भाव अर्पित,राग अर्पित
शब्दों का मिजाज अर्पित
छंद, मुक्त, सब गान अर्पित
और तुझे क्या मैं अर्पण करूं।
नाम अर्पित, मान अर्पित
रिश्तों का अधिकार अर्पित
रुचियाँ, खेल तमाम अर्पित
और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ
शाम अर्पित,रात अर्पित
तारों की बारात अर्पित
आधे अधूरे ख्वाब अर्पित
और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ।
रूह अर्पित, जान अर्पित
जिस्म में चलती सांस अर्पित
कर दिए सारे अरमान अर्पित
अब और क्या मैं अर्पण करूँ।
जय हो कम्प्यूटर देवता , जै हो आधुनिक तकनीकी माध्यमों 🙂
बदले में एक टिप्पणी अर्पित ।
खूबसूरत सी अभिव्यक्ति ।
मन समर्पित ,तन समर्पित …याद आया …
समर्पण में जो मर्म छिपा होता है वो ऐसी ही भाव धाराएँ बहा देता है…!
लगता है अर्पण समारोह में आये है . हंसी से इतर, समर्पण की अद्भुत गाथा है ये शब्द चित्र . स्व से छुटकारा , उनकी संतुष्टि अपने मन की शांति .
khubsurat kavita…arpan ki…
fir hamara ek comment bhi arpit.. 🙂
रुपये अर्पित नहीं किए आपने … बिना दक्षिणा के पूजा पूरी नहीं होगी जी … जेब भी खाली करो जी … 😉
वो तो हैं ही नहीं न ..हिंदी लेखन में कहाँ मिलते हैं:):).
खाली झोली भी अर्पित कर दीजिए.
🙂
यही समर्पण की मर्म है. यही समर्पण मुक्ति का मार्ग दिखाता है, वाकई बहुत सुंदर शब्द दिये आपने, शुभकामनाएं.
रामराम.
रूह अर्पित, जान अर्पित
जिस्म में चलती सांस अर्पित
कर दिए सारे अरमान अर्पित
अब और क्या मैं अर्पण करूँ …. अब सांस तक तेरी ही है
आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
ये समर्पण स्त्रियाँ ही कर सकती हैं….
वाह ! बहुत ही सुन्दर सब कुछ समर्पित कर बहुत ही संतोष मिलता है …………..
कुछ अपने भी लिए भी बचा के रखिये ,ज़माना बहुत खराब है !
बस इस अर्पण को एक सुन्दर सा नाम भी दे दीजिये।
तन समर्पित मन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती तुझे कुछ और भी दूँ …।
रामावतार त्यागी जी ने इसी तरह का एक अविस्मरणीय देशभक्ति गीत लिखा है । आपकी कविता में भी समर्पण के अनूठे रंग हैं ।
पूरी की पूरी अर्पित हो गईँ- एकदम निश्चिंत और मगन रहिए,बस !
शब्दशः सत्य कहते स्त्री मन के भाव ….और तस्वीर बहुत बढ़िया है …!!
पूर्ण सरेंडर! सही है!
हम तो कहते की क्या अब जान भी लोगे , मगर आप ने तो जान भी अर्पित कर दी
खूबसूरत समर्पण
लयबद्ध सम्पूर्ण लेखनी …बहुत खूब
इस समर्पण को सब कुछ समर्पित …
कभी एक गीत सुना था देश भक्ति का …. दो लेने पेश हैं …
मन समर्पित, तन समर्पित ओर ये जीवन समर्पित
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ ओर भी दूं …
sunder abhivyakti
rachana
समर्पण की सीमा!
अद्वितीय समर्पण रचना के प्रति आपका . पूरे मन की गहराइयों से उत्पन्न
हृदय से निकले प्रेम का निर्मल प्रवाह……..अर्पण, सच्चे प्रेम का प्रतीक।
बहुत सुंदर !!
सब कुछ अर्पण कोई संवेदनशील मानव ही कर सकता है और इन शब्दों में व्यक्त भाव उसे पूर्ण कर रहे है .
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सुन्दर प्रस्तुति
शाम अर्पित,रात अर्पित
तारों की बारात अर्पित
आधे अधूरे ख्वाब अर्पित
और तुझे क्या मैं अर्पण करूँ।
दिल की गहराइयों से निकला सुंदर गीत.
सुबह, शाम, रात; नाम, मान; छंद, गान; रुचियाँ, खेल; भावनाएं… अधूरे सपने…सभी कुछ तो समर्पित कर दिया. यह समर्पण भाव और यह निष्ठा ही तो धुरी है स्त्री-पुरुष सम्बन्ध की…
रूह अर्पित, जान अर्पित
जिस्म में चलती सांस अर्पित
कर दिए सारे अरमान अर्पित
अब और क्या मैं अर्पण करूँ…स्त्री सर्वस्व वार देती है फिर भी नहीं उकताती स्वयं को निछावर करने में उसकी ज़रा-ज़रा ख़ुशी के लिए, ज़िद के लिए…काश, पुरुष उसके प्रेम का सम्मान करना सीख ले तो पूर्णता पा जाए जीवन ! सरल शब्द, सघन भाव, सुन्दर कविता !
arpan ka sunder bhaav
shubhkamnayen
पूर्ण समर्पण का खूबसूरत अंदाज़ …. भाव मयी रचना
supper
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