सागर भरा है
तुम्हारी आँखों में
जो उफन आता है
रह रह कर
और बह जाता है
भिगो कर कोरों को
रह जाती है
एक सूखी सी लकीर
आँखों और लबों के बीच
जो कर जाती है
सब अनकहा बयाँ
तुम
रोक लिया करो
उन उफनती ,
नमकीन लहरों को,
न दिया करो बहने
उन्हें कपोलों पे
क्योंकि देख कर वो
सीले कपोल और
डबडबाई आँखे तुम्हारी
भर आता है
मेरी भी आँखों का सागर.