वह बृहस्पतिवार का दिन था – तारीख 23 जून 2016 – जब एक जनमत संग्रह के लिए मतदान किया जाने वाला था. इसमें वोटिंग के लिए सही उम्र के लगभग सभी लोग वोट कर सकते थे वे फैसला लेने वाले थे कि यूके को योरोपीय संघ का सदस्य बना रहना चाहिए या उसे छोड़ देना चाहिए. इस जनमत संग्रह में…
बस एक दिन बचा है. EU के साथ या EU के बाहर. मैं अब तक कंफ्यूज हूँ. दिल कुछ कहता है और दिमाग कुछ और. दिल कहता है, बंटवारे से किसका भला हुआ है आजतक. मनुष्य एक सामाजिक- पारिवारिक प्राणी है. एक हद तक सीमाएं ठीक हैं. परन्तु एकदम अलग- थलग हो जाना पता नहीं कहाँ तक अच्छा होगा. इस…
“बिहार की एक ट्रेन में, बोतल से पानी पी लेने पर एक युवक की कुछ लोगों ने जम कर पिटाई कर दी” सोशल मीडिया पर छाई इस एक खबर ने मुझे न जाने कितनी ही बातें याद दिला दीं जिन्हें मैं इस मुगालते में भुला चुकी थी कि अब तो बहुत समय बीत गया। हालात सुधर गए होंगें। पर क्या…
क्योंकि हमारे यहाँ प्यार दिखावे की कोई चीज़ नहीं है. नफरत दिखाई जा सकती है, उसका इजहार जिस तरह भी हो, किया जा सकता है. गाली देकर, अपमान करके या फिर जूतम पैजार से भी. परन्तु प्यार का इजहार नहीं किया जा सकता. उसे दिखाने के सभी तरीके या तो बाजारवाद में शामिल माने जाते हैं या फिर पश्चिमी संस्कृति का दिखावा. कहने…
विश्वविद्यालय मुझे आकर्षित करते हैं – क्योंकि- विश्वविद्यालय WWF अखाड़ा नहीं, ज्ञान का समुन्दर होता है. जहाँ डुबकी लगाकर एक इंसान, समझदार, सभ्य और लायक नागरिक बनकर निकलता है. क्योंकि- शिक्षा आपके व्यक्तित्व को निखारती है, आपको अपने अधिकार और कर्तव्यों का बोध कराती है. वह खुद को सही तरीके से अभिव्यक्त करना सिखाती है. क्योंकि- आप जब वहां से निकलते हैं…
आज सुबह राशन खरीदने टेस्को (सुपर स्टोर) गई तो वहां का माहौल कुछ बदला बदला लग रहा था. घुसते ही एक स्टाफ की युवती दिखी जो भारतीय वेश भूषा में सजी हुई थी. मुझे लगा हो सकता है इसका जन्मदिन होगा। सामान्यत: यहाँ एशियाई तबकों में अपने जन्मदिन पर परंपरागत लिबास में काम पर जाने का रिवाज सा है. परन्तु थोड़ा…
ऑफिस से आकर उसने अलमारी खोली। पीछे से हैंगर निकाल कर निहारा। साड़ी पहनने की ख़ुशी ने कुछ देर के लिए सारा दिन भूख प्यास से हुई थकान को मिटा दिया। वह हर साल इसी बहाने एक नई साड़ी खरीद लिया करती है कि करवा चौथ पर काम आएगी। वर्ना यहाँ साड़ी तो क्या कभी सलवार कमीज पहनने के मौके…
घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने – गज़ब का सटीक मुहावरा गढ़ा है किसी ने. और आजकल के माहौल में तो बेहद ही सटीक दिखाई दे रहा है. जिसे देखो कुछ न कुछ लौटाने पर तुला हुआ है. किसे? ये पता नहीं। अपने ही देश का, खुद को मिला सम्मान, अपने ही देश को, खुद ही लौटा रहे हैं. बड़ी ही…
वह इतनी धार्मिक कभी भी नहीं थी. बल्कि अपने देश में होने वाले त्यौहारों की रस्मों पर अक्सर खीज कर उनके औचित्य पर माँ से जिरह कर बैठती थी. उसे यह सब कर्मकांड कौरी बकवास और फ़ालतू ही लगा करता था. फिर माँ के बड़े मनुहार के बाद उनका दिल रखने के लिए वह उन रस्मों को निभा लिया करती थी. परन्तु यहाँ…
पिछले दिनों एक समाचारपत्र में एक खबर थी कि एक २ साल की बच्ची को उसके नाना नानी से लेकर अनाथ आश्रम में पहुंचा दिया गया. क्योंकि नाना नानी को कोर्ट ने बच्ची की देखभाल के लिए उपयुक्त आयु से अधिक पाया। बच्ची की माँ नशे की आदी है और मानसिक रूप से किसी बच्चे को पालने में असमर्थ है इसलिए बच्ची…