वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि बाँट लुंगी कुछ भीगी बातें। पता चलता कि एक या दो दिन बाद उनका श्राद्ध है। मैं अवाक रह जाती। मुझे देश से बाहर होने…
ग्रीष्मकालीन अवकाश, स्कूल वर्ष और स्कूल के शैक्षणिक वर्ष के बीच गर्मियों में स्कूल की एक लम्बी छुट्टी को कहते है। देश और प्रांत के आधार पर छात्रों और शिक्षण स्टाफ को आम तौर पर छ: से आठ सप्ताह के बीच यह अवकाश दिया जाता है। जहाँ भारत में यह अवकाश सामान्यत: पाँच से छ: सप्ताह का होता है वहीँ संयुक्त…
बच्चे न तो आपकी मिल्कियत होते हैं न ही फिक्स डिपॉजिट जिन्हें आप जब चाहें, जैसे मर्जी चाहें रख लें या भुना लें। बच्चे तो आपके माध्यम से इस समाज और दुनिया को दिया गया सर्वोत्तम उपहार हैं जिन्हें आप अपनी सम्पूर्ण क्षमता और अनुराग के साथ पालते हैं, निखारते हैं और इस दुनिया के लायक बनाते हैं। उनपर आपका…
बहुत दिनों से कुछ नहीं लिखा। न जाने क्यों नहीं लिखा। यूँ व्यस्तताएं काफी हैं पर इन व्यस्तताओं का तो बहाना है. आज से पहले भी थीं और शायद हमेशा रहेंगी ही. कुछ लोग टिक कर बैठ ही नहीं सकते। चक्कर होता है पैरों में चक्कर घिन्नी से डोलते ही रहते हैं. न मन को चैन, न दिमाग को, न ही पैरों को.…
BHU की समस्या और हालात के बारे में मैं इतना ही जानती हूँ जितना सोशल साइट्स पर पढ़ा. जितना भी समझ में आया उससे इतना अनुमान अवश्य लगा कि समस्या कुछ और है और हंगामा कुछ और. मुझे अपने स्कूल में हुआ एक वाकया याद आ रहा है. हमारा स्कूल एक छोटे से शहर का “सिर्फ लड़कियों के लिए” स्कूल…
कभी कहा जाता था गुप्त दान, महा दान. कि दान ऐसे करो कि एक हाथ से करो तो दूसरे को भी पता नहीं चले. खैर वो ज़माना तो चला गया और अब दान ने एक फैशन का सा स्वरुप ले लिया है. जहाँ एक भेड़चाल के चलते हम दान करते हैं और उससे भी अधिक उसका दिखावा. इसी फैशन के…
लड़कियों का स्कूल हो तो सावन के पहले सोमवार पर पूरा नहीं तो आधा स्कूल तो व्रत में दिखता ही था. अपने स्कूल का भी यही हाल था. सावन के सोमवारों में गीले बाल और माथे पर टीका लगाए लडकियां गज़ब खूबसूरत लगती थीं. ऐसे में अपना व्रती न होना बड़ा कसकता था और फैशन में पीछे रह जाने जैसी…
10वीं 12वीं का रिजल्ट आया. किसी भी बच्चे के 90% से कम अंक सुनने में नहीं आये. पर इतने पर भी न बच्चा संतुष्ट है न उनके माता पिता। इसके साथ ही सुनने में आया पिछड़ी पीढ़ी का आलाप कि हमारे जमाने में तो इसके आधे भी आते थे तो लड्डू बांटते थे. यह मुझे कुछ ऐसा ही लगता है…
“महिला लेखन की चुनौतियाँ और संभावना” महिला लेखन की चुनौतियां – कहाँ से शुरू होती हैं और कहाँ खत्म होंगी कहना बेहद मुश्किल है. एक स्त्री जब लिखना शुरू करती है तब उसकी सबसे पहली लड़ाई अपने घर से शुरू होती है. उसके अपने परिवार के लोग उसकी सबसे पहली बाधा बनते हैं. और उसकी घरेलू जिम्मेदारियां और कंडीशनिंग उसकी कमजोरी। क्या…
यूँ देखा जाए तो यह साल पूरी दुनिया के लिए ही खासा उथल पुथल वाला साल रहा. वहाँ भारत में नोटबंदी हंगामा मचाये रही, उधर अमरीका में विचित्र परिस्थितियों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हो गई और इधर ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ से किनारा कर लिया. हालाँकि रेफेरेंडम के नतीजे आने के तुरंत बाद ही इन्टरनेट पर उसे लेकर पछतावे की…