कविता

निशा नहीं शत्रु, बस सुलाने आती है, चली जाएगी हो कितना भी गहन अन्धेरा, उषा अपनी राह बनाएगी समय की डोर थाम तू, मन छोड़ दे बहती हवा में वायुवेग के संग सुगंध फिर, तेरा जी महकाएगी. कार्य नियत उसे उतना ही, है जितनी सामर्थ्य जिसकी गांडीव मिला अर्जुन को ही, बने कृष्ण उसके ही सारथी हर एक का जन्म…

कुछ लोग जब बन जाते हैं बड़े तो बढ़ता है उनका पद पर नहीं बढ़ता उनका कद। वे रह जाते हैं छोटे, मन, वचन और कर्म से। उड़ते हुए हवा में छोड़ देते हैं जमीं और लगा देते हैं ठोकर जमीं से जुड़े हुए लोगों को। उड़ा देते हैं मिट्टी को फूंक से समझ कर पाँव की धूल। फिर उड़ते…

अब नहीं होती उसकी आँखे नम जब मिलते हैं अपने अब नहीं भीगतीं उसकी पलके देखकर टूटते सपने। अब नहीं छूटती उसकी रुलाई किसी के उल्हानो से अब नहीं मरती उसकी भूख किसी के भी तानो से। अब किसी की चढ़ी तौयोरियों से नहीं घुटता मन उसका अब किसी की उपेक्षाओं से नहीं घुलता तन उसका । अब नम होने से…

ऐ मुसाफिर सुनो,  वोल्गा* के देश जा रहे हो  मस्कवा* से भी मिलकर आना.  आहिस्ता रखना पाँव  बर्फ ओढ़ी होगी उसने  देखना कहीं ठोकर से न रुलाना।  और सुनो, लाल चौराहा* देख आना  पर जरा बचकर जाना  वहीँ पास की एक ईमारत में  लेनिन सोया है  उसे नींद से मत जगाना। मत्र्योश्काओं* का शहर है वह  एक बाबुश्का* को जरूर मनाना …

सुबह की धुंध में  उनीदीं आँखों से देखने की कोशिश में सिहराती हवा में, शीत में बरसते हो, बर्फीली ज्यूँ घटा से. लिहाफों में जा दुबकी है मूंगफली की खुशबू. आलू के परांठे पे गुड़ मिर्ची करते गुफ्तगू. लेकर अंगडाई क्या मस्ताते हो हाय दिसंबर तुम बहुत प्यारे हो.…

हम जैसे जैसे ऊपर उठते हैंघटता जाता है हवा का दबाव.भारी हो जाता है,आसपास का माहौल. और हो जाता है,सांस लेना मुश्किल.ऐसे में जरुरी है कि,मुँह में रख ली जाए,कोई मीठी रसीली गोली,अपनों के प्रेम की.जिससे हो जाता हैसांस लेना आसानऔर कट जाता है सफ़रआराम से।…

कितनी ठिठुरन है आज  चलो न, पी आएं एक एक कप कॉफी  मैं लूंगी एक लार्ज कैपचीनो,  जिसपर बनाता है वह एक दिल,  चॉकलेट और अपनी कला से. तुम ले लेना अपनी लाटे,  सफ़ेद, दूध, चीनी से भरी. ये कॉफ़ी भी व्यक्तित्व का रूपक होती हैं न.…

उस बिंदास लड़की (चुड़ैल) के नाम, जिससे पीछा छूटना इस जन्म में तो मुमकिन नहीं है.  वह बनती है पत्थर पर है मोम सी. भरी रहती है हमेशा आँखों की टंकी। झट से छलक पड़ती है जो उसके हँसते – रोते। खुद को समझती लड़का, दिल के हर कोने तक है लड़की।  एक नंबर की झगड़ालू पर प्यार लुटाने वाली पड़ोसी की भी प्लेट से उठा…

बहुत याद आता है गुजरा ज़माना सान कर दाल भात हाथों से खाना। वो लुढ़कती दाल को थाली में टिकाना, गरम गरम दाल में उंगलियां डुबाना, फिर “उईमाँ” चिल्लाकर, रोनी सूरत बनाकर,   जली उँगलियों को मुँह तक ले जाना। खूब सारा भात परोस कर लाना, उसमें से आधा भी न खा पाना, मम्मी की नजरों से फिर खुद को बचाकर,…

पिता माँ से नहीं होतेवह नहीं लगाते चिहुंक कर गलेनहीं उड़ेलते लाड़नहीं छलकाते आँखें पल पलरोके रखते हैं मन का गुबारऔर बनते हैं आरोपीदेने के सिर्फ लेक्चर.पर तत्पर सदा हटाने को  हर कांटा बच्चों के पथ से खड़े वट वृक्ष की तरहदेते छाया कड़ी घूप मेंऔर रहते मौननहीं मांगते क़र्ज़ भीकभी अपने पितृत्व का।…