहा गया कि ''वो नरक का द्वार है, त्रिया चरित्रं दैवो न जाने, ढोल…नारी ये सब हैं ताडन के अधिकारी'', देवदासी प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज़, जाने क्या क्या कहा गया और कितना तरीका इस्तेमाल में लाया गया स्त्रीयों को अधीन करने केलिए| लेकिन स्थिति यथावत, सारे खोज, शोध, निष्कर्ष व्यर्थ| स्त्री सच में आज भी हड़प्पा है, कितनी भी खुदाई कर लो शारीरिक संरचना वही रहनी है, और एक वही आधार भी बन गया है सभी शोषण का| मुझे लगता सच में पुरुष सोच पर शोध ज़रूरी है, जिसके लिए हड़प्पा से भी काफ़ी पहले ब्रह्मा तक जाना होगा| मानसिकता न बदलेगी तो ये युग भी बीत जायेगा और स्त्री पर शोध-कार्य कभी पूरा नहीं होगा|
बहुत अच्छा लिखा है आपने सच में बेहद सार्थक, शुभकामनायें|
अच्छा है नारी मोहनजोदाड़ो नही है 🙂
नारी होकर अपने आपको अबला कहना ठीक नही, आप सबला हो एक बार देखो तो
अच्छा आलेख। समयोचित। साधुवाद।
likho aur likho tabhie to baat aagey jaayegi
sahii aur sateek likha
ykinan shikha ji..ab shamjh me aaya ki aap knha busy rehti hae ..aaj aapki yeh rachnaa padh kr mujhe garv hua ki me aapki frindlist me shamil hun ********************************************
AAPNE AAPKI KALM SE JHNJHNAA KR RKH DIYA HAE AADI ANAADI KAAL SE YHI HOTA CHLA AA RHA HAE PATHER KI MURTI KO DEVI KEH KR POOJA KI JAATI HAE KBHI USE DURGA TO KBHI AHILYA TO KBHI USE MAA KEH KR KHOOB MHIMAA MANDIT KRTE HE MGAR JAB BAAT YTAAHRTH OR BRABRI KI AATI HAE SMANAADHIKAAR KI TO SB AAPNI ASLIYAT PR AAJAATE HEN..AAP NE BAHUT HI ACHHA LIKHA HAE AAPKO MERA NAMAN OR AAPKI RACHNAA KO KALAM KO SLAAM…………PRADEEP MISHRA -DEEP
? हँगामा है क्यों बरपा !
वाह शिखा …बहुत खूब …
इस प्रविष्टि को पढने के बाद शायद कुछ प्रविष्टियाँ मोहनजोदड़ो पर आ जाएँ …नर विश्लेषण करती हुई …!!!
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आदरणीय शिखा जी,
"तो तात्पर्य ये है …..
जिसे उसका रचियता (ब्रह्मा) नहीं समझ सका ,
उसे आप हम जैसे तुच्छ मनुष्य क्या समझेंगे…….
तो बेहतर होगा नारी पर रिसर्च करने की बजाय दुनिया की बाकी समस्याओं का हल ढूँढने में वक़्त का उपयोग किया जाये."
सहमत हैं भाई…एकदम सहमत !
और ऊपर की टिप्पणियों से तो ऐसा प्रतीत होता है कि हड़प्पा की खुदाई करने वाले भी आपके इस निष्कर्ष से सहमत लगते हैं…… 🙂
सटीक।
… बहुत खूब, प्रसंशनीय लेख !! … स्त्री-पुरुष दोनो एक सिक्के के दो पहलु हैं इसलिये ही दोनो प्रयोग मे लगे रहते हैं कुछ नया-नया लिखने-खोजने … !!!!!
शिखा जी सबसे पहले आपको बधाई देंना चाहूंगा इस बेहतरीन व लाजवाब पोस्ट के लिए , आपके इस रचना के माध्यम बहुत से मु्द्दो पर सिधा व सटिक निशांना साधा । इससे पहले कि कुछ कहूँ नारी के लिए दो शब्द कहना चाहूँगा "नारी की तुलना इस पृथ्वी पर किसी से हो ही नही सकती और न ही नारी को कोई इसे परिभाषा में बाँध ही सकता , यहाँ आपके बात से बिल्कुल सहमत हुँ कि नारी को कोई समझ भी नही सकता । मेरे ख्याल से दुःख , कष्ट और प्रतिकूलता सहने करनेका का नाम "सहिष्णुता" है । यह नारी- जातिका स्वाभाविक गुण है । नारी पुरुष की अपेक्षा बहुत अधिक सहती है और सहनकी शक्ति रखती है । साधारतः सहिष्णुता गुणकी तुलना वृक्षोंके साथ की जाती है ।
"तरोरिव सहिष्णुता "। लोग पत्थर मारते हैं तो फलका वृक्ष सुन्दर सुपक्व मधुर फल देता है । लोग काटकर जलाते हैं तो वह स्वयं जलकर उनका यज्ञकार्य सम्पादन करता है , भोजन पकाता है और शीतसे ठिठुरते हुए शरीरमें गरमी पहुँचाकर जीवनदान देता है । फलवान् वृक्ष बनता भी हैं अनेकों आँधी , पानी , झाड़ बिजली आदि बाधाविपत्तयियों को झेलकर । यदि किसी प्रतिकुल भावोंके साथ और प्रेम के साथ व्यवहार किया जाये तो उन्हे सन्मार्ग पर लाया जा सकता है ।
अब बात आती है " ताड़ना शब्द के विवाद को लेकर , तो जो अर्थ आप बताना चाहती है यहाँ ताड़ना शब्द का वह कतई सत्य नहीं माना जा सकता ," ‘‘ढोल गँवार सूद्र पसु नारी/सकल ताड़ना के अधिकारी।।’’ यही वह चौपाई जिसे आप बताना चाहती हैं शायद , ।
कहा जाता है कि नारी को ताड़ना का अधिकारी बता कर गोस्वामी जी ने समस्त नारी जाति का अपमान किया है। ऐसी शंका और विवाद चौपाई के अर्थ का अनर्थ करने तथा उसके निहितार्थ को सही परिप्रेक्ष्य में न समझ पाने के कारण पैदा हुआ है।वास्तव में इस चौपाई द्वारा ताड़ना के अधिकारी पाँच नहीं केवल तीन ही बताए गए हैं –
1. ‘ढोल’ जिसका प्रयोग डंडे की चोट द्वारा ही संभव है।
2. ‘गँवार सूद्र’ का तात्पर्य तत्कालीन समाज में उस सेवक से है जो गँवार (मूर्ख व हठी) हो तथा जिसके व्यवहार से मालिक का नुकसान हो रहा हो।
3. ‘पसु नारी’ अर्थात् पशुवत् आचरण करने वाली स्त्री जो मर्यादा का उल्लंघन करे तथा विवेक को ताक पर रख कर परिवार में अशांति व कुंठाएं पैदा करे।
प्रस्तुत चौपाई के द्वारा ये तीन ही ताड़ना के अधिकारी बताए गए हैं। शेष दो शब्द ‘गँवार’ और ‘पसु’ का प्रयोग चौपाई में शूद्र और नारी के विशेषण के रूप में किया गया है।
यहाँ ‘ताड़ना’ शब्द पर भी ध्यान देना होगा। शब्द -कोश में ताड़ना का अर्थ मारना- पीटना ही नहीं ‘डाँटना-डपटना’ भी है। अस्तु ‘गँवार-सूद्र’ या ‘पसु-नारी’ को डाँट-डपट कर सुधारने का सुझाव देकर तुलसीदास जी ने कोई अन्याय नहीं किया।
विस्तृत परिप्रेक्ष्य में विचार करने पर स्पष्ट हो जाता है कि गोस्वामी जी ने नारी को सदैव आदर व सम्मान ही दिया है।
यथा ‘‘अनुज-वधू भगिनी सुत-नारी। सुनु सठ कन्या सम ये चारी।।’
इसी प्रकार हनुमान जी को सागर बीच जब सुरसा उदरस्थ करने पर अड़ गई, तब भी उसे माता कहकर ही संबोधित किया गया है यथा –
तब तव वदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।
श्रीराम और शबरी के प्रसंग में शूद्र और नारी दोनों के प्रति जिस ममता, प्रेम व सम्मान का वर्णन है उससे स्पष्ट हो जाता है कि रचनाकार पर नारी या शूद्र को अपमानित करने का आरोप निराधार और अन्यायपूर्ण है।
ताड़ना शब्द का ऐसा ही एक उदाहरण है जो कि यहा प्रयोग में लाया गया ताड़ना शब्द के समान ही लगता है
" लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पु्त्रे मित्रत्वमाचरेत् "।।
अर्थात पाँच वर्ष तक दुलार करें पुत्र का , और दस वर्षतक ताड़ना दें यानी उसे नियन्त्रणं में रखे – उच्छृख्डंल ना
NARI nahi manav kah sakte ho,
Kyo vibhed karke dukhi karte ho.
sach kaha apne ab hum apne bare me likhna padhne nahi chahte hai. Shikha ji achchha laga apki post padh kar….
आपकी ये पोस्ट बेहद अच्छी है। इस तरह के लेखों में जहाँ नारी की चिंता की जाती हैं वो सभी पुरुषों द्वारा ही लिखी गई हैं ये भी एक बात हो सकती हैं। माने कि नारी ख़ुद को लेकर उतनी खोजी नहीं जितने कि पुरुष हैं।
आदरणीय मिथलेश दुबे जी ! सर्वप्रथम आपका बहुत बहुत आभार यहाँ तक आकर पोस्ट पढने का ….
आपने जो ताड़ना शब्द की व्याख्या की और हमारा ज्ञान बढाया उसके लिए भी बहुत शुक्रिया. संभवत आपका कहना सत्य है, परन्तु फिर भी उन्होंने डांटने ,डपटने और नियंत्रण के लिए भी तो नारी को ही चुना न …..नर को नहीं ..क्या पशुवत व्यवहार नर नहीं करता ? क्या उसे डटने ,या नियंत्रित करने की जरुरत नहीं ?जैसा की आपने स्वं माना की आमतौर पर इसका अर्थ इसी रूप में लिया जाता है और इसी को आधार मान कर आजतक नारी पर और न जाने क्या क्या लिख दिया गया है….यहाँ इसका उल्लेख कर, मैं भी सिर्फ यह ही कहना चाहती थी बिना जाने समझे नारी पर शोध और उसकी व्याख्या को अब ख़तम किया जाना चाहिए और बहुत मसले हैं शोध करने के लिए…..बरहाल आपने मेरा ज्ञान बढाया शुक्रगुजार हूँ.
बहुत सुंदर रचना है।
pls visit…
http://dweepanter.blogspot.com
अब कुछ कहने को बचा नहीं है। मनुष्य की चिरन्तन जिज्ञासा का विषय बने रहना यूँ ही तो नहीं है। कुछ तो कारण होगा। इसपर भी विचार होना चाहिए। मानव का विकास इसी जिज्ञासा पर टिका है। यह नारी ही नहीं ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने वाली सतत प्रक्रिया है। इसे रोकना सम्भव कहाँ है। अलबत्ता इसका उद्देश्य सकारात्मक और अग्रगामी होना चाहिए। छिद्रान्वेष्ण और पश्चगामी प्रवृत्तियों पर लगाम लगाना आवश्यक है।
एक विचारणीय पोस्ट के लिए बधाई और धनयवाद।
नारी जननी है। शिशु का पालन और पोषण करती है। इसलिए कुछ ऐसे गुण प्रकृति प्रदत्त हैं जो पुरुष प्रधान समाज को अनूठे लगते हैं।
एक पक्ष यह भी है कि यही समाज नारी प्रधान होता तो सम्भवत: पुरुष विमर्श होते रहते। विमर्श तो होते रहने चाहिए। सिद्धार्थ की टिप्पणी गौर करने लायक है। अतिवादिता और अतिरेक से बचा जाना चाहिए।
हाँ, त्रयी और अथर्वण परम्परा (वेद) में ,"त्रिया चरित्र" विश्लेषण या उल्लेख कहीं भी नहीं है।
अच्छा लिखा है। मजे की बात देखिये कि जो भाई एक जगह औरत को झूठ का पुलिन्दा , फ़ुसलाने वाली बताते हैं वही आपके यहां आपकी बात को सही बता गये। इसके बाद संस्कार पर क्लास भी ले ली उन्होंने।
पुरुषों के पास स्त्रियों पर लिखने के अलावा कोई विषय ही नहीं बचा शायद. महिलायें तो पुरुषों पर नहीं लिख रहीं, पुरुषों की तमाम खूबियों से वाकिफ़ होने के बाद भी.
shikha ji such me apki rachna ka title chauka dene wala hai..lekin padhne ke baad ek ek shabd satye hai…yahi durbhagye hai istri ka ki bahut se guno se sampann hone k bavzood bhi use shaq ki nazer se dekha jata hai aur uske vyevhaar ki khudayi ki jati hai.
apke is sashakt lekhan par apko bahut si badhayi.
Happy Birthday to you…
Happy Birthday to you…
Happy Birthday to you…
Happy Birthday to Shikha ji….
baar baar din yeh aaye , baar dil yeh gaaye, aap jeeyo hazaaron … yeh hai.. arzoo….
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शिखा जी !
विचारोत्तेजक पोस्ट के लिए बधाई !
आपसे काफी सहमति के साथ थोड़ी असहमति भी ..
शोध और विमर्श तो होने ही चाहिए और नारी पर भी , नहीं तो
सम्पूर्णता में ज्ञान-प्राप्ति संभव नहीं .. नारी पर शोध नारी-विरोध नहीं है ..
हाँ , आवश्यक है की सतही और पूर्वग्रह से युक्त शोध न हो ..
जैसे , यत्किंचित शोधपूर्णता आपके लेख को मजबूती दे रहा है बस इसी
रूप में शोध की ठोस भूमिका होती है ..
@ Mithilesh dubey
तुलसीदास जी का विचार नारी पर वैसा ही नहीं है जैसा आप का मानना है ..
'ताड़ना' का अर्थ वही है जो शुरू में शिखा जी ने दिया है ..
दरअसल नारी विषयक तुलसी जी की बात उनके युग के सच को बताती है ..
उन्होंने अन्यत्र भी लिखा है ..
'' सहज अपावन नारि , पति सेवत सुभ गुन लहहि ''
और ,
… ( नारी में ) '' अवगुन आठ सदा उर रहहीं '' …… आदि – आदि
क्या सफाई दी जायेगी यहाँ ?
……….. परन्तु उन्हींने नारी की पराधीनता को भी देखा और कहा —
'' कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं |
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं | | ''
इसीलिये मैंने कहा कि यह दुचित्तापन उस ( और , काफी हद तक आज के युग में भी )
व्याप्त है .. इस दुचित्तेपन पर गहराई के साथ शोध अपेक्षित है न कि किसी का बचाव
या दुराव ; क्योंकि लक्ष्य तो सत्यान्वेषण है न !
……………. बुरा लगेगा तो माफ़ करना , मित्र ,,,
शिखा जी…
आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी….. यह पोस्ट यह भी सन्देश देती है कि बड़ों को छोटों के मूंह नहीं लगना चाहिए…. छोटे अगर गलती करते हैं…. तो यह बड़ों का ही काम होता है कि उन्हें समझाएं…. और छोटों ने किन परिस्थिति में गलती कि है उसके कारण को जानकर उसका निवारण करें…. उन्हें समझाएं और उन्हें सही रस्ते पर लायें…..
कुल मिला के आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी….. आपको जन्मदिन कि बधाई रात में ही दे दी है …. पर वो दूसरी ID से चली गई….
एक बार फिर आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं…..
पहली बार आपका ब्लाग देखा बहुत अच्छा लगा आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं…..
रोचक लिखा है …….. सार्थक लिखा है पर ये खोज जो सदियों से जारी है इतनी जल्दी ख़त्म होने वाली नही ……..
जन्मदिन की बधाई!
शिखा जी हार्दिक जन्म दिन की शुभकामनाए
सर्व प्रथम आपको जन्मदिन की बधाई. is post par टिपण्णी विस्तार से करूंगा.
आप सभी के स्नेह आशीष और शुभकामनाओं का तहे दिल से आभार……
थोडा कहना चाहा लेकिन लंबा लिखा चला गया…
आप यहाँ पढ़ ले.
http://sulabhpatra.blogspot.com/2009/12/blog-post_21.html
यह विमर्श शायद चलता रहे..
सार्थक ब्लोगरी के लिए आपको पुनः बधाई!
Shikah ji
Sabse pehle apako Janm din ki hardik shubhkamnaye…
aapka ye Article abhi-tak ka Grand hit hua hai,
sabhi vidwano ne apne comments diye hai, to mere liye kuch bachta hi nhi, sirf
aapko dehro badhaie dena chahunga, aur aage bhi aap kuch alag se hatkar aisa hi likhte rahe, maa swarasswati aapki lekhni ko aur jyda samradh kare….
बहुत खूब .. लेकिन आप ने अपनी परिभाषा नही दी…!!
अरे हमे मालूम ही न था। बहुत-बहुत बधाई जन्मदिन की।
जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई …..
पहले सोचा देर हो गयी अब दूं या नही फिर सोचा अच्छी बातों को कह देना चाहिए चाहे देरी से ही सही ……
ये हुई ना यारों वाली बात…सच है–भाई! औरत-मर्द को क्यों बना देते हो भारत-पाकिस्तान…। हा हा हा
गहन अध्ययन हो गया शिखा जी आपकी पोस्ट का आज ..
बहुत सारी बातें सीखने समझने को मिलीं ..
बधाई आपको इस पोस्ट के लिए ..
सबला है या अबला है पता नहीं ….पर बला ज़रूर है …अ या स अपने हिसाब से जोड़ना पड़ता है …!!
बहुत सही विचार रखे हैं आपने.
सादर
आपकी पोस्ट यहाँ भी है……नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
.नारी की स्थिति पर ह्र्दय से निकली सार्थक रचना…….
हम तो इतना जानते हैं कि नारी इस सृष्टि की जननी है और उसके बिना यह संसार नष्ट प्रायः ही है।
Mera to manna hai ki Purus & Prkriti dono hi sristi ki rachna me sman sahbhagi hai……ek ke bina dusre ka koi astitva nhi hai……privertan to kal ke sapechh aya hai……..anvesan to anvarat jari rhega………..
Nice read, I just passed this onto a colleague who was doing a little research on that. And he actually bought me lunch as I found it for him smile Therefore let me rephrase that: Thank you for lunch! “The future is not something we enter. The future is something we create.” by Leonard I. Sweet.
Enjoyed every bit of your article. Keep writing.