बच्चे न तो आपकी मिल्कियत होते हैं न ही फिक्स डिपॉजिट जिन्हें आप जब चाहें, जैसे मर्जी चाहें रख लें या भुना लें। बच्चे तो आपके माध्यम से इस समाज और दुनिया को दिया गया सर्वोत्तम उपहार हैं जिन्हें आप अपनी सम्पूर्ण क्षमता और अनुराग के साथ पालते हैं, निखारते हैं और इस दुनिया के लायक बनाते हैं। उनपर आपका कर्तव्य और अधिकार अब पूरा होता है। अब वक्त है उन्हें अपनी उड़ान स्वयं लेने देने का। पसार कर अपने पंखों को छोड़ देना इस उन्मुक्त गगन में उड़ने को, लेने देने को उनके सपनों को आकार और फिर उन्हें पूरा करने को। अबतक बच्चे ने आपसे, स्कूल से, इस समाज से जो भी सीखा, अब वक्त है वह सब कुछ इस समाज को लौटाने का।
बच्चे के जीवन का नया अध्याय शुरू होता है.
ज़रा सोच कर देखिये, हम बच्चा क्यों चाहते हैं? क्या इसलिए कि वह बड़ा होकर भी हमारी गोद में बैठा रहे, हमारी सेवा करे, और मरने के बाद हमारा क्रियाकर्म कर हमें स्वर्ग में जगह दिलाए?
क्या बच्चे के रूप में हम अपनी स्वार्थ पूर्ती का एक साधन चाहते हैं? या फिर एक ऐसा इंसान चाहते हैं जो स्वयं खुश रहे और समाज में सकारात्मक योगदान देकर हमें भी प्रसन्नता प्रदान करे. एक माता -पिता को सबसे अधिक ख़ुशी होती है अपने बच्चे को खुश और कामयाब देखकर. उनका सीना गर्व से फूलता है तो समाज में अपने बच्चे का मान – सम्मान देखकर. बच्चे की प्रशंसा- प्रशस्ति से वे सबसे अधिक सुख महसूस करते हैं और इसके लिए जरुरी है कि एक समय के बाद उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए उसे अपनी सरपरस्ती से थोड़ा अलग किया जाये. अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को छोड़कर बच्चे की ख़ुशी और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारियों को समझकर उसे उसके कर्तव्यों की पूर्ती के लिए प्रोत्साहित किया जाये. उसे यह यकीन दिलाया जाए कि वह चाहे हमारे पास रहे या दूर, हमारा स्नेह, आशीर्वाद और सामीप्य उसके साथ है और हर परिस्थिति में उसके साथ रहेगा. वह हमारा बच्चा है, हमारा ही रहेगा पर अब वह एक अलग इंसान भी है, इस समाज का एक उत्कृष्ट नागरिक बनने की ओर अग्रसर है. अब उसकी जिम्मेदारियां बढ़ रही हैं, उसके सपने साकार होने की तरफ हैं और उसके जीवन का मकसद उसे पूरा करना है. इस मकसद में आपके दिए संस्कार और शिक्षा उसके काम आएगी. आपका प्यार और साथ उसका संबल बने न कि रूकावट.
यूँ मानव स्वभाव तो बदलता नहीं. कुछ मोह माया तो स्वाभाविक है. अंग्रेज माएं भी बेटे को हॉस्टल में छोड़ते हुए गले लगाकर रोती है, अंग्रेज पिता भी पीछे से चिल्लाकर कहता है…मौज करना पर “पीना” मत. छोटी बहन चहकती हुई हाथ हिलाती है और एक बेहतरीन, पढ़ाकू टाइप यूनिवर्सिटी में भी, फ्रेशेर्स के लिए “वेलकॉम पैक” में सीनिअर कंडोम रखते हैं. दि यूनी लाइफ विगेन…
तो मुबारक नई उड़ान, नया संसार, नई जिम्मेदारियां और नया आकाश।
Give the world the best and the best will come back to you.
(एक नया दिन, एक नई शुरुआत – यूनिवर्सिटी का पहला दिन)
वाह!! मज़ा आ गया पढ़ के। बहुत सच्ची बातें लिखीं तुमने। कई बार बड़ों का साथ रहने का लालच, बच्चों की उड़ान को रोकने का काम करता है। बहुत बढ़िया पोस्ट ??
बहुत ही अच्छा ।
एक एके बात सही है, जो लोग स्वार्थ में बच्चों को अपने पास रोक लेते हैं, वे बच्चों का सर्वांगीण विकास रोक लेते हैं।
बिलकुल सही कहा लेकिन भारतीय मानसिकता तो बच्चो को लेकर बिलकुल अलग ही है | यहाँ तो आज भी माता पिता की उन्होंने बच्चो को जन्म दे उन्हें पाल कर उन बच्चो पर अहसान किया है , जिसे बच्चे को सारा जीवन उनकी सेवा कर चुकाना है |