“In my next life I would like to be born an indian” जी नहीं… ये कथन मेरा नहीं ,मुझे तो ये रुतबा हासिल है….यह कथन है एक अंग्रेज़ का ..जी हाँ ठीक सुना आपने वो अंग्रेज़ जिन्हें भारत में कमियां और अपने देश में खूबियाँ ही नजर आती हैं.यह कहना है Sebastian Shakespeare का जो हाल ही में २ हफ्ते की छुट्टियाँ भारत में बिता कर आये हैं और उन्होंने अपने कुछ खास अनुभव evening standard friday २९ january २०१० में एक लेख के तहत बांटे हैं. असल में इस लेख के शीर्षक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया “jobsworths and rudeness – I ‘m back in Britain ..क्योंकि कुछ दिन पूर्व मैने भी ब्रिटेन में कुछ समस्याओं पर एक लेख लिखा था (.http://hamzabaan.blogspot.
एक और अंग्रेजी सच
अपने इस लेख में लेखक कहते हैं – “उन्होंने लन्दन की सड़कों पर पिछले एक हफ्ते में इतने भिखारी देखे हैं जितने उन्होंने अपने पूरे तमिलनाडु दौरे के दौरान नहीं देखे.”भारत विश्व का भविष्य है और विश्व के २५ साल से कम उम्र के लोगों में २५ % लोग भारतीय हैं , और तमिलनाडु भारत के सबसे धनाड्य प्रदेशों में से एक है…
अपने लेख में आगे वे कहते हैं कि अपनी वापसी पर biritish airways की उड़ान में उस वक़्त उन्हें बेहद शर्मिंदगी महसूस हुई जब एक भारतीय यात्री के साथ एक केबिन सदस्य ने बहुत ही बेरुखी से सुलूक किया.और उसकी सहायता करने से ये कह कर मना कर दिया कि मेरी ड्यूटी तो पीछे खड़े रहने की है...” क्या वह हड़ताल पर चला गया था? ….वाह क्या गज़ब का इम्प्रेशन हम पहली बार इंग्लेंड में आने वाले लोगों को देते हैं…. उसके बाद अगले दिन lloyds बैंक की एक ब्रांच में इसी तरह की ग्राहक सेवा और अनियमता का सामना उन्हें करना पड़ा ..वहां एक ग्राहक जोर जोर से चिल्ला रहा था कि “lloyds had to be bailed out by taxpayers with billions of pounds and yet the bank coudnt even find enough staff to man its tills.” तो मैनेजर महाशय कहते हैं “मैं टिल पर नहीं जा सकता क्योंकि मैं मेनेजर हूँ.”लेखक कहते हैं “तो आखिर मेरी भारत यात्रा के बाद मैं इंग्लैंड के बारे में क्या जनता हूँ? ….यही कि we are a nation of jobsworths.और हमें व्यापारिक ,ग्राहक सम्बन्ध सुधारने के लिए लम्बा रास्ता तय करना है...और आखिर में वह कहते हैं.-.
“कभी ऐसा कहा जाता था कि एक ब्रिटिश बन कर जन्म लेना लॉटरी में पहला इनाम जीतने जैसा है…पर अपने अगले जनम में ..मैं एक भारतीय बनकर जन्म लेना चाहता हूँ.”.
जय हिंद
shika
aapka lekh achcha hai ,saval bhasha sambandhi na hokar dusre hote hai par ve kuch or bana diye jate hai.
अब आप जल्दी से हिंदुस्तान आ जाइये…. मुझे बहुत अच्छा लगेगा… पर यहाँ एक प्रदेश से पूरा देश नहीं जज कर सकते हैं…. वो अँगरेज़ पागल है… यहाँ जब आएगा तो …न्याय में देरी कि वजह से आत्महत्या कर लेगा… भाई-भतीजावाद में उसको नौकरी नहीं मिलेगी… टैक्स चोरी करना सीख जायेगा… बैंक उसके खाते से बिना बताये …कोई ना कोई बात पर जब पैसा काटेंगे…तो वो मर ही जायेगा.. बिजली उसको सिर्फ राजधानी में मिलेगी… पानी उसको १०० रुपये में १००० लीटर मिलेगा.. मौल में जायेगा तो ब्रैंड डिस्क्रिमिनेशन देख कर सोच में पड़ जायेगा… मेडिकल फैसिलिटी सिर्फ अमीरों के लिए है… गरीब जानवरों की तरह मर जाते हैं… यहाँ के डॉक्टर मरीज़ देखने से पहले हैसियत पूछते हैं… पुलिस को ५ रुपये में बिकते देखेगा तो ,,… वही अँगरेज़ गाली देगा… ब्रिटिश एयरवेज़ जैसी घटना …exception हैं.. .. यहाँ की फ़ौज में ज़्यादातर गद्दार हैं…. ज़ात-पात देख कर वो अँगरेज़ परेशां हो जायेगा…. दस/बारह दिन में भारत को नहीं जाना जा सकता…. अँगरेज़ ने वही देखा जो उसने देखना चाहा…. यहाँ ट्रेन में उसको क्लासेस मिलेंगी…. यहाँ इंसानों में भी फर्क देखेगा … तो सोच के गाली लिखेगा…रेड -टेपइज़म देख लेगा तो एक घंटे में छत्तीस बार आत्महत्या करेगा… यहाँ कॉल- लैटर के लिए घूस देना पड़ता है….
उस अँगरेज़ को एक बार भारत के गाँव भी घूमने चाहिए…. सही भारत पता चल जायेगा….
सटीक आलेख….सच है कि कोई बात हिन्दुस्तानी कहे तो लोग विश्वास नहीं करते…अब प्रत्यक्ष को प्रमाण कि आवश्यकता नहीं…यदि सच में पुनर्जन्म होता है तो मैं फिर से भारत में ही जन्म लेना चाहूंगी…..अच्छे लेख के लिए बधाई
वाह यह हुयी न कोई बात
सॉरी… सच्चाई लिखने में कुछ भूल गया…. उस लेख के मुताबिक … आपने बहुत सही और सच्चा विश्लेषण किया है…. आपकी लेखनी में दम है….
पर असली भारत कुछ और ही है…. हम संस्कारवान हैं… हम अतिथि को देवता मानते हैं… हम अपने सामाजिक मूल्यों को मानते हैं… हमने अपनी संस्कृति संभाल कर रखी है… लेकिन… भारत इन सबके अलावा …. कुछ और भी है… अमरीका, कनाडा, लन्दन व अन्य यूरोपीय देश हमसे कहीं अच्छे हैं….
महफूज़ मियाँ ……..क्यों पोल खोल रहे हो यार! एक अंग्रेज़ बेचारा कुछ अच्छा कह रहा है तो हजम नहीं हो रहा..बुरा कहेगा तो भी गलियां दोगे 🙂 …वैसे जनाब अगर उसने असली इंडिया नहीं देखा तो आपने भी असली ब्रिटेन कहाँ देखा है….ये जो सब गुण आपने बताये न ,वो यहाँ भी होते हैं बस जरा polished तरीके से…
.खैर .अब तो आप जैसे काबिल लोग जनता के रहनुमा बनने जा रहे हैं…उम्मीद है इस बेचारे अंग्रेज़ का कहा सच हो जाए…
आपका लेख अदुतीय कोटि का है. इस शैली के गद्य भारतेंदु लिखा करते थे. खुशी है कि परम्परा जारी है. शैली वर्णात्मक है, भाव भी गहरे हैं. आपके लेख में भारतीय और पाश्चात्य काव्य दोनों का समावेश है. शिखा जी आपको साधुवाद !!!!!
hme to apna bhart bahut hi pasand hai -chahe mumbai ho ? kolkata ho? chenni ho?ya dilli hi ho .
hme apne shro ke namo se pyar
hme apne ganvo ke jeevan se pyar …
ऐसे ही थोड़े ही कहते हैं…'सारे जहाँ से अच्छा,हिन्दोस्तां हमारा…"…इन ब्रिटिश मैन ने भी यह अनुभव कर लिया….खामियां…कमियाँ कहाँ नहीं हैं?…पर अपने देश की हवाओं में रची बसी आत्मीयता…कहाँ मिलेगी??…उसी अपनेपन की खुशबू को मिस कर रहें होंगे..मिस्टर सेबेस्टिन….बहुत ही अच्छा आलेख…सबकी आँखों पे पड़े गुलाबी परदे हटानेवाला…हमज़बाँ वाला आलेख भी बहुत सार्थक लेख था…ऐसे ही कोशिश जारी रखो…सबको सत्य से परिचित कराने का…हमें भी फायदा हो तुम्हारे लन्दन प्रवास का…शुभकामनाएं.
gold medal to bhartiye hona hi hai ……. lautery se alag ki garima, bahut achha laga
बिल्कुल सच लिखा आपने. आखिर आपने उनके पोलिशड तरीके की असलियत भी बता ही दी.
रामराम.
महफूज़ अली ji
namskaar aapki bahut si baatein main pacha nhi paya ………sirf ek baat kahunga ye to achchha tha ki vo angrej ek shahar dekh ke chala gya gaanv asli gaanv dekh leta to jata hi nhi . aur chala bhi jata to laut ke jaroor aata. vaise ek sachchhi baat likhun NAZAREIN BADAL KE DEKHIYE , NAZAAREIN BADAL JAYEINGE.
Shikha ji aapne achchha likha hai
.
अच्छा तो लगता ही है जब सभ्यता का मानक तय करने वाले अंग्रेज
स्वयं सभ्यता के स्तर पर '' white man 's burden '' सिद्धांत के
अलग सोचते हैं .. अपने देश पर गर्व किसे नहीं होगा ..
— पर भिखारी रिकॉर्ड कैसा है , यह तो अलग बात है , लेकिन जब
किसान इतना ज्यादा आत्महत्या कर रहे हों तो मुझ – जैसा आदमी
किसी भी बात पर फूल के कुप्पा नहीं हो पाता !
सुन्दर लेख ! पढ़ कर सार्थक सा लगा ! ……… आभार ,,,
.
@ महफूज भाई …
ऐसा क्यों कहते हैं भाई .. जिसतरह एक ब्रह्मण दलित के
साथ सच्ची सहानुभूति रख लेता है , एक गैर मजहब का
दूसरे मजहब वाले के लिए सभी दीवारों को तोड़ कर संवेदित
हो सकता है ठीक वैसे ही अंग्रेज तीसरी दुनिया वाले के लिए
भी सोच सकता है .. यहाँ रूढ़िवादिता ठीक नहीं ..
मेरा भारत महान!!
अब तो अंग्रेज ने भी कह दिया. 🙂
अच्छा लगा पढ़ कर ……….मेरा भारत महान .
हमारा देश सच ही महान है ….अब जब अंग्रेज कह रहे हैं तो कैसे नहीं माने …
इसे और महान बनाने के कोशिशें लगातार चल ही रही हैं ….
वैसे कई बातों में महफूज़ से सहमत …..!!
शानदार प्रविष्टि
कहीं बिजली नहीं, कहीं पूरी सरकार ही बिकी हुई है, कहीं पुलिस रिपोर्ट ही नहीं लिखती, कहीं शिकायत करने वाले को मारकर लाश गायब करवा दी जाती है, करोड़ों लोग पीने के पानी के लिए भी तरसते हैं, आज भी सत्तर करोड़ लोग गरीबी रेखा पर या उससे नीचे गुज़ारा कर रहे हैं (यहाँ का गरीब के मुकाबले ब्रिटेन का गरीब लखपति है), दो तीन प्रतिशत लोगों ने पुरे देश के पैसे पर कब्ज़ा कर रखा है, जनसँख्या के हिसाब से न पब्लिक ट्रांसपोर्ट है न इलाज न रोज़गार न स्कूल. एक जमाखोर माफिया 2004 से कृषि मंत्री बना बैठा हुआ है, रिलायंस का आदमी पेट्रोलियम मंत्री, सेना में बुरी तरह भ्रष्टाचार है. गंदगी के तो हाल मत पूछिए. अगर सच जानना हो तो आप हिम्मत जुटा दो तीन सालों के लिए भारत आ जाइये, एक टूरिस्ट की तरह आने में और यहाँ रहने में अंतर है. हर अप्रवासी के पास बहाने होते हैं यहाँ स्वेच्छा से बसने की हिम्मत नहीं.
ब्रिटेन में पॉलिटिकल करेक्टनेस नाम की बीमारी पुरानी है, उस अँगरेज़ पर इसी का असर लगता है. या फिर यह उन पागलों में से है जिनपर अब हशीश ने भी काम करना बंद कर दिया है और घबराकर वे एलडोराडो इंडिया की तरफ ताक रहे हैं, हिप्पियों की तरह — उन्हें भी भारत उतना ही अच्छा लगता था–. न यहाँ की समस्याओं से मतलब था न उन्हें कुछ झेलना पड़ता था, बस मलाना हशीश का दम मारो और पड़े रहो 'इंडिया इज ग्रेट' और हरे रामा हरे कृष्णा कहते हुए, जब पैसे ख़त्म हो जाएँ तो निकल लो अपने देश.
Dont mind, but that's what the reality is — at least for an average Indian.
—————-
आपको और उस अँगरेज़ को आईआईएम् अहमदाबाद के प्रोफ़ेसर और सोरबों (फ़्रांस) के पूर्व फैकल्टी वी रघुनाथन की 'गेम्स इंडियंस प्ले' पढनी चाहिए. वे भारत के साथ साथ यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका में भी रह चुके हैं. उन्होंने जो लिखा है महफूज़ की तरह हम भी रोज़ ही झेलते हैं.
संसाधनों की कमियां, नीतियों की कमियां सभी देशों में रहती हैं। कहीं कुछ कमी तो कहीं कुछ। लेकिन हम भारतीय ज्यादा ही हीनभावना से ग्रसित रहते हैं। हमारे देश में भी सब कुछ है यदि हम इसे अपना देश माने और सुधारने का प्रयास करें तब। यदि पराये देश में जाकर बसने की मानसिकता ही बनी रहेगी तब यह देश कभी नहीं सुधरेगा।
padhkar achchha laga
hmmmmmmmmmmm
bat hum indian tak pahuchane ke liye abhar.
आपने लेख बहुत अच्छा लिखा है!
डॉ smt .अजीत गुप्ता जी… ने वो सब कह दिया जो मैं कहना चाहती थी…वाकई हम हिन्दुस्तानी हीन भावना से ग्रसित हैं….
@अब इन्कोन्विनिएन्ति
सबसे पहले बहुत शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया का.
यहाँ मुद्दा ये नहीं कि हमारे देश में क्या कमियां हैं या क्या समस्या हैं….हर जगह होती हैं….पर आपने घर में बैठकर उसका ढिंढोरा सिर्फ हम पिटते हैं….करेंगे कुछ नहीं बस कमियां गिनाएंगे …अरे इस व्यवस्था का जिम्मेदार कौन है? हम ही न…भारत के नागरिक ही न…..
अब एक मेहमान अपने घर आया है तो उसे हम अपना साफ़ घर और अच्छी चीज़ें दिखायेंगे या उसे कचरे का डिब्बा दिखायेंगे और रोना लेकर बैठ जायेंगे.? और वो मेहमान अगर हमारी तारीफ कर रहा है तो क्या हम खुले दिल से उसे स्वीकार करके वाकई हालत सुधारने के लिए प्रेरित नहीं हो सकते…? …
आपकी बताई पुस्तक कभी मौका मिला तो में अवश्य पढूंगी ,परन्तु से इस तरह कि पुस्तक और आलेखों से बाजार भरा पढ़ा है…..अमेरिका, कनाडा,यूरोप ,वगेरह में हम भी रहे हैं और इस तरह की एक किताब हम भी लिख सकते हैं :).ये देश विकसित देश हैं और यह कहने में मुझे जरा भी हिचक नहीं कि यहाँ के एक एक नागरिक का इसमें योगदान है….ये लोग हमारी तरह अपनी ही बघिया उधेड़ने में और दूसरों को व्याख्यान देने में नहीं लगे रहते.
east or west
home is the best
शिखा जी मेरा तो जी चाहता है की आपका ये लेख फोटो कापी करके सारे शहर में बंटवा दूं खास तौर पर उनके जो अंग्रेजों के पिठ्ठू हैं… कमाल की बात कही है उस अँगरेज़ ने..वाह…इसे पढ़ कर हर भारतीय का सर गर्व से ऊंचा होना चाहिए…
नीरज
शिखा जी, शकेस्पियर साहब ने जो भी लिखा, पढ़ कर अच्छा लगा, आप भी बहुत खुश हो गयी,
आपकी खुशिआत्मक सोच और शकेस्पियर साहिब के विचार, पुरे के पुरे हिन्दुस्तान की तस्वीर पेश नही करते| क्यूंकि जो उन्होंने देख आया महसूस किया और जो कुछ आपने समझा वो कुछ ऐसे ही है की तालाब के किनारे बैठकर उसकी गहराई जानने का या अंदाजा लगाने का एक बेबकूफी भरा प्रयास. लेकिन शिखा जी हिन्दुस्तान जरूर बदला है लेकिन अभी भी बहुत कुछ बदला जाना बाकि है
लेकिन तस्वीर यही है की हम बदल रहे हैं ये सोचना अपने आप में एक निहायत ही धोखे में रखने जैसा है, तस्वीर बाकी बहुत ही खराब है, यूँ तो हर जगह हर इंसान रह लेता है, जरूरत के मुताबिक,
शकेस्पियर साहिब के विचार कुछ ऐसे ही लगे जैसे की "दुसरे की थाली में घी ज्यादा" , मगर उन्होंने जो भी देखा यहाँ आकर वो इस हिन्दुतानी रुपी समुन्द्र में एक तालाब की व्याख्या के सामान है जो की पुरे समुन्द्र की तस्वीर पेश नही करता,
I THINK THERE IS LOTS OF GAP IN BETWEEN THINKING /DECISION & IMPLEMETATION. WE HAVE THOUGHT/DECISON BUT THERE IS HARDLY A IMPLEMENTAION AT ALL.
I TOTALLY DISAGREE WID YOU
अपना अपना पहलू डोर का हमेशा अच्छा लगता है ……….. कुछ चीज़ें जो हमें अच्छी लगती हैं वो अपने पास नही होती ……. इसे ही कुछ जो दूसरे के पास नही है उसे वो ज्याद अच्छा लगता है ……….. अपने देश में बहुत कुछ है ज दूसरे देशों में नही ….. पर ऐसा भी बहुत कुछ है जो दूसरों के पास है हमारे पास नही ……….
आप सबसे एक बार फिर मुखातिब हो रही हूँ…लेख के साथ साथ सबकी प्रतिक्रियाएं भी पढ़ीं…और उस पर जवाब भी.
मुझे लगता है कि जिस उद्देश्य से ये लेख लिखा गया था उससे भटक से गए हैं . इस लेख में ऐसा कुछ नहीं है जो ये इंगित करता हो कि लेखिका ये कहना चाह रही हैं कि भारत में समस्याएं नहीं हैं …या भारत बहुत खुशहाल है.
खैर मुख्य बात है कि इस अंग्रेज़ पर्यटक को भारत में अच्छा लगा…और उसने यहाँ कि प्रशंसा की..कुछ कमियां अपने देश की लगीं जो उसने अपने लेख में बयां कर दीं….
लेकिन मैं देख रही हूँ की हम भारतीय कितने कुंठाग्रस्त हैं कि एक पोस्ट को पढ़ देश में कितनी कमियां हैं गिनाये जा रहे हैं…आखिर देश है किसका? बस हम लिख कर या कह कर तो कुछ सुधार नहीं कर सकते…मुझे इस वक़्त " रंग दे बसंती " पिक्चर याद आ रही है….सिस्टम खराब है….पर सुधारेगा कौन ? जिस देश में आप अन्न – जल ग्रहण कर रहे हैं उसी की बुराई करते ये महसूस नहीं हो रहा कि आप अपनी ही कमियां गिना रहे हैं .. आखिर आप इसी देश के नागरिक हैं ..जहाँ आप हैं वहाँ कि अच्छाइयों के साथ कमियों को भी अपनाना पड़ेगा…ये सारी बातें मैंने टिप्पणियां पढ़ कर ही लिख दी हैं…लेख से इसका कोई वास्ता नहीं है.
कुछ कठोर लगीं हो बात तो क्षमा चाहूंगी… पर हज़ार कमियों के बाद भी मुझे अपना देश बहुत प्यारा है…
शिखा जी आप का बहुत बहुत धन्यबाद इस लेख को हम तक पहुचाने के लिए ये कम से कम उन लोगो की आँख खोलने का प्रयाश तो करेगा जो अंग्रेजियत को ही सर्वो परि समझते है
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
ispar main itne bhashan de sakti hun ki kya bataun..kal se baar-baar aati hun aur chali jaati hun..
bas…man mein tufaan uth gaya hai…shayd bahut kuch bol jaaungi isliye chup hun..:):)
kuch aisi hi baat khushdeep ji bhi kahi thi agar koi padhna chahe to ye raha link :
http://deshnama.blogspot.com/2009/11/blog-post_04.html
जिस दिन मेरा पड़ोसी गड्ढा रिपेयर हो जाएगा, उस पर कवर लग जाएगा और सीवर ठीक से बहने लगेगा। उस दिन मैं भी लिखूँगा – मेरा भारत महान 🙁
उम्मीद कम ही है क्यों कि मैं घूस तो देने से रहा। खुद ठीक करा कर अपने लिए मुसीबत नहीं मोलनी। टैक्स भी तो दे रहा हूँ।
शिखा तुमने पूछा कि मेरा भाषण पक्ष में है या विपक्ष में…
तो इस आलेख के पक्ष में है …सौ प्रतिशत…
बस महफूज़ मियाँ चारों खाने चित्त हो जायेंगे इसलिए नहीं कहा है कुछ…
बचपन में एक कहावत सुनी थी…
रूखा सूखा खाई के ठंडा पानी पीऊ
देख बिरानी चुपड़ी मत ललचावे जीउ…
शिखा जी, आदाब
आपका लेख एक दलील है, जिसमें पक्ष-विपक्ष का सवाल ही नहीं उठना चाहिये.
बस यही उत्तम है- ’मेरा भारत महान’
आपने भी साबित कर दिया-
’फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा…
जय हिंद…
are main to ise padhi thee rev bhi di gayab kaise? chaliye is bahane dubara bhi padhi aur sabhi ki pratikriya bhi. ab itno ne sab kah dala kuchh bacha hi nahi kahne ko…badhai aur shubhkamnayen.
Hi..
Mujhe garv hai ki main Ek bharteeya hun.. Agar mere jeevan main koi aisa mauka aaye ki mujhe videsh main basne ka pralobhan mile to bhi wain yahan apne Bharat main hi rahna pasand karunga..
Main upar di gayi kuchh tippaniyon se sahmat nahi hun atah unhen sadar asweekar karta hun..
Aaj ke paripeksh main kamobesh har desh main bhukhmari, gareebi, arajakta, bhrastachar, muhn baye khada hai.. Duniya ka har desh en samasyaon se do char ho raha hai..
Tab sirf apne desh main khamiyan dekhna aur bakayda sare aam unhen ginwane main fakr samajhna, kahan ka nyaay hai.. Aisi tippanian unki aswasth mansikta ki parichayak hain..
Jo vicharon se hi patan ki oor jaa raha ho use utthan kabhi nahi dikh sakta.. Neeche dekhne wale choti kabhi nahi dekh pate..
Shikh ji agar Shekhsphere ji ka pura lekh hi aksharakshah pathkon ko padhwatin to sone par suhaga hota..
Rachna bhavanatmak rup se hame apni mitti se jodti hai, Dhanyawad ..
DEEPAK..
shikha sach me bahut badhiya likha hai…hum apne desh ke liye nahi sochenge to aur kaun sochega …inheen buraaiyon ke beech hee achchhaiyaan bhi chhipee huee hotee hain…jinhen nazarandaaz nahi kiya jaana chahiye….
Namskaar ek baar fir aapke samaksh upsthit hun.Sangeeta swaroop ji ne sahi kahaa sistum kharab hai to sudharega kaun? Beshaq hum sudhrenge lekin kab? …….
ek sachchi baat kahun …Hum sb (main bhi) baatein krni ho ya fir vaad vivaad krna ho to hmesha aage rhte hain lekin agar PAHAL krni ho to sabse peechhe rhna chahte hain . Ek aur cheez jismein hum sabse aage hain vo andhanukarn krne mein. Hum roj galat hota huaa dekhte hain lekin chup rhte hain . jis din humne galat ko galat aur sahi ko sahi kahna shuru kr diya shayad usi din se badlaav shuru ho jaye.
aap sabhi se anurodh krta hun please kuchh keejiye ya na keejiye bs apni pratikriya dena band na kijiye …kyoki koi bhi sistum kharab tabhi hota hai jb hum aakhein band kr lete hain aur jo hota hai use hone dete hain …na galat krein na galat sveekar krein
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