हसरतों के चरखे पर, धागे ख़्वाबों के बुनते रहे यूँ ही हम गिरते रहे , यूँ ही हम चलते रहे. पहले क़दम पर फ़ासला था, कई कोसों दूर का, फिर भी हम हँसते हुए सीड़ी दर सीड़ी चड़ते रहे. ना जाने क्या खोया, जाने पाया क्या दोर’ए सफ़र फूल कांटें राह के, हालाँकि हम चुनते रहे. फूल तो मुरझा गए,…