कुछ कहते हैं शब्दों के पाँव होते हैं वे चल कर पहुँच सकते हैं कहीं भी दिल तक, दिमाग तक,जंग के मैदान तक. कुछ ने कहा शब्दों के दांत होते हैं काटते हैं, दे सकते हैं घाव, पहुंचा सकते हैं पीड़ा। मेरे ख़याल से तो शब्द रखते हैं सिर्फ अपने रूढ़ अर्थ कब, कहाँ, कैसे,कहे, लिखे, सुने गए यह कहने सुनने वाले की नियत पर है निर्भर कोई भी शब्द अच्छा या…
चढ़ी चूल्हे पर फूली रोटी, रूप पे अपने इतराए पास रखी चपटी रोटी, यूँ मंद मंद मुस्काये हो ले फूल के कुप्पा बेशक, चाहे जितना ले इतरा पकड़ी तो आखिर तू भी, चिमटे से ही जाए. *** लड्डू हों या रिश्ते, जो कम रखो मिठास(शक्कर) तो फिर भी चल जायेंगे। पर जो की नियत (घी) की कमी, तो न बंध…
सामने मेज पर क्रिस्टल के कटोरे में रखीं गुलाब की सूखी पंखुड़ियाँ एक बड़ा कप काली कॉफी और पल पल गहराती यह रात अजीब सा हाल है. शब्द अंगड़ाई ले, उठने को बेताब हैं और पलकें झुकी जा रही हैं. *************** अरे बरसना है तो ज़रा खुल के बरसो किसी के सच्चे प्यार की तरह ये क्या बूँद बूँद बरसते हो…
एक ज्योतिषी ने एक बार कहा थाउसे वह मिलेगा सबजो भी वह चाहेगी दिल सेउसने मांगापिता की सेहत,पति की तरक्की,बेटे की नौकरी,बेटी का ब्याह,एक अदद छत.अब उसी छत पर अकेली खड़ीसोचती है वोक्या मिला उसे ?ये पंडित भी कितना झूठ बोलते हैं. ************************ चाहते हैं हम कि बन जाएँ रिश्ते जरा से प्रयास से थोड़ी सी गर्मी से और थोड़े से…
सपाट चिकनी सड़क के किनारे कच्चे फुटपाथ सी लकीर और उसके पीछे कंटीली झाड़ियों का झुण्ड आजू बाजू सहारा देते से कुछ वृक्ष और इन सबके साथ चलती किसी के सहारे पे निर्भर यह कार सी जिन्दगी चलती कार में से ना जाने क्या क्या देख लेती हैं ये ठिठकी निगाहें. ******************** पल पल झपकती पुतलियों के मध्य पनपता एक दृश्य श्वेत…
कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई जैसे सहित्य की धार कोई निरीह अबला कहे, कोई मदमस्त कमाल. ******************* दीवारों ने इंकार कर दिया है कान लगाने से जब से कान वाले हो गए हैं कान के कच्चे. ********************* काश जिन्दगी में भी गूगल जैसे ऑप्शन होते जो चेहरे देखना गवारा नहीं उन्हें “शो नेवर” किया जा सकता और अनावश्यक तत्वों को…
क्या दे सजा उसको क्या फटकारे उसे कोई , हिमाक़त करने की भी जिसने इज़ाजत ली है ********* हमारे दिन रात का हिसाब कोई जो मांगे तो क्या देंगे अब हम उसके माथे पे बल हो, तो रात और फैले होटों पे दिन होता है. ************** उसकी पलकों से गिरी बूंद ज्यूँ ही मेरी उंगली से छुई हुआ अहसास कितने गर्म ये जज़्बात होते हैं . ************ तेरे दिल के पास जो …
न नाते देखता है न रस्में सोचता है रहता है जिन दरों पे न घर सोचता है हर हद से पार गुजर जाता है आदमी दो रोटी के लिए कितना गिर जाता है आदमी *************** यूँ तो गिरना उठना तेरा रोज़ की कहानी है पर इस बार जो गिरा तो फिर ऊपर नहीं उठा है. ****************** बेहतर होता जो तनिक …
भावनाऐं हिंदी कविता की किताब हो गईं हैं जो ढेरों उपजती हैं पर पढीं नहीं जातीं. ****** भावनाऐं प्रेशर कुकर भी हैं जब बढ़ता है दबाब तो मचाती हैं शोर चाहती है सुने कोई कि पक चुकी हैं. बंद की जाये आंच अब. ********* भावनाओं का ज्वर जब चढ़ता है तो चाहिए होता है स्पर्श माथे पर ठंडी पट्टी सा दो चम्मच मधुर…
तेरे रुमाल पर जो धब्बे नुमायाँ हैं साक्षी हैं हमारे उन एहसासात के एक एक बूँद आंसू से जिन्हें हमने साझा किया था सागर की लहरों को गिनते हुए. ******************************** इतनी देर तक जो इकठ्ठा होते रहे उमड़ते रहे घुमड़ते रहे इन आँखों में. अब जो छलके तो गुनगुने नहीं ठन्डे लगेंगे ये आंसू. ************************ * बंद होते ही पलक से जो बूँद शबनम सी गिरती…